Manipur Violence: मणिपुर में हो रही नस्लीय हिंसा मामले में संसद ठप है। सत्ता पक्ष और विपक्ष इस मामले में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उसे देख-सुनकर देशवासी सन्न हैं। असल में पूर्वोत्तर का राज्य मणिपुर बीते ढाई महीने से भी अधिक समय से नस्लीय हिंसा की आग से जल रहा है। बीती 19 जुलाई को मणिपुर की दो महिलाओं के साथ अनैतिक दुर्व्यवहार का एक वीडियो सामने आया। मणिपुर पुलिस ने इस वीडियो की पुष्टि करते हुए बताया है कि ये महिलाएं बीती चार मई को मणिपुर के थोबल जिले में अनैतिक दुर्व्यवहार की शिकार हुई थीं। इस वीभत्स और मानवता को शर्मसार करने वाले वीडियो के वायरल होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर इस समस्या का हल क्या है? Manipur Violence
मणिपुर में बीती तीन मई को हिंसा शुरू होने के बाद से अब तक 142 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 60,000 लोग बेघर हो गए हैं। राज्य सरकार के मुताबिक इस हिंसा में 5000 आगजनी की घटनाएं हुई हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रिपोर्ट में मणिपुर सरकार ने कहा कि इस हिंसा से जुड़े कुल 5,995 मामले दर्ज किए गए हैं और 6,745 लोगों को हिरासत में लिया गया है। मणिपुर में मौजूदा समय में कानून व्यवस्था की स्थिति पर कोई आॅन रिकॉर्ड बोलने को तैयार नहीं है। लेकिन राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि हालात धीरे-धीरे सुधर रहे हैं।
मणिपुर में तीन बड़े समुदाय मैतेई, नागा और कुकी हैं। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं और वह ओबीसी कैटेगरी में आते हैं। राज्य में मैतई लोगों की जनसंख्या भी ज्यादा है। राज्य में नागा और कुकी ज्यादातर ईसाई हैं और ये दोनों अनुसूचित जनजाति में आते हैं। राज्य में मैतेई की आबादी करीब 60 फीसदी है और ये समुदाय इंफाल घाटी में रहता है। राज्य के कुल 10 फीसदी भूभाग में मैतेई समुदाय रहता है और बाकी का जो ये 90 फीसदी हिस्सा है, वो पहाड़ी है। यहां पर कुकी और नागा समुदाय को मिलाकर राज्य की जनसंख्या के करीब 40 फीसदी लोग बसे हुए हैं। Manipur Violence
पहाड़ में नागा और कुकी को मिलाकर 30 से ज्यादा छोटी-बड़ी जनजातियां हैं। ये अनुसूचित जनजाति में आती है। इनके पास कई सुविधाएं हैं और पहाड़ी इलाकों में सिर्फ यही रह सकते हैं। मैतेई समुदाय इसका विरोध करता है। वो कहते हैं कि हमें भी एसटी का दर्जा मिलना चाहिए क्योंकि उनके पास रहने के लिए रहने को जमीन कम है। अगर एसटी का दर्जा मिलेगा. तो वो पहाड़ों पर शिफ्ट हो सकेंगे। वर्तमान हालात की बात करें तो ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि इसके लिए राज्य की सरकार जिम्मेदार है जो उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने संबंधी फैसले के बाद उत्पन्न स्थिति से सही ढंग से निपटने में असफल रही। Manipur Violence
कुकी समुदाय द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले के बाद की जाने हिंसा के बारे में खुफिया एजेंसियों द्वारा भी सही समय पर जानकारी या तो दी नहीं गई या फिर जिम्मेदार लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी त्यागपत्र देने का ऐलान किया लेकिन मौजूदा परिस्थिति में मुख्यमंत्री बदलने से भी कुछ लाभ नहीं होगा क्योंकि राज्य में ऐसा एक भी राजनीतिक नेता नहीं है जिसे दोनों समुदायों का विश्वास हासिल हो। लेकिन इस सबके बीच गत दिवस 4 मई को मैतेई हमलवारों द्वारा एक गांव पर धावा बोलकर पकड़ी गई दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का वीडियो सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित होने के बाद पूरे देश में जबरदस्त रोषपूर्ण प्रतिक्रिया हुई। सर्वोच्च न्यायालय से संसद तक उसकी गूंज सुनाई दी। Manipur Violence
मणिपुर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सामने आकर उक्त घटना को पूरे देश को शर्मसार करने वाला बताया। विपक्ष को भी संसद का सत्र शुरू होते ही केंद्र सरकार को घेरने का जोरदार मुद्दा हाथ लग गया जिसका लाभ लेने में उसने लेश मात्र भी देर नहीं लगाई। आनन-फानन में दोषी लोगों की गिरफ्तारी होने के बाद मुख्यमंत्री ने उन्हें फांसी तक पहुंचाने की बात कही लेकिन उनका ये कहना चौंकाने वाला है कि ऐसे हजारों मामले हैं और उसी लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया है। सवाल ये हैं कि यदि ऐसे हजारों मामले थे तो राज्य सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए और महिलाओं को नग्न घुमाए जाने की रिपोर्ट थाने में दर्ज हो जाने के दो महीने बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
हालांकि, ये बात भी विचारणीय है कि 4 मई की घटना का वीडियो संसद के सत्र तक क्यों दबाकर रखा गया? जाहिर है इसके पीछे भी उन ताकतों का हाथ है जो मणिपुर में लगी आग को ठंडी करने के बजाय उसे और भड़काने में जुटे हुए हैं। मणिपुर में कुकी समुदाय मूलत: म्यांमार से आकर पर्वतीय क्षेत्रों में बस गया और अभी भी सीमा पार से अवैध रूप से घुसपैठ जारी है। इनके द्वारा अफीम की खेती कर तस्करी के जरिए उसे विदेश भेजने की बात भी सामने आ चुकी है जिसमें विदेशी हाथ होना अवश्यंभावी है। ये देखते हुए इस राज्य को पूरी तरह स्थानीय प्रशासन के भरोसे छोड़कर रखना भूल साबित हुआ है। महिलाओं के अपमान की जो घटना सामने आई वह किसी भी दृष्टि से सहनीय नहीं है।
जहां एक तरफ पहाड़ी इलाकों में एक अलग प्रशासन की मांग उठ रही है, वहीं मैदानी इलाकों के लोग लगातार ये इल्जाम लगाते आ रहे हैं कि इस हिंसा में म्यांमार से मणिपुर में घुसे लोगों की एक बड़ी भूमिका है। इसीलिए घाटी में रहने वाले लोग अब एनआरसी करवा कर अवैध रूप से मणिपुर में घुसे लोगों की पहचान करवाने की मांग कर रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय के लोग इस बात का खंडन करते हैं। Manipur Violence
मैतेई और कुकी नामक आदिवासी समुदायों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में प्रदेश और प्रशासन दो हिस्सों में बंट गया है। एक दूसरे के हिस्से में जाना मौत को गले लगाने जैसा है। पुलिस और सशस्त्र बलों के हथियार लूटकर दोनों समूहों ने अपनी सेना बना ली है। अस्थाई तौर पर बनाए बंकरों में नौजवान इस तरह तैनात हैं जैसे सामने शत्रु देश की सीमा हो। राजधानी इंफाल तक सुरक्षित नहीं है। प्रशासन पूरी तरह लाचार नजर आ रहा है। राज्य सरकार का कहना है कि हालात सुधर रहे हैं। लेकिन राज्य में हर दिन हो रही हिंसा ये बात बार-बार याद दिला रही है कि दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की खाई लगातार गहरी होती जा रही है। एक ऐसी खाई जिसका खामियाजा मणिपुर के हजारों लोग हर दिन भुगत रहे हैं।
विरोध जताना देश के नागरिकों का लोकतांत्रिक अधिकार है, और कुकी यदि यहीं तक सीमित रहते, तो कहीं ज्यादा प्रभावी हो सकते थे। मगर अब बात हिंसा और हथियार तक पहुंच गई है। चूंकि यहां की जनजातियां सिर्फ अलगाववादी गुट नहीं हैं, इसलिए इस मसले के समाधान में सिविल सोसाइटी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण बन जाती है। सत्ता-प्रतिष्ठान निस्संदेह जरूरी होने पर सख्ती दिखाए, लेकिन अमन का रास्ता मिल-बैठकर बातचीत करने से ही निकलेगा। यहां के समुदाय अपने हितों के लिए अपनों की जान-माल और सुरक्षा को दांव पर नहीं लगा सकते। उनका यह रुख किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं कहा जाएगा।
राजेश माहेश्वरी, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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