एक संत गांव में प्रवेश कर रहे थे। सैकड़ों भक्त उनके पास थे। अचानक एक व्यक्ति संत के सामने आया। उसके हाथ में एक पात्र था। वह कोयले और राख से भरा हुआ था। संत के निकट आते ही उसने राख और कोयला संत के सिर पर फेंक दिया। संत के भक्त क्रोधित हो उठे। उन्होंने कहा, ‘‘यह बदतमीजी है।’’ कुछ लोग उसे मारने के लिए आगे बढ़े। लेकिन संत ने कहा, ‘‘ शांत रहो।’’ लोग बोले, ‘‘महाराज, हमें मत रोकिए।
इस मूर्ख आदमी को सजा देना ही उचित है।’’ संत ने उत्तेजित लोगों को शांत करते हुए कहा, ‘‘यह आदमी मेरे लिए कितना अच्छा है। इसने मुझ पर जलते हुए अंगारे नहीं फेंके। बुझे हुए कोयले की राख फेंकी है। इससे मेरा कोई नुकसान नहीं हुआ। स्नान करते ही राख का सारा मैल साफ हो जाएगा।’’ संत के समर्थक भौचक्क होकर उन्हें देखते रह गए।
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