नामचर्चा : ‘आ दर्श दिखा दो जी…’

Naamcharcha sachkahoon

थर्मल स्कैनिंग, सेनेटाइजेशन और सोशल डिस्टेंसिंग सहित कोरोना के मद्देनजर नियमों का पूर्णत: किया पालन

सरसा। डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के पावन महारहमोकर्म माह की खुशी में शाह सतनाम जी धाम में साध-संगत ने सतगुरु जी की महिमा का गुणगान किया। नामचर्चा (Naamcharcha) में साध-संगत ने असीम आस्था और दृढ़ विश्वास के साथ पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन अनमोल वचनों को एकाग्रचित होकर श्रवण किया। इस दौरान कोरोना के मद्देनजर थर्मल स्कैनिंग, सेनेटाइजेशन और सोशल डिस्टेसिंग सहित सभी नियमों का पूर्णत: पालन किया गया।

नामचर्चा (Naamcharcha) का आगाज पवित्र नारा ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ के साथ किया गया। इसके पश्चात कविराजों ने ‘सच्चा सौदा तारा अखियां दा’, ‘पाया है जब से सतगुरु तेरे चरणों में ठिकाना’, ‘आ दर्श दिखा दो जी, गुरु जी आप आजो जी’ और ‘सच्चे प्रेमी से ये मत पूछो’ आदि भक्तिमय भजनों के माध्यम से गुरु महिमा का यशोगान किया।

इस (Naamcharcha) अवसर पर बड़ी स्क्रीनों के माध्यम से पूज्य गुरु जी के रिकॉर्डिड अनमोल वचन चलाए गए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि प्रभु, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम एक संजीवनी है। जो इन्सान अपने जीवन को बोझ समझते हैं, दु:ख, दर्द, बीमारियों, परेशानियों में उलझे रहते हैं और पशुओं से भी बदत्तर ज़िंदगी गुजारते हैं। राम नाम के सहारे, अल्लाह, मालिक की भक्ति के सहारे उनकी तमाम परेशानियां दूर हो जाया करती हैं।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि राम-नाम एक ऐसी शक्ति है, जिसको जितना कोई इस्तेमाल में लाता है, उतनी ही खुशियां और चेहरे पर नूर बढ़ता चला जाता है। किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहती। इन्सान मालिक की तमाम खुशियों को हासिल करता है। अंदर बाहर उसके रहमोकर्म से लबरेज हो जाता है और अंदर की रूहानी मंजिलों पर तरक्की करता चला जाता है।

आपजी ने फरमाया कि मालिक के नाम में, प्रभु की भक्ति में ऐसी शक्ति है, जो इन्सान के जन्मों-जन्मों की भटकन को, प्यास को खत्म कर देती है और एक तंदुरूस्त प्यास लगा देती है, जो प्रभु के दर्शनों की होती है, अल्लाह, वाहेगुरु के दीदार की होती है, जिससे सुख-शान्ति बढ़ती चली जाती है। मालिक के प्यार में आदमी जितना प्यासा हो, उतनी ही ज्यादा खुशियां मिलती हैं।

जब ये प्यास मिट जाती है, अंदर की तड़प, कशिश खत्म हो जाती है तो वो इन्सान गुमराह होने में देर नहीं लगाता। इसलिए जब तक प्यास है, तड़फ है अपने सतगुरु मौला के दर्श दीदार की तो वो हर अड़चन को पार करता हुआ मालिक के दर्श-दीदार करके ही रहता है। वरना इन्सान इस घोर कलियुग में बुरी तरह से गुमराह हो रहे हैं मन-माया की वजह से। मनुष्य जन्म को पाकर जो लाभ उठाना था उससे वंचित हो गए हैं।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इन्सान जिस स्वाद के लिए, जिन खुशियों के लिए आप दौड़ते रहते हैं, भागते रहते हैं, वो खुशियां क्षणिक हैं, कुछ देर के लिए हैं। जीभा का स्वाद, जब तक कोई भी सामान मीठा, नमकीन, कड़वा जीभा के संपर्क में रहता है तो उसका आनंद आता है, स्वाद महसूस होता है, जैसे ही आप उसे निगल लेते हैं, जैसे ही वो आपके अंदर चला जाता है तो आपका मुंह फिर से बकबका हो जाता है।

इन्द्रियों के भोग विलास, जिसके लिए लोग कितने कलह-कलेश सहते हैं, कितने झगड़े होते हैं, कईयों के तो जीवन का मकसद ही भोग विलास बन जाता है, तो इसका आनंद भी क्षणिक होता है। लेकिन अल्लाह, वाहेगुरु, राम के नाम का आनंद, परमानंद एक बार चख लो तो दुनिया में आपको जो भी चीज सबसे ज्यादा स्वाददायक लगती है उससे अरबों गुणा बढ़कर नज़ारा, स्वाद आने लगेगा।

Naamcharcha sachkahoonNaamcharcha sachkahoonनामचर्चा (Naamcharcha) के दौरान दो नवयुगल डेरा सच्चा सौदा की मर्यादानुसार दिलजोड़ माला पहनाकर विवाह बंधन में बंधे। सेवादारों ने आई हुई साध-संगत को कुछ ही मिनटों में लंगर भोजन खिला दिया। तत्पश्चात साध-संगत सतगुरु के दर से खुशियां प्राप्त कर अपने घरों को लौट गई।

 

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