चुगली-निंदा न कभी सुनो और न करो

Saint Dr. MSG

सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल दाता रहबर के पाक-पवित्र वचन भजनों के द्वारा आप सुनते हैं, जिसमें रूहानियत की शिक्षा मिलती है, सीधी-सादी भाषा में गूढ़ ज्ञान की बातें कही गई हैं। इन्सान जिंदगी में अगर तमाम खुशियां चाहता है, अंदर बाहर की चिंता को खत्म करना चाहता है, तो अपने पीर-ओ-मुर्शिद के वचनों को सुनों व उन पर अमल करो। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि ये घोर कलियुग का समय है और लोग मनमते चलते हैं। गुरुमुखता व मनमुखता दो बातें होती हैं। गुरुमुख, जो गुरु, पीर कहे उसके अनुसार चलने वाला। पीर-फकीर क्या कहता है?

पीर-फकीर कहते हैं, इन्सानियत की सेवा करो, मानवता की सेवा करो, तन से, मन से व धन से। तन से यानि शरीर से की गई सेवा परमार्थ होता है। धन, साध-संगत दीन-दुखियों की मदद के लिए पैसा खर्च करती है और रूहानी मजलिस व रूहानी सत्संग सुनना, मन की सेवा है। इस प्रकार इन्हें तन-मन-धन की सेवा कहा जाता है। मन की सेवा मुश्किल सेवा है, मजलिस में बैठकर भी लोग चुगली निंदा करते हैं।

आप जी फरमाते हैं कि रूहानी मजलिस के दौरान जो भजन, शब्द चल रहे होते हैं, वो संतों के वचन हैं। इसलिए उन वचनों को ध्यान से सुनो, चुगली निंदा न करो। चुगली, निंदा से कुछ भी हासिल नहीं होता। तो फिर क्यों नहीं शांत मन से भजनों को सुनते। अगर सुमिरन नहीं कर पाते तो संत, पीर-फकीर के वचनों को सुनकर उन पर अमल करो तो भी जिंदगी खुशियों से महक उठती है पर आज का कलयुगी इन्सान मानता नहीं। तन-मन-धन से सेवा नहीं करता। अगर इन्सान दीन-दुखियों के इलाज में पैसा खर्च करता है तो ऐसा व्यक्ति जब तक जिएगा आपको दुआएं देगा। सत्संग सुना करो और अमल किया करो, फिर सतगुरू के नजारे मिलते हैं।

 

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