भगवान का शुक्राना करना कभी न भूलें

Anmol Vachan

सरसा। पूज्य हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जो शिष्य अपने सतगुरु, मौला से बेइन्तहा मोहब्बत करता है, दृढ़-विश्वास रखता है, सुमिरन, परमार्थ करता है। जितना हो सके मालिक की औलाद से हमेशा नि:स्वार्थ प्यार-मोहब्बत करता है। ऐसा शिष्य तड़पता हुआ हमेशा यही पुकारता है कि हे मेरे मौला, ऐसे पल जिंदगी में न आने पाएं कि तेरी याद भूल जाऊं। हर पल मेरे दिलो-दिमाग में तेरी याद की वो गंगा बहती रहे जो तमाम गम, चिंता, परेशानियों को पल भर में धो डालता है। उससे परमानन्द मिलता है और जीव दोनों जहान की खुशियों का अधिकारी बन जाता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब एक जीवात्मा तड़पते हुए, व्याकुलता से अपने सतगुरु, मालिक से दुआ करती है तो मालिक भी प्रार्थना जरूर सुन लेता है।

ऐसा जीव कभी भी खाली नहीं रहता, अंदर-बाहर मालिक की दया-मेहर, रहमत से तमाम खुशियों से लबरेज हो जाता है। उसे कण-कण, जर्रे-जर्रे में मालिक के नूरी स्वरूप के नजारे नजर आने लगते हैं और परम शांति, परमानन्द मिलना जरूर शुरू हो जाता है। आप जी फरमाते हैं कि यह घोर कलियुग का समय है। यहां मन-इंद्रियां फैलाव में हैं। अन्य कामों के लिए जीव दिन-रात दौड़ता रहता है लेकिन अल्लाह, वाहेगुरु, राम के लिए कोई-कोई जीव आता है। उस पर मालिक की रहमत होती है क्योंकि इस घोर कलियुग में सत्संग में चलकर आना आदमी की खुदमुखत्यारी का फायदा तो है ही, पर सबसे बड़ी उस परमपिता परमात्मा की रहमत होती है, जो अल्लाह, वाहेगुरु की याद में जीव को लेकर आती है।

कभी भी मालिक से दूर न हों

आप जी फरमाते हैं कि कि इन्सान को उस परमपिता परमात्मा का शुक्राना करना कभी नहीं भूलना चाहिए। मन तो कभी नहीं चाहता कि आप सत्संग सुनें, राम-नाम में बैठें बल्कि मन तो रूकावटें पैदा करता है। ऐसी-ऐसी बातें कहलवाने लगता है, जिनके बारे में जीव कभी सोचता तक नहीं। इसलिए आप संत, पीर-फकीर की सोहबत करो, सत्संग सुनो ताकि आपको पता चले कि हकीकत क्या है, आप जिंदगी में कैसे परमानन्द की प्राप्ति कर सकते हैं।

आप जी ने फरमाया कि मन के हाथों मजबूर होकर कभी भी मालिक से दूर न हों क्योंकि मन तो चाहता ही हमेशा यही है कि आप मालिक से दूर रहें, आपके अंदर हमेशा कमी रहे और आप मालिक की दया-मेहर, रहमत को हासिल न कर सकें लेकिन सच्चा शिष्य, मालिक का मुरीद मालिक से मालिक को मांगता हुआ, मालिक के नूरी स्वरूप के दर्शन कर लेता है। वो तमाम खुशियां हासिल करता है जिसके बारे में भगवान ने तब सोचा था जब मनुष्य को बनाया था।

जीव इस मृतलोक में रहता हुआ परमानन्द की प्राप्ति कर सकता है, दोनों जहान की खुशियों का हकदार बन सकता है यानि जीते-जी हर स्वास सुख से गुजरे, जिससे भी संग-सोहबत करे उससे नि:स्वार्थ भावना से प्यार-मोहब्बत हो, गर्ज किसी से न हो और मालिक के नूरी स्वरूप के दर्शन हों जो असली परमानन्द देने वाले हैं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब जीवात्मा तड़पती, व्याकुल होती है तो वो अपने परमपिता परमात्मा से यही दुआ करती है कि हे मेरे मालिक, मुझ पर कृपा कर ताकि मैं आपकी दया-मेहर, रहमत के काबिल बना रहूं, कोई कमी न रहे और दोनों जहान की खुशियों से अंदर-बाहर से मालामाल हो जाऊं। तो मालिक जीव को दया-मेहर से नवाज देते हैं।

 

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