जालसाजों व ठगी तंत्र से आमजन को बचाने की आवश्यकता

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इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि देश की आधी जनसंख्या ठगों का शिकार हो रही है। गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक सुस्ती के कारण गरीब से लेकर मध्यम वर्ग तक रोजी-रोटी की खातिर ठगी के शिकार हो रहे हैं।

कुछ मामले ही पुलिस के पास दर्ज होते हैं, अधिकतर लोग तो यह समझ कर पुलिस के पास ही नहीं जाते कि कार्यवाही तो होनी ही नहीं। आज कल सेना भर्ती, पुलिस भर्ती और कंपनियों में पैसा लगाने, विदेश भेजने के नाम पर इतनी ज्यादा ठगीयां हो रही हैं कि कई लोग तो अपनी थोड़ी-बहुत जमीन-जायदाद को बेचकर पैसा भी डुबो लेते हैं। भले ही पुलिस शिकायत मिलने पर मामला तो दर्ज करती है लेकिन कुछ मामलों को ही सुलझाया जाता है। इसकी अपेक्षा कहीं बेहतर है कि सरकार जिला व तहसील स्तर पर केन्द्रों की स्थापना करे जिनका एकमात्र उद्देश्य लोगों को ठगों से बचाना हो। इस मामले में बैंकों ने अच्छी पहल की है।

मोबाइल फोन पर बैंकों ने अपने ग्राहकों को किसी से फोन नंबर, एटीएम के पिन कोड, बैंक खातो का नंबर सांझा नही करने का मैसेज भेजते हैं लेकिन सरकार के किसी भी विभाग ने ऐसी जानकारी के लिए कोई प्रबंध नहीं किया। विदेश मंत्रालय ने फर्जी इमीग्रेशन सेंटरों की सूची जरूर जारी की, जो केवल समाचार-पत्रों में एक दिन प्रकाशित हुई या फिर मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड होने के बाद भी ठगी का दौर जारी है।

लेकिन फिलहाल देश के सभी क्षेत्रों में तकनीक नहीं पहुंची है और इन हालातों में किसी मंत्रालय की वेबसाइट देखना पूरी तरह से संभव नहीं। हमारे देश के हालात यह हैं कि सांसद भी ठगी का शिकार हो रहे हैं। मोबाइल फोन पर रेलवे का टाईम टेबल होने के बावजूद जांच खिड़की पर गाड़ियों का समय पूछने वालों की लाईन लगी होती है, उल्टा ठगों ने तकनीक का फायदा उठाया है जो घर-घर फोन कर लोगों से बैंक खातों का नंबर यह कहकर पूछ रहे हैं कि उनके खाते में पैसे डाले जाएंगे।

पर्ल्ज, शारदा जैसी चिटफंड व कई अन्य कंपनियां करोड़ों लोगों का पैसा नहीं चुरा सकती थी, यदि लोगों को कोई सरकारी कार्यालय ठगी से बचने की जानकारी देते रहते। बेहतर हो यदि सरकार लोगों के फायदे के लिए जागरूकता केंद्र खोले एवं जालसाज लोगों के तौर तरीके व ठगी तंत्र से आमजन को सचेत करे।

 

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