छात्र-छात्राओं को कंप्यूटर सहित आधुनिक पढ़ाई करने में मिलेगी मदद
-
होनहारों को भीषण गर्मी में पसीने से तरबतर होने से मिलेगी निजात
-
जनता और प्रशासन की सहभागिता का बेमिसाल नमूना किया पेश
‘‘मैं खुद सरकारी स्कूल से पढ़ा हूँ और मैं यह महसूस कर सकता हूँ कि जब सरकारी स्कूल के बच्चे को ऐसी सुविधा मिलती है तो उसे कितना अच्छा महसूस होता है।’’
चंडीगढ़/ श्रीगंगानगर (अनिल कक्कड़/ लखजीत)। कहते हैं हालात बेशक कितने भी मुश्किल हों, अगर नेक नीयत और ईमानदारी से किसी भी काम को शुरू किया जाए तो उसमें कामयाबी मिलकर ही रहती है। ऐसा की कुछ करके दिखाया है राजस्थान में नागौर के जिलाधिकारी डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने। डॉ. सोनी ने कोरोना के बुरे वक्त के बावजूद नागौर जिले के 875 सरकारी स्कूलों तक बिजली पहुंचकर बच्चों के बेहतरीन शिक्षा और सुनहरी भविष्य के सपनों को पंख दिए।
इनमें दर्जनों विद्यालय तो ऐसे थे, जहां बिजली पहुँचना किसी सपने के साकार होने से कम नहीं है। यह सब संभव हो पाया जिलाधिकारी डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी की एक खास योजना, ‘‘उजास’’ की वजह से। इस योजना में भागीदारी के लिए डॉ. जितेंद्र सोनी ने बड़े स्तर पर जिले के आम लोगों को प्रोत्साहित किया। आमजन और प्रशासन के बीच बेहतरीन तालमेल की बदौलत ही सरकारी स्कूलों में बिजली पहुंच पाई है।इस अभियान में 80 फीसदी जन सहयोग और 20 फीसदी सरकारी पैसा लगा है।
अभियान की खास बात ये रही कि यह ऐसे वक्त शुरू हुआ, जब कोविड की वजह से स्कूल बंद थे। इसके बावजूद नागौर के सरकारी विद्यालयों में ये कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और पूरे देश के लिए मिसाल बन गया। कलैक्टर डॉ. सोनी ने सच कहूँ से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के कुछ अंश…
सवाल : सरकारी स्कूलों में बिजली पहुंचाने के कार्य की शुरूआत कैसे हुई?
जवाब : जुलाई 2020 में मैंने जिला शिक्षा अधिकारियों की एक मीटिंग ली, जिसमें पता चला कि जिले में 910 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जिनमें बिजली नहीं है। उसी समय हमने ‘‘उजास’’ प्लान तैयार किया। जिसमें लोगों की भागीदारी से स्कूलों तक बिजली पहुंचाई जाएगी। सबसे पहले बिजली रहित स्कूलों से लिखित में जानकारी मंगवाई गई। उसके बाद शिक्षा और बिजली विभाग के अधिकारियों का एक गु्रप बनाया ताकि जल्द से जल्द सभी स्कूलों में बिजली पहुंचाने संबंधी कार्यवाही पूरी की जा सके।
बिजली विभाग के पास फाइलें जमा होती गई और डिमांड नोट्स बनते गए। जहां जितने बिजली के खंबों की जरूरत या अन्य सामान की जरूरतें, उस संबंधी डिमांड नोट्स बनते रहे। डिमांड नोट्स 4-5 हजार से लेकर सवा दो लाख तक भी पहुंचे। आबादी से दूर स्कूलों का डिमांड नोट ज्यादा था। इसके बाद हमने हर स्कूल की लिस्ट प्रीपेयर की। जहां कम पैसों का खर्च था, वहां स्थानीय ग्रामीणों की मदद ली गई और जहां ज्यादा खर्च था, वहां एसडीओ की मदद से बड़े दानदाताओं से संपर्क किया गया और जिन स्कूलों तक बिजली पहुंचाने का खर्च काफी ज्यादा था, वहां हमने बड़े इंडस्ट्रीलिस्ट्स से संपर्क किया, ताकि वे आर्थिक मदद कर सकें।
इस तरह से इस योजना का स्टैप बाई स्टैप और वीकली रिव्यू किया गया।सप्ताह के प्रत्येक सोमवार को बिजली और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ रिव्यू होता और मंगलवार को एसडीओज के साथ रिव्यू किया जाता। आज स्थिति यह है कि डिमांड नोट्स हर स्कूल का जमा हो चुका है और बिजली कनैक्शन करीबन 875 स्कूलों का हो चुका है। बाकि जो बचे हैं, उनका भी जल्द ही करवा दिया जाएगा।
सवाल : अभियान में कोई अड़चनें भी आई ?
जवाब : कोई भी अभियान आदेश देने से पूरा नहीं होता, जनता हमेशा योगदान देना चाहती है। आप किसी भी जन कल्याण के काम को हाथ में लें, आपको सहयोग मिलेगा, लेकिन आपको यह साबित करना होता है कि आपका लक्ष्य नेक है, जनहित का है। जनता के सहयोग से करीबन एक करोड़ रुपए की लागत का यह काम हो चुका है।
सवाल : ‘‘उजास योजना’’ के साथ आमजन को कैसे जोड़ा?
जवाब : उजास योजना में जनसहभागिता का बड़ा योगदान है। इसके लिए हमने बड़े उद्योगपतियों को बुलाया और बातचीत की। आप देखिए कि 1000 के करीबन स्कूल हैं और एक एवरेज के अनुसार 200 से 300 बच्चे हर स्कूल में हैं, और बच्चे पासआउट भी होते, नए भी आते हैं तो लाखों बच्चों ने बिजली को नहीं देखा, पंखा चलते हुए नहीं देखा।
उन्होंने कितने अभाव में अपना स्कूली जीवन व्यतीत किया है। वहीं बिजली के अभाव में बहुत सी अन्य महत्वपूर्ण चीजें भी प्रक्रिया में नहीं आ पाती, जैसे कंप्यूटर इत्यादि। तो बेसिक जरूरत बिजली थी। फिर हमने दानदाताओं को उत्साहित किया तो आज स्थिति यह आ पहुंची है कि लोगों के सहयोग से 875 सरकारी स्कूलों तक बिजली पहुंच गई है, पंखें लग गए हैं। अब बच्चे गर्मी के दिनों में पंखों की हवा में आराम से पढ़ाई कर सकेंगे।
सवाल : कोविड के दौर में इस काम को शुरू करने का ख्याल कैसे आया?
जवाब : बिल्कुल! कोविड के दौरान जब लॉकडाउन हुआ तो उस समय का हमें फायदा भी मिला। कोरोना नियमों का पालन करते हुए सभी ने मिल कर सहयोग किया, खास तौर पर स्कूलों के प्रबंधकीय स्टाफ के सहयोग से, शिक्षा और बिजली अधिकारियों ने मिलकर स्कूलों तक बिजली पहुंचाई। आप देखिए, कि जब स्कूल चल रहे होते हैं तो शिक्षा के अलावा कई कार्य होते हैं, जो स्टाफ को रोजाना देखने होते हैं, जिसमें अन्य कार्य जोड़ने के बाद समय का अभाव रहता है। लेकिन कोविड के पीरियड में स्कूलों के बंद होने के चलते यह जल्दी संपन्न हो गया। हमने इस समय का सदुपयोग किया।
सवाल : ‘उजास’ के सफल होने पर कैसा महसूस करते हैं?
जवाब : मैं खुद सरकारी स्कूल से पढ़ा हूँ और मैं यह महसूस कर सकता हूँ कि जब सरकारी स्कूल के बच्चे को ऐसी सुविधा मिलती है तो उसे कितना अच्छा महसूस होता है। तो मेरा मकसद यही है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को तमाम बेसिक सुविधाएं मिलें।
सवाल : आपका ‘‘चरण पादुका’’ अभियान भी सुर्खियों में रहा था, इसके बारे में भी बताएं।
जवाब : 2016 में जब जालौर जिले में मेरी पोस्टिंग थी, उस दौरान मैंने कुछ बच्चों को नंगे पांव स्कूल जाते हुए देखा। मैंने वहां तीन-चार बच्चों को बाजार से जूते खरीद कर दिलवा दिए, लेकिन ऐसे हजारों बच्चे थे, उस जिले में, जिनके पांव में जूते नहीं थे या थे तो बहुत बुरी हालत में थे। 15 जनवरी 2016 को हमने निर्णय लिया कि जितने भी सरकारी स्कूल के बच्चे हैं, उनकी लिस्ट लेते हैं और जूतों के नंबर के साथ।
इन बच्चों को जनता के सहयोग से जूते दिलवाने का कार्य हमने शुरू कर दिया और इस मुहिम का नाम रखा ‘‘चरण पादुका’’। हमें पता चला कि 25 हजार के करीबन बच्चे थे, जिनके पास जूते नहीं हैं और इनमें से ऐसे बहुत से थे, जिन्होंने पूरी जिंदगी में ढंग का जूता नहीं डाल कर देखा। हमने तय किया कि 26 जनवरी 2016 तक इन बच्चों को जनता के सहयोग से जूते दिलवाएंगे।
इस मुहिम में न केवल स्थानीय बल्कि चीन, इंग्लैंड, अमेरिका और अन्य कई देशों के नागरिकों ने भी अपना योगदान दिया। और करीबन 30 जनवरी तक हमने 30 हजार बच्चों को जूते मुहैया करवाये। इसके बाद यह मुहिम राजस्थान के कई अन्य जिलों में भी चलाई गई और अब भी कई जगह जारी है। फिलहाल 1.75 लाख बच्चों को चरण पादुका मुहिम के तहत जूते वितरित किए जा चुके हैं।
सवाल : स्कूली बच्चों के उत्थान के लिए आगे क्या प्लान है?
जवाब : अब आगे हमारी कोशिश है कि 5 सितंबर शिक्षक दिवस तक जिले के सभी स्कूलों बिजली से चलने वाली सभी बेसिक जरूरत चीजें जैसे कंप्यूटर इत्यादि मुहैया करवाए जाएं।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।