रोजगार के लिए कौशल विकास आवश्यक

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विश्व में युवाओं के सबसे सुदृढ़ देश बनने का भारत का सपना पूरा होगा? हमारे यहां एक कहावत है कि जहां चाह, वहां राह किंतु यह राजग सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है। उत्पादन के यंत्रीकरण से बेराजगारी और अर्धबेरोजगारी की समस्या दूर नहीं हुई और आर्थिक वृद्घि के साथ बढ़ती श्रम शक्ति को रोजगार नहीं मिल पाया। यहां तक कि वर्ष 2004-05 से 2009-10 के बीच जब आर्थिक वृद्घि दर 9 प्रतिशत से अधिक थी रोजगार में वस्तुत: कोई वृद्घि नहीं हुई और बेरोजगारी समाज के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरा जिससे मुख्यतया समाज के कमजोर और कम आय वर्ग प्रभावित हो रहे हैं।

एक अनुमान के अनुसार देश में 11.30 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में है। यह देश की श्रम शक्ति का 15 प्रतिशत है और ये बेरोजगार व्यक्ति देश के लगभग 7 करोड़ परिवारों में हैं जो देश के कुल परिवारों का 28 प्रतिशत है। 2001 की जनगणना के अनुसार देश के सभी परिवारों में से 23 प्रतिशत परिवारों में बेरोजगार थे और एक दशक में यह संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गयी। इसका तात्पर्य है कि औद्योगिक वृद्घि और यहां तक कि सेवा क्षेत्र में वृद्घि के बावजूद रोजगार का सृजन अपेक्षित स्तर पर नहीं रहा। विशेशज्ञों का मानना है कि हाल के चुनावों में संप्रग की हार का एक मुख्य कारण देश में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या भी है।

कृषि में लोगों को बारहमासी रोजगार नहीं मिलता है और अधिकतर परिवार वर्ष के अधिकांश समय बेरोजगार रहते हैं। मनरेगा से ग्रामीण जनता को कुछ सहायता मिली किंतु इस योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार और निगरानी के अभाव के कारण यह भी रोजगार सृजन में अधिक प्रभावी नहीं रही। इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रो में लोगों को 100 दिन का रोजगार देने का प्रावधान है किंतु वर्ष 2013-14 में केवल 9 प्रतिशत परिवारों को ही 100 दिन का रोजगार मिल पाया साथ ही इस योजना में अकुशल कार्य कराए जाते हैं इसलिए इसके अंतर्गत किसी कौशल का विकास नहीं हुआ।

एक आकलन के अनुसार वर्तमान में 18 प्रतिशत कार्यरत लोगों के पास नियमित रोजगार है जबकि 30 प्रतिशत नैमितिक कामगार हैं जो दैनिक या आवधिक रोजगार करते हैं। शेष 52 प्रतिशत स्वरोजगार करते हैं जो वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं तथा उनकी आय बहुत कम है। उनके पास साल भर काम नहीं है और इसका भी एक बड़ा हिस्सा अर्धबेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है। हाल के वर्षों में खासकर पिछले दो तीन वर्र्षाे में यह बेरोजगारी की समस्या और बढ़ी क्योंकि सरकार ने समुचित प्रौद्योगिकी के साथ श्रम सघन उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया। दक्षिण कोरिया, ताईवान और सिंगापुर जैसे पूर्वी एशियाई देशों में 1970 और अस्सी के दशक में तथा हाल के वर्षों में चीन का विकास मॉडल उल्लेखनीय है।

इन देशों ने मुख्यतया श्रम सघन उद्योगों पर बल दिया जिससे रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ और जनसंख्या के गरीब वर्ग में संपन्नता आई। अब मोदी कौशल विकास की बातें कर रहे हैं और उन्होंने बेरोजगारों को कौशल प्रशिक्षण देने के लिए कुछ उपाय किए हैं। उनका मानना है कि कौशल विकास न केवल भारत की जनांकिकी का लाभ उठाने के लिए महत्वपूर्ण है अपितु इससे समावेशी विकास भी होगा। सरकारी-निजी भागीदारी के अंतर्गत राष्टÑीय कौशल विकास निगम को 15 करोड़ लोगों को 2022 तक कौशल विकास प्रशिक्षण का दाियत्व सौंपा गया है। कौशल विकास के क्षेत्रों में सौर पैनलों से जुड़ा विनिर्माण अपशिष्ट प्रबंधन, लेखा परीक्षा और मूल्यांकन, नई प्रोद्योगिकी में अनुसंधान आदि शामिल है। इसके अलावा आभूशण निर्माण, स्वच्छता सामग्री का उत्पादन, कम लागत के इलेक्ट्रोनिक सामान आदि के लिए भी कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाएगा।

2014 में सरकार ने घोषणा की थी कि वह दीन दयाल अंत्योदय योजना के अंतर्गत शहरी गरीबों के कौशल विकास पर 500 करोड़ रूपए खर्च करेगी। इसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति के प्रशिक्षण पर 15 से 18 हजार रूपए खर्च किए जाएंगे और उसे लघु उद्यम स्थापित करने में सहायता दी जाएगी। सरकार दो लाख तक की व्यक्तिगत परियोजनाओं और 10 लाख तक के सामुहिक परियोजनाओं के लिए ब्याज पर भी सब्सिडी देगी। कौशल विकस मंत्रालय और उद्यमिता कौशल विकास तथा नए कौशल के निर्माण तथा कुशल श्रम शक्ति की मांग और आपूर्ति में अंतर को दूर करने में भी समन्वय करेगा तथा इसके लिए यह व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण देगा। अब यह सब हो पाया है या नहीं, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

चुनौती बेरोजगारी ओर अर्धबेरोजगारी को कम करने की है तथा कौशल प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास ही इसका एकमात्र विकल्प है। केन्द्र और राज्य सरकारों की इस मामले में ईमानदारी से ही यह कार्यक्रम सफल बन सकता है। यदि मोदी सरकार इस कार्यक्रम को लागू करती है तो एक महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक समस्या के समाधान में एक नए अध्याय का सूत्रपात होगा। इसलिए हमारे राजनेताओं ओर योजनाकारों के दृष्टिकोण में बदलाव आना चाहिए। देश के ग्रामीण क्षेत्रोें में विषद संभावनाएं हैं और निजी क्षेत्र के साथ एक राष्टÑीय बहस की जानी चाहिए कि रोजगार सृजन के साथ साथ ग्रामीण विकास पर भी ध्यान दिया जाए ताकि रोजगार सृजन और विकास साथ-साथ हों। तभी देश समावेशी विकास कर सकता है और वही समाज के एक बड़े वर्ग के लाभ के लिए होगा।

-लेखक धुर्जति मुखर्जी