कोरोना महामारी ने लगभग हर जागरूक और जिम्मेदार तबके की जान को सांसत में डाल दिया है। हालांकि मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह से लागू लॉकडाउन इस समय अनलॉक में तब्दील हो गया है। हमारा देश और अधिसंख्य देशवासी महान हैं। यहाँ के लोगों को खाने पीने शौच करने कराने की तरकीब बताई जाती है। यदि ऐसा न किया जाए तो शायद हम सब हग-मूत और कायदे से नहा-धो न सके। प्राय: देखा जाता है कि देश की डेमोक्रेटिक व्यवस्था में जीने वाले लोग इस बात के आदी हो गये हैं कि उन्हें अमिताभ बच्चन से लेकर अन्य सेलीब्रिटीज द्वारा नसीहत दी जायेगी, तभी वह लोग तद्नुसार दैनिक क्रियाएं करेंगे।
लोकतन्त्र जिसे पहले प्रजातंत्र कहा जाता था, इसके बारे में जितना कहा जाये वह कम ही होगा। उदाहरण के तौर पर कोरोना को लेकर अनेक लोगों के तरह-तरह के विचार हैं। सुन व जानकर किसी भी स्वस्थ मनुष्य का दिमाग संज्ञा शून्य हो सकता है, हो भी रहा है। कोई कहता है कि कोरोना घातक नहीं यह एक षड्यंत्र है, तो दूसरा इसके विपरीत तर्क देते हुए अपनी बात कहेगा। दोनों की बातें सुनने वाले चक्कर खा ही जायेंगे। कोरोना वैश्विक षड्यंत्र है या नहीं परन्तु जब से लाकडाउन और अनलॉक की स्थिति चल रही है तब से देश का आम आदमी परेशान सा होकर रह गया है। विकल्पों के अभाव में आम आदमी अपने बसेरों में एकान्तवासी बना सोच-सोचकर मर रहा है।
इसके अलावा देश में कोरोना बचाव हेतु मास्क पहनने की अनिवार्यता और उसके क्रियान्वयन हेतु बरती जाने वाली सख्ती से आम आदमी, प्रशासन व पुलिस के बीच अक्सर तनाव की स्थिति उत्पन्न होने की खबरें मिलने लगी हैं। पुलिस द्वारा मास्क चेकिंग के नाम पर बरती जाने वाली सख्ती और डंडा भांज कर वसूला जाने वाला जुर्माना सर्वत्र चर्चा का विषय बनने लगा है। जिसको देखिये वही इस बात का रोना रोता है कि सड़क पर बगैर मास्क के पैदल, मोटर बाइक अथवा अन्य वाहनों से चलने लायक नहीं है। शहर और कस्बों, पुलिस चौकी व थानों के इर्द-गिर्द चलाये जाने वाला चेकिंग अभियान कोरोना से भी ज्यादा घातक सिद्ध हो रहा है।
कोरोना की वजह से पुलिस के पास आपराधिक घटनाओं की रोकथाम हेतु सोचने का समय ही नहीं। पुलिस जन एक तरह से दायित्व भार से मुक्ति पा चुके हैं। अब वह लोग सिर्फ मास्क चेकिंग और जुर्माना वसूली जैसा एक सूत्रीय कार्यक्रम अभियान के रूप में चला रहे हैं। जुर्माना और डण्डा खाने के बाद भी हमारी हालत ठीक उसी तरह हो जाती है जैसे सौ-सौ जूता खाये तमाशा घुस के देखें, यानि हम इसके बाद भी नहीं मानते और कोरोना से निर्भय होकर बगैर मास्क के ही कहीं भी आते-जाते हैं। हम हैं न महान। आखिर क्यों न हों। हम भारत के रहने वाले हैं, जहाँ अनेकता में एकता की बात तो कही जाती है परन्तु विकास और शिक्षा के नाम पर ही नहीं सोचने समझने की सामर्थ्य में भी हम बहुत ही पिछड़े हुए हैं।
देश में अनेकों राजनैतिक पार्टियाँ और दल हैं। सबकी अलग-अलग विचारधाराएँ हैं। सभी वोट की राजनीति करते हैं। सत्तारूढ़ दल का विरोध हर विपक्षी नेता करता है। सरकार विरोधी वक्तव्य देना इन नेताओं की आदत है। कर सको जितना गुमराह कर डालो। हम पब्लिक हैं, हम मूर्ख हैं, हम पहले प्रजा थे, अब हम लोक हो गये हैं। हमारी मजबूरी यह है कि हम स्वयं के दिमाग से नहीं सोचते हैं इसलिए हमारे पास विवेक नहीं होता। हम डेमोक्रेसी के रोबोट सदृश्य मानव हैं। जिनका नियंत्रण रिमोट के जरिये होता है। और वह रिमोट अंधों में काना सदृश हमारे नेताओं के हाथ में होता है। वह जैसा चाहता है वैसा ही कराता है। वह मदारी हैं और हम उसके बन्दर हैं। डमरू बजाकर भीड़ एकत्र करेगा और डंडा दिखाकर हमसे अभिनय करवायेगा।
जब देश में स्थिति यह है तब हमारी जड़ता का अन्त नहीं होने वाला। हम परजीवी से बने हुए हैं। अभी एक समाचार पढ़ने को मिला उसके साथ एक वीडियो क्लिप थी, जिसे देखकर ऐसा कुछ भी नहीं प्रतीत हुआ कि यह कोई नई बात है। तफ्शील से बता दें कि उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की तहसील बेलथरा रोड के एस.डी.एम. द्वारा चेकिंग के दौरान मास्क न धारण करने वाले लोगों की डंडों से जमकर पिटाई की गई। जिसका परिणाम यह रहा कि उन्हें निलम्बित कर दिया गया। निलम्बन करना और बहाल करना यह सब सरकार के हाथ में होता है। रही बात एस.डी.एम. ने आखिर डंडा भांजा क्यों, इस पर जरूर थोड़ा विमर्श करने की आवश्यकता है।
श्री राम चरित मानस में यह वर्णित है कि जब भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता की खोज और उनकी प्राप्ति के लिए लंका जाना चाहते थे तत्समय एक सेतु की स्थापना की जानी थी, उसी में एक प्रसंग है कि पहले तो श्री राम जी ने अपने अनुज लक्ष्मण, भक्त श्री हनुमान और सैन्य बल के साथ गहरे विशाल समुद्र की याचना-प्रार्थना किया परन्तु समुद्र ने उनके इस अनुनय-विनय को नकार दिया था। अन्त में तीन दिन उपरान्त जब समुद्र की तरफ से कोई अपेक्षित परिणाम नहीं मिला तब श्री राम ने धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ाया और अनुज लक्ष्मण से बोले- विनय न मानत जलधि जड़, गये तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति। श्री राम के इस कोप को देखकर समुद्र भयाक्रान्त हो गया और उनके समक्ष नत्मस्तक होकर प्राण की भीख मांगने लगा। तात्पर्य यह कि त्रेता युग की बात आज भी प्रासंगिक है।
कोरोना काल में जब प्यार-दुलार, स्नेह, अनुनय-विनय से लोग बचाव हेतु मास्क धारण नहीं कर रहे हैं तब जड़ लोगों के इस मूर्खता पूर्ण रवैय्ये से क्षुब्ध होकर प्रशासनिक जिम्मेदार अधिकारी भगवान श्री राम की तरह क्रोधित हो ही जायेंगे। जिसका परिणाम उत्तर प्रदेश के बेल्थरा रोड बलिया जैसी घटना के समान होगा। अशोक चौधरी जो बेल्थरा रोड के एस.डी.एम. रहे निलम्बित भले कर दिये गये हों परन्तु हमारा मानना है कि उन्होंने मूर्खों की करतूतों से आजिज आकर ही डंडा बरसाया। जब एक मजिस्ट्रेट स्वयं हाथ में डंडा लेकर कमर कस चुका हो तब उसके साथ चल रहा फोर्स उसका सहयोग क्यों न करे।
कुल मिलाकर हम कोरोना वायरस को यदि हल्का ले रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि पूरे विश्व में कहर मचाने वाला कोरोना अवश्य ही हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इसे हमारी अज्ञानता ही कहा जायेगा। शासन, प्रशासन, पुलिस महकमा और समाजसेवी संगठन इतनी जागरूता पैदा करेंगे। किसी चीज की हद होती है और धीरे-धीरे करके 5 महीने बीत चुके हैं। यदि इसके बाद भी हमें अकल न आवे तो हमें जड़ ही कहा जायेगा और शासन व प्रशासन के निदेर्शों के अनुपालन में नियुक्त अधिकारी अशोक चौधरी जैसा ही बनेगा। बेहतर यह होगा कि कोविड-19 को हम हल्के में न लें। लाकडाउन के नियमों का पालन करें। सुरक्षित रहे, स्वस्थ रहें।
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
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