महाराष्ट्र में बजा Saint Dr. MSG के नाम का डंका

Happy Women's Day 2025
International Women's Day 2025 Special: पूज्य गुरु जी के प्रयासों से बुलंदियां छू रहीं बेटियां

मुंबई। एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केंद्र, शाह सतनाम जी परमसुख आश्रम, कलोते मोकाशी (मुंबई), एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केंद्र, शाह सतनाम जी सुखदपुर धाम, पिंपरद (फलटण), एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केंद्र, आटपाडी, और एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केंद्र, किसाननगर में पूज्य संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के अवतार माह की खुशी में साध संगत ने बड़े जोश और खुशी के साथ नामचर्चा की।

Maharashtra Naamcharcha
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इसी कड़ी में, नागपुर, पुणे, गडचिरोली, धानोरा, नासिक, और सांगली की साध संगत ने भी अपने-अपने शहरों में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ नामचर्चा की। पुणे की साध संगत ने अनाथ आश्रम में वहां के सभी अनाथ बच्चों और कर्मचारियों को फल व अन्य सामग्री वितरित करके भंडारा मनाया।

हर समस्या का हल है राम नाम: पूज्य गुुरु जी

सरसा। सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि यदि इन्सान थोड़ा-सा समय भी सुबह-शाम मालिक की याद में लगाए, तो चौबीसों घंटे जिस उद्देश्य को लेकर दुनियादारी में घूमता है शायद वो थोड़े से समय में ही हल हो जाएं। पूज्य गुरु जी आगे फरमाते हैं कि इन्सान के जीवन का उद्देश्य आजकल एक ही है शारीरिक व पारिवारिक सुख, हासिल करना, जिसको पाने के लिए सारा-सारा दिन झूठ, ठग्गी, कुफ्र, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार का सहारा लेता है, बात-बात पर झूठ बोलता है, बात-बात पर ईमान डोलता है,धर्मों की कसमें खाता है और ढीठ बना रहता है। इंसान दुनियादारी में इतना फंस जाता है कि उसे किसी बात की परवाह नहीं रहती, सपनों में ही महल बना लेता है और ख्यालों के जहाज पर चढ़ा हुआ नजर आता है पर जब आंख खुलती है तो चारपाई पर पड़ा होता है।

कहने का मतलब है कि इन्सान दिन-रात मारो-मार करता फिरता है, जिस तरह चींटिया बिल से निकलती हैं और दौड़ती-भागती रहती हैं, मधुमक्खियां भी छत्ता बनाती हैं,पर आखिर में उसे कोई और ही ले जाता है। उसी तरह इस कलियुग में इंसान बुरे-बुरे कर्म करता हैं, पापकर्मों से पैसा, धन-दौलत, जमीन-जायदाद बनाता है, लेकिन आखिर में नतीजा सब कुछ छोड़कर इस जहां से चला जाता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान की ये कैसी कहानी है? बचपन खेलने-कूदने में गुजारा, जवानी नदानी में , विषय-विकारों में और घर वालों ने भी सोचा कि इसको नत्थ-सांकल डालनी चाहिए तो फिर शादी हो गई। फिर हिला जब बाल-बच्चे हो गए, खूब ढोल-ढमाके बजाए, लेकिन जब वो बड़े हो गए तो ढोल-ढमाके तो क्या ताली नहीं बजी ताकि मक्खी उड़ सके।