चीन के आर्थिक हितों पर प्रहार करने की जरूरत

Need,  Strike China's Economic Interests

चीन ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने के प्रस्ताव को संरासंघ की सुरक्षा परिषद में वीटो कर दिया। यह कोई अप्रत्याशित नहीं था, सामरिक व आर्थिक हितों के नजरिये से चीन को पाक की जरूरत है। उसने चौथी बार जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव को वीटो किया। जैसे चीन ने मामले को अंतिम समय तक लटकाये रखा और जिस तरह तकनीकी आधार बताकर प्रस्ताव को रोका? वह चीन की नीयत को दशार्ता है। घटनाक्रम के कई निष्कर्ष हमारे सामने हैं। ये पहला मौका नहीं है जब चीन ने इस तरह की हरकत से भारत को चिढ़ाया हो।

पाकिस्तान के साथ हाल ही में उत्पन्न तनाव के बाद चीन ने जिस तरह से सहयोगात्मक रुख अपनाते हुए पाकिस्तान को इकतरफा समर्थन देने से परहेज किया। उससे ऐसा लगने लगा था कि वह भारत के साथ खड़ा होने को तैयार है किंतु अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसी महाशक्तियों द्वारा सुरक्षा परिषद में अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने के लिए लाये गए प्रस्ताव को चीन ने ये कहकर रोक दिया कि बिना पर्याप्त सबूतों के ऐसा करना उचित नहीं होगा। पुलवामा में आंतकी हमले के बाद भारत की ओर से की गयी एयर स्ट्राइक से पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है।

ऐसे में चीन द्वारा पाकिस्तान में बैठे आंतकी सरगना मसूद अजहर का बचाव करने के चलते पाकिस्तान के साथ चीन के प्रति भी गुस्सा चरम पर है। वहां से ये अभियान उभर कर आया कि हमें चीन समेत उन सब देशों को सबक सिखाना चाहिए जो भारत के हित के खिलाफ नजर आते हों।चीन भारत का सबसे बड़ा कारोबार सहयोगी है। भारत में आयात किए जाने वाले सामान में गिफ्ट आइटम्स, टीवी, कम्प्यूटर के सामान, फोन और लैंप्स वगैरह शामिल हैं। देश में चीनी वस्तुओं का कारोबार इतना व्यापक है कि बीते साल दीवाली के त्योहार से पहले वाले कुछ हफ्ते में ही केवल दिल्ली में 1000 करोड़ के उत्पाद बिक चुके थे। इस समय होली का त्योहार सामने है। भारतीय बाजार चीनी उत्पादों से पटे पड़े हैं। भारत को डब्ल्यूटीओ का सदस्य होने के नाते चीनी वस्तुएं आयात करना आवश्?यक हो जाता है।

चीन और भारत का व्यापारिक साझेदारी 4.6 लाख करोड़ का है, और चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इस कारण भारत को चीन से व्यापारिक साझेदारी खत्म करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। भारत में स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण की प्रक्रिया कुंद-सी पड़ गई है। भारत निर्यात की तुलना में 7 गुना ज्यादा माल चीन से आयात करता है। भारत इलेक्ट्रानिक के 32.02, न्यूक्लियर रिएक्टर, बायलर्स और पार्ट्स के 17.01 प्रतिशत, आर्गनिक केमिकल्स 9.83 प्रतिशत फटिलाइजर्स 5.3 प्रतिशत आयात करता है। कृषि और आज के मानव का अहम हिस्सा मोबाइल जब हम चीन से आयात करने पर मजबूर हैं फिर चीन के साथ व्यापार बंद करना उचित नहीं लगता।
महात्मा गांधी ने कहा था, कि हमें विदेशी वस्तुओं के उपयोग से मुक्त होने की जरूरत है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसा तभी होगा, जब हम खुद अपनी चीजें बनाएंगे।

जब मोदी की महत्वाकांक्षी योजना श्मेक इन इंडियाश् में भी विदेशी निवेश हो रहा है, फिर बहिष्कार की बात नाकाफी दिखती है। चीन को केवल हम उसके टिकाऊपन के खिलाफ मात दे सकते हैं। त्योहारों के सीजन में चीनी झालरों और पटाखों के इस्तेमाल न करने से केवल हम बहिष्कार की मुहिम नहीं चला सकते हैं। भारत वर्तमान में चीन से आयरन और स्टील 5.82 प्रतिशत, प्लास्टिक और उससे बनी चीजें 2.74 प्रतिशत, फोटोग्राफी उपकरण 2.09 प्रतिशत, बोट्?स 2.05 प्रतिशत, आयरन व स्टील से बनी चीजें 1.92 प्रतिशत और रेलवे के अलावा अन्य वाहनों के 1.81 प्रतिशत पुर्जे खरीदता है। दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के रास्ते में वह भारत को सबसे बड़ा रोड़ा मानता है। पाकिस्तान से खैरात में मिली जमीन पर वन

बेल्ट वन रोड के उसके महत्वाकांक्षी प्रकल्प में भारत ने जिस तरह अड़ंगा लगाया उससे भी वह भीतर-भीतर काफी नाराज है। पुलवामा हमले के बाद के घटनाचक्र में भले ही उसने भारत के साथ सौजन्यतापूर्ण व्यवहार किया हो किन्तु उसे ये डर भी सता रहा था कि पाकिस्तान के पूरी तरह दब जाने से भारत का पलड़ा यदि भारी हो गया तब वह चीन के दूरगामी हितों के लिए नुकसानदेह होगा। पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के संभावित हस्तक्षेप और बलूचिस्तान की आजादी की मुहिम को भारत का अप्रत्यक्ष समर्थन भी चीन की परेशानी का कारण हैं।

पहला यह कि भले ही भारत वैश्विक सहयोग के तमाम मंचों पर चीन के साथ खड़ा हो मगर चीन भारत के मुकाबले पाक को तरजीह देगा। पाक न केवल उसका सामरिक सहयोगी है बल्कि चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने वाली वन बेल्ट, वन रोड जैसी महत्वाकांक्षी योजना का साझीदार भी है। पाकिस्तान में कई विद्युत व बड़ी परियोजनाएं चीन के द्वारा पूरी की जा रही हैं। इसके अलावा चीन को शिनजियांग प्रांत में उईगर चरमपंथियों से मुकाबले के लिये पाक की मदद की जरूरत होती है। चीन भविष्य के अफगानिस्तान में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका चाहता है और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिये उसे पाक की जरूरत होगी।

चीन के हुक्मरान मोदी सरकार से अच्छे रिश्ते बनाकर चल रहे हैं लेकिन वे पाकिस्तान को छोडने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहे क्योंकि चीन ने वहां बड़ी मात्रा में पूंजी का निवेश कर रखा है। बहरहाल अब जबकि उसने एक बार फिर भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का साथ देने की नीति अपनाई है इसलिए हमें भी उसे अपनी नाराजगी का एहसास करवाना चाहिये। मौजूदा दौर की विश्व राजनीति में चीन निश्चित रूप से एक बड़ी ताकत है। आर्थिक दृष्टि से भी पश्चिमी देशों की ये मजबूरी हो गई है कि वे चीन के साथ रिश्ते कायम रखें क्योंकि लगभग सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अरबों-खरबों का निवेश चीन में हो चुका है। ऐसी स्थिति में भारत के पास केवल एक ही तरीका है जिससे चीन के ऊपर दबाव बनाया जा सकता है और वह है चीनी सामान के उपयोग को घटाना।

विश्व व्यापार संगठन से बंधा होने की वजह से सरकारी स्तर पर ज्यादा कुछ किये जाने की स्थिति तो नहीं है लेकिन गैर राजनीतिक संगठनों के जरिये चीनी सामान के विरुद्ध माहौल बनाया जा सकता है। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन इस बारे में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। इस बारे में एक बात उल्लेखनीय है कि भारत की जनता राष्ट्र की सुरक्षा और सम्मान को लेकर बहुत ही भावुक और संवेदनशील है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है और चीन सहित दूसरे कई देश यहां अपना सामान बेचकर खुद को और अपने देश को मजबूत बना रहे हैं। इसलिए जब हम लोग चीन के सामान का बहिष्कार करेंगे तो चीन की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। यह करना इसलिए जरूरी है कि आज चीन पाकिस्तान का परोक्ष व अपरोक्ष रूप से सहयोग कर रहा है।

कभी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोककर तो कभी पाकिस्तानी आतंकियों का समर्थन करके। इसलिए भारत की जनता को अब चीन को सबक सिखाने के लिए उसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए और चीनी सामानों का बहिष्कार करना चाहिए। चीन के हालिया रवैये से जो उम्मीद जागी थी वह सुरक्षा परिषद में उसकी शरारत से खत्म हो गई है। केंद्र सरकार ने तो कूटनीतिक मयार्दाओं के मुताबिक प्रतिक्रिया दे दी लेकिन जनता को भी चीन के विरुद्ध संगठित होना पड़ेगा। आधुनिक चीन के प्राण उसके व्यापार में बसते हैं।

उस पर चोट होते ही वह सीधा हो जाएगा। ज्यादा न सही यदि महीने भर भी उसके सामान का आयात कम हो जाये तो उसके सुर बदल जाएंगे। वहीं एक बात और महत्वपूर्ण है कि भारत छोटे-मोटे सामान पर प्रतिबंध लगाकर सम्पूर्ण व्यापार बंद नहीं कर सकता है। अगर चीन को पाकिस्?तान प्रेम की सजा सुनाना है, वह भी व्यापार बंद करके, तो इसके लिए जरूरी बुनियादी स्तर पर उद्योग-धंधों को विकसित करना होगा। स्वदेशी पर बल देना होगा।

डॉ. श्रीनाथ सहाय

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