राष्ट्रीय आम सहमति की आवश्यकता

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केन्द्र सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती जटिलताओं का निराकरण करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्थान पर एक नया नियामक निकाय बनाने की तैयारी कर रही है। यह एक बड़ा कदम है किंतु उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे बदलावों का सामना करने के लिए आवश्यक है।

हमारा देश पुराने संस्थानों और विनियमों में ही नहंी अटका रह सकता है कि उनमें स्थिति के अनुसार अपने आप बदलाव आ जाए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना ब्रिटेन के संस्थान के आधार पर 1956 में की गयी थी। ब्रिटेन ने 1989 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को समाप्त कर दिया था और उसके स्थान पर एक नया निकाय बनाया। यही स्थिति आस्ट्रेलिया की भी है। इसलिए ऐसा कोई कारण नहंी है कि हम पुराने प्रशासनिक ढांचे, अप्रसांगिक प्रक्रियात्मक विनिमयों में ही अटके रहें।

आज उच्च शिक्षा का स्वरूप इससे बिल्कुल अलग है जो छह दशक पूर्व था। वस्तुत: वर्तमान शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप एक नए तंत्र की आवश्यकता है। विद्यमान ढ़ांचे में छुटपुट सुधारों से काम नहंी चलने वाला। नए संस्थान का प्रस्ताव विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्यकरण पर किसी तरह का प्रश्न चिह्न नहीं लगा था अपितु यह शैक्षिक क्षेत्र में सुशासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

कोई भी संस्थान हमेशा के लिए उपयुक्त बना नहंी रह सकता है। अंतराषर््ट्रीय जगत में तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैकिंग में भारत 201-250 के सूमह से गिरकर 251-300 के समूह में पहुंच गया है। देश के केवल छह संस्थान विश्व के शीर्ष 400 संस्थानों में से हैं। देश के केवल 200 संस्थानों को व्यक्तिगत रैकिंग दी गयी है। जबकि चीन, हांगकांग और सिंगापुर के विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन इससे कहीं अच्छा है।

नेशनल एसेसमेंट और एक्रेडिटेशन काउंसिल भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन करता है तथा वर्ष 2016-17 में इसने 40 प्रतिशत विश्वविद्यालयों और 20 प्रतिशत कालेजों का मूल्यांकन किया और पाया कि नौकरशाही के केन्द्रीयकरण के कारण ये संस्थान विफल हो रहे हैं। वतमान में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के तत्वावधान में उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों को मान्यता देने के लिए देश में 15 स्वायत्त संस्थान हैं।

अमरीका में मान्यता देने की प्रणाली सक्षम और स्वतंत्र एजेंसियों को दी गयी है। अमरीकी विश्वविद्यालयों में निजी शैक्षिक संस्थानों को मान्यता सरकार द्वारा विनियमित शैक्षिक मानकों के अनुसार दी जाती है। कनाडा में विश्वविद्यालयों का विनियमन प्रांतीय सरकारों द्वारा किया जाता है तथा प्रांतीय मानकों के अनुसार मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों को कुछ गुणवत्ता मानकों को पूरा करना होता है।

भारतीय उच्च शिक्ष आयोग के नाम से प्रस्तावित नए विनियामक निकाय का उद्देश्य उच्च शिक्षा क्षेत्र का बेहतर प्रशासन करना और उच्च शिक्षा में गुणवत्ता का मूल्यांकन सुनिश्चित करना है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और भारतीय उच्च शिक्षा आयोग में तीन मुख्य अंतर इस प्रकार हैं – अनुदान देने का कार्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पास न रहकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास रहेगा।

अब तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा संस्थानों का जो निरीक्षण किया जाता है उसे बंद कर दिया जाएगा और उसके स्थान पर पारदर्शी प्रकटन की व्यवस्था होगी। आयोग को मानकों को पूरा न करने वाले संस्थानों को बंद करने की शक्ति प्राप्त होगी जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को ऐसी शक्ति प्राप्त नहंी थी। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के बारे में जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह आयोग शैक्षिक मानकों में सुधार, संस्थानों द्वारा शैक्षिक प्रदर्शन का मूल्यांकन, संस्थानों का संरक्षण, अध्यापक शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देने आदि पर ध्यान देगा।

आयोग उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुसंधान, शिक्षण और अदिगम को बढ़ावा देने के लिए एक संहिता बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। उच्च शिक्षा में आ रहे व्यापक बदलावों, उच्च शिक्षा में जाने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि और कालेजों की संख्या में वृद्धि के मद्देनजर संपूर्ण देश में न्यूनतम शैक्षिक मानक बनाए रखना आवश्यक हो गया है।

आयोग संस्थानों को खोलने और बंद करने के लिए मानक बनाएगा। संस्थानों को स्वायत्ता देगा, संस्थानों के स्तर पर महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए मानक निर्धारित करेगा। ये कार्य कानून के अंतर्गत स्थापित विश्वविद्यालयों से संबंधित हैं। आयोग एक नेट डाटा बेस के माध्यम से ज्ञान, उच्च शिक्षा संस्थानों के संतुलित विकास, उच्च शिक्षा में शैक्षिक विकास आदि के क्षेत्रों पर निगरानी रखेगा।

जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गयी थी तब देश में 20 विश्वविद्यालय, 500 कालेज और 2 लाख छात्र थे। वर्ष 2000 तक विश्वविद्यालय और इसके स्तर के संस्थानों की संख्या 250, कालेजों की संख्या 12 हजार और छात्र.ों की संख्या 84 लाख तक पहुंच गयी। वर्तमान में 726 विश्वविद्यालय, 38 हजार कालेज और 280 लाख छात्र हैं।

ज्ञान आयोग ने उच्च शिक्षा में अवसर बढ़ाने पर बल दिया था। एक आकलन के अनुसार 2015 तक नामांकन अनुपात 15 प्रतिशत तक लाने के लिए 1500 विश्वविद्यालयों की आवश्यकता थी। 1980 के दशक में स्वायत्त कालेजों की स्थापना होने लगी और वर्तमान में गैर-सहायता प्राप्त प्राइवेट कालेजों की संख्या बढ़ी।

ओपन विश्वविद्यालय और दूरस्थ शिक्षा का विस्तार हुआ है। इंजीनियंरिग, चिकित्सा और कानून की शिक्षा के लिए अलग विनियामक निकाय हैं। इनमें भी सुधार की आवश्यकता है और यदि शिक्षा के हर क्षेत्र में सुधार किया जाना है तो उन्हें भी इसी आयोग या किसी अन्य आयोग के अंतर्गत लाया जाना चाहिए।

-डॉ. एस सरस्वती (इंफा)

 

 

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