डबवाली अग्निकांड की 25वीं बरसी- शरीर के जख्मों के साथ-साथ मानसिक प्रताड़ना झेलती एक बेबस लड़की
डबवाली अग्निकांड को बीते आज 25 वर्ष हो गए हैं। लेकिन बहुत से पीड़ित ऐसे हैं जो आज भी अपने पैरों पर खड़ा होने की जद्दो-जहद कर रहे हैं। 34 साल की सुमन भी उन्हीें में से एक है। बीएड और टैट कर चुकी हैं लेकिन चेहरे पर आग से जलने के निशानों के कारण नौकरी से वंचित हैं। समय की सरकारों से केवल आश्वासन मिले लेकिन अब तक नौकरी नहीं।
अनिल कक्कड़/राजमीत सिंह चंडीगढ़/डबवाली
सवाल- सुमन, आपने उस भयानक मंजर को अपनी आंखों से देखा और झेला, हुआ क्या था उस दिन?
सुमन- मेरे चाचा जी के बच्चे डीएवी स्कूल में पढ़ते थे तो मैं अपनी एक सहेली के साथ वह फंक्शन देखने गई थी, तब मैं 9 साल की थी। पंडाल पूरा भरा हुआ था, जैसे तैसे कर हम स्टेज के पास पहुंचे तो हमें बैठने की सीट मिल गई। हम बैठे और करीबन दस मिनट बाद ही स्टेज से आवाज आई कि आग! आग! हमने पीछे मुड़ कर देखा तो आग लगी हुई थी, वो आग इतनी तेजी से फैली कि कुछ ही मिनटों में सारा पंडाल जल कर राख हो गया।
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सवाल- हादसे के बाद आपके लिए अब तक का समय कैसा रहा है?
सुमन- ये 25 के 25 साल ही मुश्किल भरे रहें हैं, रोजाना हर मोड़ पर एक नया संघर्ष। समाज से भी लड़ना है, अपने जख्मों से लड़ना है, मुआवजे इलाज के लिए कोर्ट में केस भी लड़ना। समाज भी एक तरह से बहिष्कार ही कर रहा था। समाज में विकलांग व्यक्ति के लिए अपनेपन की कमी है तो हम जैसों के लिए अपनापन बिल्कुल कम है। अब कुछ सालों से तस्वीर बदली है समाज हमें भी अपना हिस्सा मानने लगा है।
सवाल- सरकार ने इस हादसे के पीड़ितों के लिए नौकरी का भी ऐलान किया था, क्या आपको नौकरी मिली?
सुमन- नहीं, मैंने ग्रेजुएशन के बाद बीएड किया, फिर डीएड और टैट वगैरह सब क्लीयर किया। लेकिन नौकरी की मेरी जद्दोजहद जारी है। 2008 में मेरी बीएड हुई तो हुड्डा सरकार के सामने नौकरी के लिए गिड़गिड़ाई उसके बाद अब खट्टर सरकार के सामने कई बार पेश हो चुकी हंू लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। प्राइवेट स्कूल में नौकरी नहीं मिलती, मैनेजमेंट बोलती है कि चेहरा देख कर बच्चे डर जाएंगे। मंत्रियों, विधायकों, नेताओं सबने आश्वासन दिए हैं लेकिन नौकरी नहीं मिली। शारीरिक जख्म मिले ही मिले, अब नौकरी के लिए मानसिक प्रताड़ना मिल रही है।
सवाल- आपके अलावा कितने पीड़ित लोग हैं जो काबिल हैं लेकिन नौकरी से वंचित हैं?
सुमन- हम लोग तीन-चार ही हैं, जो ज्यादा जख्मी होने के चलते इस तरह से धक्के खा रहे हैं, बाकियों के काम धंधे सैट हैं। हम तो दुकान पर भी नहीं बैठ सकते। अगर सरकार हमें नौकरी दे देती तो दुनिया में एक अच्छा उदाहरण जाता कि हम जैसे लोग भी समाज की मुख्य धारा का हिस्सा हो सकते हैं।
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सवाल- नैना चैटाला ने आपको गोद लिया था, क्या कोई राहत मिली?
सुमन- अग्निकांड की 20वीं सालगिरह पर उन्होंने मुझे अडॉप्ट किया था, उन्होंने इलाज में मदद की। परंतु मेरा इलाज सरकार की तरफ से फ्री था, डेरा सच्चा सौदा के डॉ स्वप्निल गर्ग से मेरा इलाज हुआ। फिर जॉब के लिए सीएम खट्टर के पास मुझे नैना जी लेकर गर्इं, उस समय सीएम ने कहा कि इनका चेहरा जला हुआ है, इलाज हो जाए, जब चेहरा ठीक हो जाएगा तब नौकरी की बात कीजिए। लेकिन नौकरी अब तक नहीं मिली।
हमने पहले भी इन बच्चों की नौकरी के लिए प्रयास किया है, तब हम सरकार में नहीं थे, अब हम सरकार में है और सरकार का हिस्सा हैं, अब यदि ये बच्चे अपनी मांगें लेकर आते हैं, तो हम जरूर इनकी मदद करेंगे।
– अजय चौटाला, अध्यक्ष, जननायक जनता पार्टी
अग्निकांड संघर्ष समिति के माध्यम से हमने पीड़ितों की मदद की है, इसमें बहुत से लोगों की आर्थिक मदद भी की है। लेकिन यह सही है कि बहुत से पीड़ित अभी भी एक-अदद नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके लिए भी मैं दोबारा अब सूची बनवा कर प्रशासन और सरकार के माध्यम से उन्हें नौकरी दिलवाने की कोशिश करूंगा।
– अमित सिहाग, एमएलए, डबवाली
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