पाकिस्तान सरकार ने आतंकवाद के मुद्दे पर पिछले हफ्ते कुछ कार्रवाईयों के जरिए विश्व जनमत का ध्यान खींचने की कोशिश की है। पिछले सोमवार को उसने आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाने का ऐलान किया और गुरुवार तक प्रतिबंधित संगठनों द्वारा चलाए जा रहे 182 धार्मिक स्कूल सीज किए जा चुके थे। करीब 120 लोग हिरासत में लिए गए। जमात-उद-दावा के प्रमुख और मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को करीब डेढ़ दशकों में पहली बार जुमे की नमाज की अगुआई करने और नमाजियों को संबोधित करने से रोक दिया गया। हफ्ते के आखिर में प्रधानमंत्री इमरान खान ने साफ तौर पर कहा कि पाकिस्तान की जमीन को अन्य देशों में आतंकी गतिविधियां भड़काने के लिए इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। हालांकि न तो पाकिस्तान सरकार की ये घोषणाएं नई हैं, न ही आतंकी ढांचे के खिलाफ उसकी इन कार्रवाईयों में कोई नयापन है। इससे पहले भी वहां की सरकारें ऐसी घोषणाएं करती रही हैं और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने पर आतंकी संगठनों के खिलाफ दिखावे की कार्रवाईयां भी करती रही हैं।
लेकिन बहुत जल्द स्थितियां वहां पुराने ढर्रे पर ही लौट आती हैं। यह मानने की फिलहाल कोई वजह नहीं है कि इस बार भी ऐसा नहीं होगा। शायद इसीलिए भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार के इन कदमों को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर पाकिस्तान खुद को ‘नया पाकिस्तान’ बताता है तो वह आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ‘नया ऐक्शन’ भी ले। अभी तो पाकिस्तान के आधिकारिक बयानों से लगता है कि वह जैश-ए-मोहम्मद का प्रवक्ता हो गया है। वहां के विदेश मंत्री जैश की टॉप लीडरशिप से हुई अपनी बातचीत के हवाले से उन पर लग रहे आरोपों को गलत बताते हैं। कभी वह कहते हैं कि जैश प्रमुख अजहर मसूद पाकिस्तान में ही है और उसकी तबीयत बहुत खराब है, तो कभी कहते हैं कि पाकिस्तान में जैश का अस्तित्व ही नहीं।
पाकिस्तानी हुक्मरानों का कहना है कि हाफिज सईद और अजहर जैसे लोग भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, इस बात का कोई सबूत उनके पास नहीं है। एकबारगी उनकी बात पर कोई यकीन भी कर ले तो भला वे अपने देश में इन लोगों को मजहबी सभाओं और जलसों में भारत के खिलाफ जहर उगलने और आत्मघाती हमलावरों को उकसाने की इजाजत क्यों देते हैं? उनका यह रवैया इस संदेह को बढ़ाता है कि आतंकी संगठनों के आका उनकी मर्जी से और उनके इशारों पर अपना अजेंडा आगे बढ़ाते हैं। फिर भी अगर इमरान खान चाहते हैं कि उन्हें एक मौका मिले तो अपनी ताजा घोषणाओं पर अमल सुनिश्चित करते हुए वे आतंकी गिरोहों पर लगाम कसें। इस बीच एक अच्छा संकेत यह आया है कि ‘ब्रीफिंग’ के लिए वापस बुलाए गए दोनों देशों के उच्चायुक्तों ने फिर से अपना काम संभाल लिया है। उनकी सक्रियता विश्वास बहाली को आसान बना सकती है।
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