बासमती धान को ज्योग्राफिकल इंडीकेशन (जीआई) टैग देने के मामले में मध्य प्रदेश व पंजाब सरकार के बीच खींचतान बढ़ गई है। पंजाब ने मध्य प्रदेश सरकार की बासमती को जीआई टैग देने की मांग का विरोध किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कहा है कि भारत में बासमती की खेती करने वाले किसानों और निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए वह अधिकारियों को जीआई टैगिंग की व्यवस्था में छेड़छाड़ करने से रोकें। पंजाब सरकार ने मध्य प्रदेश की मांग को पंजाब, हरियाणा सहित सात राज्यों के हितों के खिलाफ बताया है। यह घटना देश की कृषि नीतियों पर ही सवाल खड़े करती है।
कृषि संबंधी ऐसे विवाद नहीं होने चाहिए क्योंकि इससे विभिन्न राज्यों के किसानों में किसी फसल विशेष की बिजाई के प्रति असमंजस पैदा होता है वहीं एक-दूसरे के प्रति नफरत की भावना पैदा होती है। वास्तव में जियोग्राफिकल इंडीकेशन आॅफ गुड्स (रेजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 के तहत जीआई टैग उन कृषि उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष में विशेष गुणवत्ता और विशेषताओं के साथ उत्पन्न होती है, जिससे बाजार में वस्तु की मांग बनती है और सम्बन्धित क्षेत्र के किसानों को अधिक लाभ होता है। बंगाल के रसगुल्ले, हिमाचल का काला जीरा, नागपुर के संतरे, केसर के लिए कश्मीर को जीआई टैग मिला हुआ है, जहां तक केंद्र द्वारा हाल ही में लागू किए गए तीन कृषि अध्यादेशों का संबंध है उनमें एक देश, एक मंडी का प्रस्ताव शामिल है। 2017-18 में भी मध्य प्रदेश ने जीआई टैगिंग हासिल करने का प्रयास किया था, लेकिन तब रजिस्ट्रार के बाद मद्रास हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश के दावे को खारिज कर दिया था।
जीआई टैग संबंधी केंद्र को कोई रास्ता निकालना चाहिए ताकि राज्यों में आपसी विवाद और टकराव न पैदा हो। कृषि की गुणवत्ता संबंधी मापदंड मजबूत और स्पष्ट किये जाएं। इस मामले को पूरी जिम्मेदारी व दूरदर्शी सोच से हल किया जाना चाहिए। कहीं यह न हो कि नदी जल विवादों की तरह यह नया विवाद बन जाए। वास्तव में आयात नीतियों के अंतर्गत ही जीआई टैग के मापदंड और प्रक्रिया को मजबूत किया जाना चाहिए। इसमें राजनैतिक दाव पेचों को एक तरफ कर मामले का वैज्ञानिक समाधान निकाला जाए। किसी भी राज्य का नुक्सान पूरे देश का नुक्सान समझकर चलना होगा। आयात प्रभावित होने से किसानों के साथ-साथ देश की आर्थिकता भी प्रभावित होगी। देश के हित में कोई भी फैसला राजनीति और पार्टीबाजी से ऊपर उठकर लेने की आवश्यकता है। इस मामले में कृषि विशेषज्ञों के सुझावों पर गौर की जानी चाहिए।
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