राजनीति की बजाए संयम की आवश्यकता

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इराक में अगवा 39 भारतियों की वापिसी का मामला राजनीतिक रंगत पकड़ता जा रहा है। कांग्रेस ने संसद में इस मुद्दे पर विदेश मंत्री के विरुद्ध मर्यादा प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली है। आम आदमी पार्टी ने भी सरकार के खिलाफ कमर कस ली है।

नि:संदेह अगवा भारतीयों के परिवारों का दर्द बड़ा गहरा है जो सारा दिन अपनी, आंखें टीवी या अखबारों पर टिकाई रखते हैं। दो सालों में इन खबरों को लेकर कई बार उतार-चढ़ाव आए हैं। इराक से वापिस पहुंचे हरजीत सिंह नामक व्यक्ति ने दावा किया है कि उसके सामने ही सभी को गोली मार दी गई थी,

लेकिन कई बार यह दावा किया गया कि भारतीय सुरक्षित हैं और सरकार वापिसी के लिए प्रयास कर रही है। सरकार के भरोसे से परिवारों का हौसला बढ़ा था। अब मौसुल में जंग भी रुक गई है और हालात सामान्य जैसे हो रहे हैं। दरअसल सही हालात ही अब बने हैं।

अब भारतीयों के बारे में पुख्ता जानकारी मिल सकेगी। पहले मौसुल में जिस तरह घमसान मचा हुआ था उससे कोई जानकारी मिलना आसान नहीं था। जो भारतीय राजनीतिज्ञ इस मुद्दे पर बयानबाजी कर रहे हैं वह भारत में रह रहे हैं और यहां के हालातों के मुताबिक ही सोच समझ रहे हैं।

यह नेता मौसुल के हालातों को समझने व महसूस करने को तैयार नहीं। विरोधी पार्टियां इस मामले में सतही राजनीति करने की बजाय हालातों को समझें। सरकार के लिए यह अच्छा अवसर है कि मौसुल में बदले हालातों के अनुसार अपने प्रयासों में तेजी लाएं।

विरोधी पार्टियों को यह जानकारी भी होनी चाहिए कि इराक मध्य पूर्व के कई देशों में खानाजंगी के हालात हैं। आधी दर्जन से अधिक देशों के लाखों लोग यूरोप व अमेरिका में शरण लेने के लिए परेशान हो रहे हैं।

मौसुल शहर आईएस, आईएस का सबसे बड़ा गढ़ था जिसे जीतने के लिए पेंटागन को अपनी ताकत झोंकनी पड़ी। अमेरिका की भारी बमबारी में एक इमारत में अपनी जान बचाने के लिए छिपे सौ से अधिक लोग मारे गए। पता नहीं ऐसी कितनी ही इमारतें तहस-नहस हो गई।

दो साल मौसुल धमाकों, गोलीबारी व धुएं का शहर बना रहा। कभी इराकी सेना तो कभी आईएस का पलड़ा भारी रहा। पूरा विश्व इराक के हालातों से चिंतित था। यह अंदाजा लगाना कठिन हो रहा था कि इस लड़ाई में अमेरिका जीतेगा या आईएस, जो अमरीकी हमलों के बावजूद ताकत पकड़ रहा था।

आईएस में विश्व के 90 देशों से 20 हजार के लगभग नौजवान भर्ती हो चुके थे। इन हालातों में भारतीयों की तलाश करना मुश्किल था, जिसके लिए सरकार को दोष देना जायज नहीं लगता। यह कोई आंतरिक मामला नहीं कि सरकार को दोष दिया जाए।

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