उच्च शिक्षा के लिए अधिक धनराशि की आवश्यकता

Fund, Higher Education, Government, Economy

देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की आवश्यकता काफी समय से महसूस की जा रही है। उच्च शिक्षा को न केवल प्रासंगिक अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भी बनाए जाने की आवश्यकता है। उक्त संस्थान किस तरह कार्य करेगा इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई है। इस दिशा में सरकर ने पहला महत्वपूर्ण कदम आईआईटी सहित सभी केन्द्र द्वारा वित्त पोषित संस्थानों को अंतर्राष्ट्रीय रैकिंग में भाग लेने के लिए कहा है।

देश में 600 विश्वविद्यालयों और 32 हजार कालेजों में से केवल कुछ को ही राष्ट्रीय मूल्यांकन प्रमाणन परिषद से प्रमाण पत्र मिला है। एक अन्य महत्वपूर्ण कदम में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की सरकार पर निर्भरता कम करने के लिए सभी पाठ्यक्रमों का शुल्क बढ़ाने की अनुमति दी गयी है तथा अवसंरचना विकास, वेतन, आदि में वृद्धि को देखते हुए यह उचित है। मानद विश्वविद्यालयों की तलना में सरकारी विश्वविद्यालय बहुत कम शुल्क लेते है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की परिषद और भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों की परिषद ने अगले तीन वषों तक प्रति वर्ष दस प्रतिशत शुल्क वृद्धि की अनुमति दी है।

तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के अनुरूप उच्च शिक्षा में भी सुधार आना चाहिए किंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो रहा है और इसके कारण सत्यनिष्ठा का अभाव, शिक्षकों के कौशल, शिक्षण विधि, अधितकर संस्थानों को पूर्ण स्वयात्तता, शिक्षा का राजनीतिकरण, शिक्षण संस्थानों में बढ़ती हिंसा, प्रयोगशाला सुविधाओं का अभाव, बुनियादी विज्ञान में अनुसंधान को प्रोत्साहन का अभाव आदि है। साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अनुसंधान को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। वैज्ञानिक प्रकाशनों में भारत का योगदान केवल 3.5 प्रतिशत रहा है जबकि चीन का 21 प्रतिशत रहा है।

शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता के कारण अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भारतीय विश्वविद्यालयों को अच्छी रैकिंग नहीं दी है। दु:खद तथ्य यह है कि भारत का कोई भी विश्वविद्यालय शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों की सूची में नहीं है। आईआईटी भी 200 से 350 के बीच में है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और पूणे विश्वविद्यालयों की रैंकिंग 800 से अधिक है। जबकि चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों के विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन अच्छा है।

आईआईएम और एम्स तथा अन्य विशेषज्ञ संस्थान हमारे देश के लिए प्रभावी मॉडल नहीं है। ये संस्थान केवल विज्ञान और इंजीनियंरिग पर ध्यान देते हैं और उनमें केवल 0.5 प्रतिशत छात्र जाते हंै। कुछ आईआईटी में गैर-इंजीनियरिंग संकाय भी शामिल कर दिए गए है।

नए आईआईटी की स्थापना एक स्वागत योग्य कदम है। विद्यमान आईआईटी की स्थिति में सुधार भी आवश्यक है। शिक्षा में अवसंचना सुधार और व्यय में वृद्धि की आवश्यकता है। भारत मेें प्रति व्यक्ति के हिसाब से शिक्षा में उच्च शिक्षा पर 2419 डालर खर्च होते हैं जबकि अमरीका में 10888 और चीन में 17851 डालर खर्च किए जाते हैं। साथ ही इन संस्थानों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त किया जान चाहिए और उन्हें अधिक स्वयत्तता दी जानी चाहिए। विद्यमान शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है और इसमें प्रस्तावित संस्थान सहायक होगा।

समाज के निम्न वर्ग के छात्रों को शिक्षा पूर्ण करने के बाद रोजगार की आवश्यकता होती है और इस पहलू पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। भारत में प्रति वर्ष एक करोड से सवा करोड़ लोग रोजगार बाजार में प्रवेश करते हैं। इसलिए रोजगार के अवसर सृजित होने चाहिए तथा इस संबंध मे स्टार्ट अप इंजन में गति लाई जानी चाहिए। हमारे स्टार्ट अप्स को जल, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य और अवंसनचना जैसी चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए और इन क्षेत्रों में उच्च शिक्षा में बदलाव से सहायता मिलेगी।

हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली में आए संकट को दूर किया जाना चाहिए तथा इसके हर पहलू में बदलाव लाया जाना चाहिए। उच्च शिक्षा के उच्च मानक स्थापित किए जाने चाहिए। छात्रों के लिए विभिन्न अवसर दिए जाने चाहिए। अनावश्यक विनियमों को समाप्त किया जाना चाहिए तथा इन संस्थानों में होनहार प्रतिभाआें को आकर्षित करने के लिए उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जानी चाहिए।

समाज के निम्न वर्ग के छात्रों को शिक्षा पूर्ण करने के बाद रोजगार की आवश्यकता होती है और इस पहलू पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। भारत में प्रति वर्ष एक करोड से सवा करोड़ लोग रोजगार बाजार में प्रवेश करते हैं। इसलिए रोजगार के अवसर सृजित होने चाहिए तथा इस संबंध मे स्टार्ट अप इंजन में गति लाई जानी चाहिए।

-डॉ. ओइशी मुखर्जी

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।