राजनीति में मुलायम सिंह के बयान के मायने?

Mulayam Singh's statement in politics?

मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अगली बार पुन: देश का प्रधानमंत्री बनने का बयान क्या दिया देश के भाजपा विरोधी दलो में खलबली मचा दी। संसद के अंतिम दिन लोकसभा में धन्यवाद भाषण देते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता ने कहा कि मैं कामना करता हूं कि लोकसभा के मौजूदा सभी सदस्य फिर से चुनाव जीत कर आयें। इसी के साथ उन्होने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यप्रणाली की सराहना करते हुये कहा कि उनमें सबको साथ लेकर चलने का गुण है। प्रधानमंत्री मोदी सभी का पूरा मान-सम्मान करते हैं। पक्ष-विपक्ष का कोई भी नेता उनसे किसी काम के लिये मिलता है तो वो तुरन्त उसका काम करवाते हैं। लोकसभा में मुलायम सिंह जब मोदी की तारीफ कर रहे थे तो कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके बगल वाली सीट पर बैठी थी।

मुलायम सिंह यादव के बयान का लोकसभा में भाजपा सदस्यों ने मेज थपथपाकर जोरदार तरीके से स्वागत किया। मुलायम सिंह के बयान पर बिहार की पूर्व मुखमंत्री राबड़ी देवी, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी प्रतिक्रिया जताई। राबड़ी देवी ने तो यहां तक कह दिया कि उन पर उम्र का असर हो गया है। वहीं समाजवादी पार्टी नेता आजम खान ने कहा कि नेताजी से उक्त बयान दिलवाया गया है। मुलायम सिंह यादव ने ऐसे समय में बयान दिया जब भाजपा विरोधी दल एक साथ मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने को प्रयासरत हैं। नि:संदेह मुलायम सिंह के बयान से उनको झटका लगना स्वाभाविक है। मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा में अनायास ही पीएम मोदी की तारीफ नहीं की थी, बल्कि उन्होंने एक सोची समझी रणनीति के तहत बयान दिया था।

राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह अखाड़े में पहलवानी करते थे। जिस तरह से कुश्ती के खेल में पहलवान सामने वाले पहलवान पर कब कौन सा दांव आजमा कर उसे चित्त कर दे इस बात का किसी को पता नहीं रहता है। उसी तरह मुलायम सिंह यादव कब क्या कर दें कोई नहीं जानता है। उस दिन संसद में मुलायम सिंह यादव ने भी अपने पुराने पहलवानी वाला दांव दिखाया था। 1967 में पहली बार विधायक बनने के बाद उन्होंने राजनीति के दंगल में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। राजनीति में लगातार सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाले मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री व केन्द्र सरकार में रक्षामंत्री रह चुके हैं।

2012 में उनकी समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था परन्तु उन्होने मुख्यमंत्री का पद स्वंय ना लेकर अपने पुत्र अखिलेश यादव को दे दिया था। 1996 से 1998 तक देश में देवेगौड़ा व इन्द्रकुमार गुजराल सरकार गिर गयी तो प्रधानमंत्री पद के लिये उनका नाम प्रमुखता से उभरा व वो प्रधानमंत्री बन भी जाते यदि उनके स्वजातीय नेता लालूप्रसाद यादव व शरद यादव ने उनका खुलकर विरोध ना करते। प्रधानमंत्री बनते-बनते रह जाने का उनको आज भी मलाल है। इसके चलते उनको जब भी मौका मिलता है वो लालू प्रसाद यादव व शरद यादव को लंगड़ी मारने से नहीं चूकते हंै। मुलायम सिंह यादव की पार्टी को जिस तरीके से उनके पुत्र अखिलेश यादव ने हाईजैक किया उससें विपक्ष में उनका महत्व नहीं रहा। हर जगह उनके पुत्र को बुलाया जाने लगा।

फिर उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव ने उनकी बिना सलाह के ही मायावती से गठबंधन कर सीटों का बटवारा कर एक साथ चुनाव लड़ने की घोषण की जो मुलायम सिंह यादव को नागवार गुजरी है। मुलायम सिंह यादव के एक बयान ने जहां उनको राजनीति की मुख्यधारा में ला दिया वहीं विपक्ष के नेताओं को चारो खाने चित्त कर दिया। भाजपा विरोध की राजनीति कर रहे दलों के नेताओं को भी लगने लगा कि नेताजी को साथ लिए बिना विपक्ष की राजनीति अधूरी रहेगी। मुलायम सिंह ने भी बयान देकर यह जता दिया की उनमें अभी कूबत है वो राजनीति में चूके नहीं हैं।

मुलायम सिंह यादव को करीब से जानने वाले भी उनके स्वभाव को नहीं समझ पाये हैं। वो कब क्या कर जाये कोई नहीं जान पाया है। 2012 के राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त वो ममता बनर्जी के साथ मिलकर प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति का चुनाव लड़वाने के खिलाफ थे। मगर अचानक ही उन्होंने ममता दीदी को गच्चा देकर प्रणब बाबू का समर्थन देने की घोषणा कर ममता दीदी को अकेला छोड़ दिया।

उससे पूर्व 2008 में मुलायम सिंह अमेरिका से भारत के परमाणु संधी करने के खिलाफ कम्यूनिष्टो के साथ मिलकर मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में आगे थे मगर संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के वक्त उनकी पार्टी ने सरकार के पक्ष में वोटिंग कर मनमोहन सिंह सरकार को गिरने से बचा दिया। जबकि 1999 में उन्होने सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा जोरो से उछालकर कांग्रेस को सरकार बनाने से रोक दिया था। 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में मुलायम सिंह यूपीए उम्मीदवार लक्ष्मी सहगल के पक्ष में थे मगर अन्तिम क्षणो में एनडीए उम्मीदवार अब्दुल कलाम आजाद का समर्थन कर उनके पक्ष में मतदान किया।

बहरहाल मुलायम सिंह यादव ने अपना दांव खेल दिया है जिसका आगामी लोकसभा चुनाव में प्रभाव दिखेगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा। मुलायम सिंह ने बयान देकर भाजपा के हाथ में एक ऐसा हथियार दे दिया है जिसका उपयोग वो चुनावो में करेगी। यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा कि मुलायम सिंह के बयान का भाजपा को कितना फायदा हो पायेगा व विपक्षी दलो को कितना नुकसान। इसका आकलन करने में राजनीतिक समीक्षक जुटे हैं।

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