- पहले शिक्षक भी बनें और फिर राम मनोहर लोहिया के शिष्य राजनीति में आए |
- Mulayam Singh Yadav
- वर्ष 1992 में बनाई अपनी समाजवादी पार्टी
- जीवन के आखिरी चुनाव में वे मैनपुरी सीट से रिकॉर्ड जीत दर्ज कर सांसद बनें
संजय कुमार मेहरा
गुरुग्राम। समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। वह 83 वर्ष के थे। वह पिछले करीब डेढ़ माह से अस्पताल में भर्ती थे। उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और वह वेंटिलेटर पर थे। यादव के पुत्र एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर यह जानकारी दी, ‘मेरे आदरणीय पिता जी और सबके नेता जी नहीं रहे। बताया जा रहा है कि नेता जी ने आज सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर अंतिम सांस ली।
मुलायम सिंह यादव। (Mulayam Singh Yadav) वह नाम जिसके बिना देश की खासकर यूपी की राजनीति अधूरी है। यूं कहें कि 5 फुट 3 ईंच के मुलायम सिंह का राजनीति और समाज में कद बहुत बड़ा है। भले ही उनकी शुरुआत पहलवानी के साथ हुई हो, लेकिन राजनीति में जब उन्होंने कदम रखा तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। तमाम बाधाएं और असफलताएं भी उनकी राह में आई, लेकिन वे हर हाल में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते रहे। वे वर्ष 1974 से 2007 के बीच सात बार विधायक बनें। वर्ष 1989 से 1991, 1993 से 1995 और 2003 से 2007 तक तीन अल्प कार्यकाल के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
यूपी के इटावा जिला के सैफई गांव में 22 नवम्बर 1939 को सुघड़ सिंह यादव एवं मूर्ति देवी के घर जन्में मुलायम सिंह यादव ने आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक तक पढ़ाई की। बीटी करने के बाद वे इंटर कालेज में प्रवक्ता लग गए। उनका पारिवारिक व्यवसाय तो कृषि रहा, लेकिन बाद में वे सामाजिक कार्यकर्ता के साथ राजनीति के क्षेत्र में आ गए। समाजवादी पार्टी की स्थापना करने वाले मुलायम सिंह यादव एक सफल राजनीतिज्ञ रहे हैं। वे वर्तमान में आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद हैं। मुलायम सिंह ने पहला विधानसभा चुनाव 1967 में लड़ा और जीत दर्ज की। उन्होंने 1996-1998 में भारत के रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। मुलायम सिंह ने कई राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन किया। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1992 में अपने राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी का नेतृत्व करने का निर्णय लिया। उनके नेतृत्व में सपा ने कई बार जीत हासिल की। कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने पार्टी को यूपी में खड़ा किया और वे यूपी में एक विरोधी राजनीतिक दल के रूप में स्थापित हो गए। इस समय वे अपने छठे कार्यकाल के लिए संसद सदस्य हैं। वे नेताजी के नाम से मशहूर हैं।
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मुलायम सिंह यादव का राजनीति में आना भले ही अपना निर्णय ना हो, लेकिन जिस उम्मीद के साथ उन्हें राम मनोहर लोहिया ने राजनीति में बढ़ाया, वे राजनीति में स्थापित हो गए। लोहिया द्वारा दी गई सलाह से ही मुलायम सिंह यादव नेे राजनीति के दंगल में मजबूती से पैर जमा लिए। पहले पहलवान, फिर शिक्षक और फिर राजनीति में आए मुलायम सिंह यादव कई दलों में शामिल रहे। अपना राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी बनाकर उन्होंने यूपी जैसे बड़े राज्य पर तीन बार राज किया, यानी वे यूपी में मुख्यमंत्री बनें। धर्म और जाति की प्रयोगशाला में यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह को कर्ता-धर्ता माना गया।
मुलायम की साइकिल पर सवारी हुई हिट | Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह 80 के दशक में लखनऊ की सड़कों पर साइकिल की सवारी करते नजर आते थे। साइकिल से ही वे अखबारों के कार्यालयों और पत्रकारों के पास पहुंचते थे। जमीन से जुड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह ने अपनी पहचान बनाई। उनकी राजनीति का एक कड़वा सच यह भी है कि उन्हें शुरू में तो लोहियावादी, समाजवादी माना जाता था। धर्मनिरपेक्ष की वे बातें करते थे। 80 के दशक के बाद वे यादवों के ही नेता माने जाने लगे। अपने गांव से सदा जुड़े रहे मुलायम सिंह ने किसानों के दिलों पर भी राज किया। राम मंदिर आंदोलन के समय वे मुसलमानों के पसंदीदा नेता बनें।
लोहिया और चरण सिंह से सीखे राजनीति के दांवपेंच
मुलायम ङ्क्षसह यादव ने 60 के दशक में राममनोहर लाल लोहिया और चौधरी चरण सिंह से सीखने शुरू किए। लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे। लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया। वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में विजेता बनते रहे। वे कभी यूपी विधानसभा तो कभी विधान परिषद के सदस्य बनते रहे। उनकी संयुक्तसोशलिस्ट पार्टी थी, वहीं दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल। इस दल में वह 1968 में शामिल हुए। वैसे चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया। ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी।
वंशवाद के लिए इंदिरा गांधी को कोसते थे मुलायम सिंह यादव
80 के दशक में ही वे चरण सिंह सिंह के साथ मिलकर इंदिरा गांधी को वंशवाद के लिए कोसते थे। वे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते थे, जब वे इंदिरा गांधी पर वंशवाद के लिए सवाल खड़े करते। समय के साथ उन्होंने खुद भी वंशवाद में शामिल करते हुए अपने बेटे और परिवार के अन्य सदस्यों को राजनीति में आगे बढ़ाया। हालांकि चौधरी चरण सिंह से वे क्षुब्ध हो गए थे, जब उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल में अमेरिका से लौटे अपने बेटे अजीत सिंह को पार्टी की कमान देनी शुरू कर दी। इस दौरान में मुलायम ङ्क्षसह यादव की रालोद में काफी गहरी पैठ बन रही थी। चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल टूट गया। उस समय रालोद के कई बड़े नेता मुलायम सिंह के खेमे में थे। उन सबको साथ लेकर वर्ष 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी गठित की। इसका प्रतीक चिन्ह उन्होंने उसी साइकिल को बनाया, जिस पर सवार होकर वे लखनऊ की हर सड़क पर नजर आते थे। मुलायम ङ्क्षसह यादव अपनी कार्य क्षमता और सूझबूझ से राजनीति में मजबूत होते गए।
आपातकाल में जेल भेेजे गए मुलायम | Mulayam Singh Yadav
राजनीति में मुलायम ङ्क्षसह की पकड़ मजबूत होती जा रही थी। आपातकाल के बाद देश की सियासत का माहौल भी बदला। मुलायम सिंह व चरण सिंह आपातकाल में जेल भेजे गए। उस समय की राजनीति में विपक्षी राजनीति से जुड़े हर छोटे-बड़े नेता को गिरफ्तार किया गया। आपातकाल के बाद सभी छोटे-बड़े दलों ने खुद को एकता के सूत्र में बांधा और एक मंच पर आकर कांगे्रस से मुकाबला करने की योजना बनाई। भारतीय लोकदल का विलय नई बनीं जनता पार्टी में हो गए और मुलायम ङ्क्षसह यादव मत्री बन गए।
मुलायम का अजीत ङ्क्षसह से रहा छत्तीस का आंकड़ा | Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह ने चरण सिंह के निधन के बाद उनके बेटे अजीत ङ्क्षसह का नेतृत्व अस्वीकार कर दिया और भारतीय लोकदल को तोड़ दिया। इसके बाद वर्ष 1989 के चुनावों में जब एक बार फिर से कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी एकता मजबूत हो रही थी, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस से मुखर होकर बाहर निकले। इसके बाद विपक्षी एकता में जनता दल के रूप में नया दल अस्तित्व में आया। खास बात यह है कि इस दल में जितने भी नेता थे, वे सब प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे।
मुलायम सिंह से चंद्रशेखर भी हो गए थे खफा Mulayam Singh Yadav
जनता के गठन के समय मुलायम सिंह को चंद्रशेखर का करीबी माना जाता था। वे चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाने से सहमत थे। जब ऐसा समय आया तो वे अपनी बात से पलटी मार गए और उन्होंने विश्वनाथ प्रताप ङ्क्षसह को प्रधानमंत्री बनाने पर सहमति जताई। ऐसा करने पर चंद्रशेखर मुलायम ङ्क्षसह यादव से खफा हो गए। मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस का भी साथ दिया है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को उन्होंने बचाया।
80 के दशक में मुलायम पर कई हमले हुए
80 के दशक में मुलायम सिंह राजनेताओं की मुख्य सूची में थे। यानी वे बेहद मजबूत थे। इस दौरान उनके लिए काफी समय मुश्किल भरा भी रहा। उन पर कई बार हमले हुए। ऐसे समय में उनके भाई शिवपाल सिंह यादव उनके लिए ढाल बनकर खड़े हुए। उन्हें बचाने में शिवपाल यादव ने सदा अहम भूमिका निभाई। भाई के भाई के लिए इस तरह के प्रेम ने ही दोनों भाइयों को करीब रखा।
8 बार विधायक और 7 बार सांसद बनें मुलायम | Mulayam Singh Yadav
मुलायम सिंह यादव 1967 से लेकर 1996 तक 8 बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के लिए चुने गए। एक बार 1982 से 87 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। 1996 में ही उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा और चुने गए। इसके बाद से अब तक 7 बार लोकसभा में पहुंच चुके हैं। अभी भी वे लोकसभा सदस्य हैं। वर्ष 1977 में वह पहली बार यूपी में पहली बार मंत्री बनें। तब उन्हें कॉ-ऑपरेटिव और पशुपालन विभाग दिया गया था। मुलायम सिंह ने वर्ष 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला। 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे। पहली बार 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बनें। वर्ष 1993-95 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनें। 2003 में तीसरी बार सीएम बने और चार साल तक यूपी की सत्ता पर काबिज रहे। वर्ष 1996 में जब एचडी देवगौड़ा सरकार बनी। देवगौड़ा सरकार में मुलायम ङ्क्षसह यादव भारत के रक्षा मंत्री बनें। वर्तमान में वे यूपी के मैनपुरी लोकसभा सीट से सांसद हैं। वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव मे उन्होंने रिकॉर्ड मतों से इस सीट से जीत हासिल की थी। अब वर्ष 2022 में करीब डेढ़ महीने पहले मुलायम सिंह यादव की तबियत काफी खराब हो गई। फिलहाल वे गुरुग्राम के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में भर्ती हैं और उनकी हालत काफी नाजुक है।
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