नक्सल इलाकों में ऐसा साफ देखा जा रहा है कि नक्सली अब आधुनिक समय के अनुसार अपनी रणनीति में बदलाव लाने लगे हैं। खासकर छत्तीसगढ़ में अब तक सुरक्षा बलों नक्सलियों के बीच सीधी और बंदूक की लड़ाई थी, लेकिन अब यह लड़ाई हाइटेक भी हो चुकी है। राज्य के नक्सली अब आधुनिक संचार माध्यमों को न सिर्फ अपना रहे हैं, बल्कि खुलकर उनका इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
नक्सलियों की दुनिया से दूर का और सिर्फ सूचना माध्यमों से मिली जानकारी तक का वास्ता रखने वालों को यह जानकर हैरत हो सकती है कि उनके लिए स्मार्टफोन जैसी सुविधाएं अब प्रिय उपकरणों में तब्दील हो चुकी हैं। बस्तर जैसे वनांचल में अभावग्रस्त जीवन जीते हुए भी कथित क्रांति का बिगुल फूंकने में लगे नक्सली अब उसके लिए संचार क्रांति का सहारा लेने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखा रहे।
अब तक जंगलों में खुली सभाएं करके नक्सली आम जनता तक अपना संदेश पहुंचाते थे। शहरों और कस्बों में वे प्राय: इस काम के लिए पंपलेट, पोस्टर और बैनरों का सहारा लेते थे, लेकिन इस लिहाज से अब उनकी दुनिया काफी बदल गई है। जब बस्तर में संचार के आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, तो नक्सली भी खुद को हाइटेक करने में जुट गए हैं।
नक्सलियों के आला पदाधिकारी भी मोबाइल और इंटरनेट के जरिए अपने संदेश भेजने लगे हैं। यही नहीं, नक्सली ई-मेल और फेसबुक का भी इस्तेमाल करते हैं। पिछले दिनों पुलिस ने नक्सलियों के एक फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक किया था, लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि अब वे दूसरे फेसबुक अकाउंट का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इसके अलावा उनके द्वारा संचालित कई वेबसाइटें हैं, जिन पर वे किसी नक्सली वारदात की खबर को तुरंत अपडेट कर देते हैं। यही नहीं, अब तो नक्सलियों के आॅडियो और वीडियो क्लिप भी मिलने लगे हैं।
नक्सली क्षेत्रों से बहुत दूर रहने वालों के लिए यह जानकारी कम हैरतअंगेज नहीं कि अब वे भी राजनीतिक दलों की तरह अखबारों को अपनी गतिविधियों की जानकारी ई-मेल पर प्रेस विज्ञपत्तियां और फोटो भेजकर दे रहे हैं। हालात तो यह है कि नक्सली मोबाइल पर भी पत्रकारों को किसी घटना और गतिविधि के संबंध में अपना विजन नोट करवाते हैं।
आधुनिक संचार माध्यमों से मजबूत होते नक्सली तंत्र का ही एक परिणाम यह रहा कि सड़क निर्माण का जिम्मा उठाने वाले ठेकेदार सरकार द्वारा बार-बार सुरक्षा का आश्वासन दिए जाने के बावजूद उनके सामने असहाय बने हुए हैं। यही कारण है कि सड़क निर्माण से संबंधित बहुत-सी फाइलें, तो आज तक कार्यालयों से ही बाहर नहीं आ सकीं।
अपने मजबूत तंत्र के कारण माओवादी केंद्र सरकार की मदद से बनने वाली सड़कों के निर्माण में बाधा डालने में भी सक्षम हैं और वे इस काम को बिना रूके अंजाम दे पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में तीन चरणों के मतदान के तीन दिनों में चुनाव आयोग को करीब सौ करोड़ रुपए खर्च करने पड़े। वैसे आचार संहिता लागू होने से चुनाव के नतीजे आने तक चुनाव आयोग द्वारा कुल पांच सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए।
धन का एक बड़ा हिस्सा सुरक्षा तंत्र के समक्ष नक्सलियों द्वारा पेश की जा रही चुनौतियों के कारण खर्च करना पड़ा। एक तरफ हाईटेक होते नक्सली हैं, जिनसे सुरक्षा के लिए आम आदमी तो क्या चुनाव आयोग को भी जूझना पड़ा और चुनाव के दौरान सुरक्षा बंदोबस्त पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाने पड़े। वहां सुरक्षा के साथ-साथ आम आदमी की अन्य मुश्किलों में भी लगातार इजाफा हो रहा है।
हाल के चुनाव में आयोग को जिन सुरक्षा जरूरतों से जूझना पड़ा है और कृषकों की जमीनों को लेकर जो आकलन सामने आया है, उससे यह साफ है कि आने वाले समय में डॉ रमन सिंह की राज्य सरकार को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। एकतरफ उसे हाईटेक हो रहे नक्सलियों की सुरक्षा संबंधी नई चुनौतियों का सामना करना होगा तो दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में उर्वरता खो रही भूमि के कारण कृषि पर निर्भर ग्रामीण लोगों की नई समस्याओं से भी दो चार होना पड़ेगा।
– मानवेन्द्र कुमार सिंह
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