असम में बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है। राज्य के 33 जिलों में से 27 जिले बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। लाखों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। भले ही सरकार के राहत कार्य जारी हैं, फिर भी बड़े स्तर पर नुक्सान हुआ है। भारी बरसात से 73 लोगों की मृत्यु हुई और अरबों रुपए का आर्थिक नुक्सान भी हुआ है। कोरोना महामारी के मद्देनजर राहत कार्य चलाने ओर भी कठिन हैं। भरपूर मानसून के कारण हर बार असम, बिहार, पश्चिमी बंगाल और कई अन्य पूर्वी दक्षिणी राज्यों में नुक्सान होता है। यहां निपटने के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि बाढ़ का कारण बनने वाली नदियां एक से अधिक देशों से जुड़ी हुई हैं, जिस कारण यह मामला बेहद पेचीदा हो गया है। कई नदियां नेपाल, चीन से भूटान से होकर भारत में बहती है। नेपाल से बहतीं 6 नदियां बिहार में तबाही मचा देती हैं। इसी तरह चीन-तिब्बत से ब्रह्मपुत्र नदी असम में भारी नुक्सान करती है। इन देशों के साथ नदियों के बहाव, बाँध सम्बन्धित विवाद अक्सर मीडिया में आते रहते हैं। दूसरे देश का मामला होने के कारण कोई भी कार्यवाही सही समय पर पूरी नहीं हो पाती।
चीन और नेपाल के साथ भारत के विवाद ओर तनाव वाले हो गए हैं। नेपाल एक तरफ भारत को कई जगह नदियों के बाँध नहीं बनाने दे रहा, दूसरी तरफ भारत को बाढ़ के लिए दोषी ठहरा रहा है। इसी तरह ब्रह्मपुत्तर नदी के मामले में चीन के साथ भी विवाद रहा है। नदियों का मामले अन्य देशों से संबंधित होने और कई देशों के साथ विवाद होने की सजा आम लोगों को भुगतनी पड़ रही है। हर कोई देश चाहता है कि वह दूसरे देश पर दबाव बनाने के लिए प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहयोग करने से कन्नी कतराए। ऐसा करना मानवता के खिलाफ और संवेदनहीनता की मिसाल है। इस मामले में राजनीतिक हितों को एक तरफ रखकर मानवता के हित में इमानदारी से काम करना चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं का मामला जहां दो या दो से अधिक देशों के साथ जुड़ा है, उसके निपटारे के लिए अंतरराष्ट्रीय नीति और नियम बनने चाहिए। पिछले समय में ऐसी मिसालें सामने आई हैं, जब भारत और पाकिस्तान में भंकूप आने पर दोनों एक-दूसरे की मदद की पेशकश की, फिर बाढ़ का मामला तो दोनों देशों से सबंधित है, यहां चुप रहकर तबाही का तमाशा देखना जायज नहीं है। मानवता के भलाई के लिए बाढ़ जैसी समस्या के समाधान के लिए सभी देशों को एकजुटता से चलने की आवश्यकता है।
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