राष्ट्रीय समस्याएं बने मुद्दा

National Problems, Issues, Politics, Rain

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ से 26 जिलों के लाखों लोग प्रभावित हैं। भारी वर्षा से जन-धन दोनों की हानि हो रही है। काजीरंगा नेशनल पार्क के जीव-जंतुओं का जीवन संकट में पड़ा हुआ है। संसद में किसी भी राजनीतिक दल ने बाढ़ व उससे हो रही क्षति को लेकर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। क्योंकि संसद अभी राष्ट्रीय व उपराष्ट्रीय के चुनावों में व्यस्त है। राजनेता महज धर्म व जाति की ही राजनीति कर रहे हैं।

किसी भी दल की राजनीतिक सभाओं में बाढ़ या प्राकृतिक आपदा का कोई जिक्र नहीं होता। आसाम में बाढ़ के कारण कई स्थानों पर पीने के पानी की किल्लत खड़ी हो गई है। अभी राजनीतिक लोग खाने-पीने की वस्तुओं पर महंगाई की बात तो कर रहे हैं, लेकिन वह भी समस्या के पूर्ण हल के इच्छुक नहीं हैं। मानवीय मुद्दे महज वोट बटोरने तक सिमट कर रह गए हैं। वोट नहीं मिलता तो कोई परवाह नहीं की जाती।

वोट मिल जाता है तब अपने व परायों में सत्ता सुख बंट जाता है। जो सरकार के चहेते हैं उनके मजे, बाकि सब परेशानी में रहते हैं। अभी बाढ़ की दशा में सबसे पहले प्रभावितों के लिए सुरक्षित आश्रय उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।

तत्पश्चात भोजन व दवाओं की व्यवस्था किया जाना बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन राजनीति जाति व धर्म के राग अलाप रही है। बार-बार मीडिया भी इन्हीं दो बातों का शोर मचा रहा है। भारतीय राजनीति का चरित्र बेहद सतही हो चला है, इसमें आमजन की पीड़ा व उनकी सहायता की कहीं कोई चाहत नहीं है।

राजनीति दलालों, ठेकेदारों, माफिया, धर्म व जाति के पैरोकारों की दासी बनकर रह गई है। जबकि देश मेें अब परिस्थितियों ऐसी है कि राजनीति अपना चरित्र बदल भी सकती है। गरीबों, हिंसाग्रस्त लोगों की बिना स्वार्थ सहायता की जाए।

राष्ट्रीय मुद्दों में कल्याणकारी मुद्दों को वरीयता दी जाए। भ्रष्टाचार व सत्ता लोलुप राजनीति का दमन किया जाए। संवेदनशील नेता पैदा किए जाएं। व्यवसायी व शासक सोच रखने वाले नेताओं को किनारे किया जाए। तभी देश में समग्र विकास का सपना पूरा होगा।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।