नई शिक्षा नीति विवाद: हिन्दी को ‘अनिवार्य’ नहीं बनाया गया: जावेडकर

New education policy controversy: Hindi was not made mandatory: Javed
  • वामदलों ने भी हिन्दी को थोपे जाने का कड़ा विरोध किया

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)।

मोदी सरकार के सत्ता सम्भालते ही हिन्दी भाषा को दक्षिण के राज्यों में कथित रूप से थोपे जाने को लेकर इतना विवाद खड़ा हो गया कि नयी शिक्षा नीति के प्रारूप को संशोधन करना पड़ा है। नई शिक्षा नीति का मसौदा जब 31 मई को सरकार को सौंपा गया तो दक्षिण भारत में हिन्दी को थोपे जाने का विरोध शुरू हो गया। वामदलों ने भी हिन्दी को थोपे जाने का कड़ा विरोध किया। तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा जिसमें कहा गया कि सरकार किसी पर कोई भाषा नहीं थोपेगी। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेडकर ने भी स्पष्टीकरण जारी किया कि सरकार ने त्रिभाषा फामूर्ले को अभी लागू नहीं किया गया है और सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करते है और यह केवल नई शिक्षा नीति का केवल मसौदा है। इस पर लोगों की राय आने के बाद ही इसे लागू किया जाएगा।

  • क्या था मामला:

गौरतलब है कि नयी शिक्षा नीति का प्रारूप जावड़ेकर के कार्यकाल में तैयार हुआ था जब वह पूर्व सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री थे। लेकिन उनके स्पष्टीकरण के बाद भी यह विवाद थमा नहीं और दक्षिण के नेता इससे संतुष्ट नहीं हुए। तब रविवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने भी ट्वीट करके कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्री को जो नयी शिक्षा नीति पेश की गयी है वह एक प्रारूप रिपोर्ट है। इस पर लोगों से राय ली जाएगी और सरकार से इस पर विचार विमर्श किया जाएगा और इसके बाद ही प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाएगा। सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है इसलिए कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।

 

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