नटवर लाल एक ऐसा मुहावरा बन गया कि अगर कोई ठगी की कोशिश या मजाक करे तो उसे लोग उसकी तुलना नटवर लाल से करने लगते हैं। नटवर लाल ने वकालत पढ़ रखी थी। लेकिन उसका वकालत में मन नहीं लगा। वो तो कुछ और ही करना चाहता था तो उसने ठगी व चोरी का रास्ता चुन लिया। उसकी सबसे पहली चोरी 1000 रूपए कि थी। जो कि उसने अपने पड़ोसी के नकली हस्ताक्षर कर उनके बैंक खाते से निकलवाए थे। उसे तब यह ज्ञान हुआ कि वो किसी के भी जाली दस्तखत कर सकता है। बस फिर क्या था उसने इस हुनर का बखूबी उपयोग किया। नटवरलाल को ज्यादा अंग्रेजी नहीं आती थी। लेकिन जितनी आती थी वो उसके लिए काफी थी। अगर और ज्यादा अंग्रेजी आती होती तो शायद भारत ही नहीं विदेशों में भी उसके कारनामों की कहानियां सुनाई जाती।
एक बार उसके पड़ोस के गाँव में उस समय के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद आये हुए थे। नटवर लाल को उस समय डा. राजेंद्र प्रसाद से मिलने का मौका मिला। नटवर लाल ने उनके सामने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के भी हुबहू हस्ताक्षर करके सबको हैरान कर दिया। डा. राजेंद्र प्रसाद नटवर लाल से काफी प्रभावित हुए। नटवर लाल ने उन्हें कहा कि यदि आप एक बार कहें तो मैं विदेशियों को उनका कर्जा वापिस कर उन्हें भारत का कर्जदार बना सकता हूँ। तब डा. राजेंद्र प्रसाद ने उसे समझाते हुए साथ चलने को कहा और नौकरी दिलवाने का भी आश्वासन दिया। पर नटवर को अब नौकरी कहां सुहाती थी। वो तो बस अपनी मन मर्जी करना चाहता था।
अब तो उसके हाथ ऐसा जादुई चिराग लग चुका था जिससे वो कुछ ऐसा करने वाला था जो कोई साधारण व्यक्ति सोच भी नहीं सकता। वो जादुई चिराग था राष्ट्रपति के हस्ताक्षर। जिनका प्रयोग कर उसने तीन बार ताजमहल, दो बार लाल किला और एक बार राष्ट्रपति भवन बेच दिया। वो इतने पर ही नहीं रुका, बढ़ता ही चला गया। आज के जमाने में हम एक विषय के बारे में अक्सर चर्चा करते हैं कि फलाना मंत्री बिका हुआ है, फलाना अफसर बिक चुका है। लेकिन क्या कभी कोई सोच सकता था कि कोई मंत्रियों को ही बेच दे। नटवर लाल ने ऐसा कर दिखाया था। उसने संसद भवन को उसके 545 सांसद सहित बेच दिया था।
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