पंजाब की साध-संगत ने सलाबतपुरा में धूमधाम से मनाया एमएसजी सत्संग भंडारा
- मानवता भलाई कार्यों के तहत जरूरतमंद बच्चों को दिए वस्त्र | Salabatpura Bhandara
सलाबतपुरा (सुखजीत मान/सच कहूँ टीम)। Salabatpura Bhandara: एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केन्द्र शाह सतनाम जी रूहानी धाम राजगढ़ सलाबतपुरा में पंजाब की साध-संगत ने पवित्र एमएसजी सत्संग भंडारा धूमधाम से मनाया। भीषण गर्मी के बावजूद भंडारे में भारी संख्या में साध-संगत ने शिरकत की। साध-संगत के आगमन के मद्देनजर पानी व छाया के लिए पुख्ता प्रबंध किए गए थे, ताकि गर्मी के मौसम में किसी को कोई परेशानी न हो। Salabatpura Bhandara
पावन भंडारे की शुरूआत बेशक रविवार सुबह 11 बजे हुई, लेकिन साध-संगत का शनिवार सांय से ही आना अनवरत जारी रहा। इस अवसर पर मानवता भलाई कार्यों के तहत जरूरतमंद परिवारों के 76 बच्चों को कपड़े वितरित किए गए।गौरतलब है कि डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने सन् 1948 के अप्रैल माह में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना करने के पश्चात मई महीने में पहला सत्संग फरमाया था। इस लिए साध-संगत मई महीने को पवित्र एमएसजी सत्संग भंडारा माह के रूप में मनाती है।
पावन भंडारे में कविराजों ने भक्तिमय भजनों के माध्यम से सतगुरु जी की महिमा का गुणगान किया। भजनों की मनमोहक धुनों पर बच्चे, बुजुर्ग, युवा सहित हर आयुवर्ग के श्रद्धालुओं ने नाचकर अपनी खुशी का इजहार किया। इस अवसर पर सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन अनमोल वचन साध-संगत ने पूरे श्रद्धाभाव से एकाग्रचित होकर श्रवण किए। इस अवसर पर पूज्य गुरु जी द्वारा अप्रैल महीने में भेजी गई चिट्ठी एक बार फिर साध-संगत को पढ़कर सुनाई गई। पवित्र भंडारे की समाप्ति पर आई हुई साध-संगत को सेवादारों ने कुछ ही मिनटों में लंगर-भोजन खिला दिया। Salabatpura Bhandara
हम सबका मालिक एक है: पूज्य गुरु जी
सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि वो मालिक, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ओम, हरि, राम, ईश्वर, श्याम अरबों नाम हैं उसके। पर वो कण-कण में है। हमने हमारे सभी धर्मों के पाक-पवित्र ग्रन्थों को पढ़ा। आपको रोज बोलते हैं कि पढ़ने का नजरिया अलग-अलग होता है। हमारा नजरिया बेपरवाह शाह सतनाम, शाह मस्तान जी दाता रहबर ने ऐसा बना दिया, नॉन मेडिकल के स्टूडेंट थे, सार्इंस में भी बड़ी रूचि थी, ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, सतगुरु जी से तो पाँच साल के ही जुड़ गए थे।
उन्होंने बोला कि जो भी पढ़ना है वो एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पढ़ना है। हमने पाक-पवित्र वेदों को पढ़ा, पाक पवित्र कुरान शरीफ को पढ़ा, पाक पवित्र गुरबाणी को पढ़ा, यानि बहुत सारे संत-महापुरुषों की पवित्र रचनाओं को पढ़ा। लगभग सबकुछ कॉमन है यानि एक समान है। कहने का अंदाज अलग है, पानी को जल कहने से, वॉटर, वाशर, आब, नीलू, नीरू कितने भी नाम हैं, क्या पानी का स्वाद या रंग बदलेगा?
कभी नहीं बदलता। उसी तरह अलग-अलग भाषाओं में उस शक्ति के अलग-अलग नाम हैं। वो न कभी बदला था, बदला है और न कभी बदलेगा। वो एक था, एक है और एक ही रहेगा। उस जैसा न कोई हुआ था, न हुआ है और न कोई होगा। वो कण-कण, जर्रे-जर्रे में मौजूद है, वो हर जगह में है। अगर वो कण-कण में है, जर्रे-जर्रे में है तो आपका शरीर तो बहुत बड़ा कण है, बहुत बड़ा जर्रा है। इसका मतलब है कि वो अंदर रहता है। पर आपकी निगाह ही नहीं पड़ती, है ना हैरानीजनक बात।
वो आपके अंदर आवाज दे रहा है कि मेरी आवाज सुन लो, तू बाहर जाकर आवाज दे रहा है कि तू मेरी आवाज सुन ले। बड़ी अजीबोगरीब दशा हुई पड़ी है इन्सान की। हम सर्वधर्म की बात कर रहे हैं। दिमाग, विचारों में है वो (भगवान), दिल में है वो और शरीर रूपी मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा में वो बैठा हुआ है। और एक शब्द, उसे अलग-अलग आवाज कही गई, है तो वो मालिक की आवाज। हिन्दू धर्म में धुन, सिख धर्म में अनहद बाणी या धुर की बाणी, इस्लाम धर्म में बांग-ए-इलाही, कलमा-ए-पाक और ईसाई धर्म में गॉड्स वॉइस एंड लाइड या लाइट्सं एंड साउंड। भाषा बदलने से क्या फर्क पड़ता है।
मतलब एक ही है कि उसने आपके अंदर एक आवाज छोड़ रखी है, अगर उसे अंदर फॉलो करोगे तो उस मालिक तक पहुँच जाओगे। पर आपके कानों में तो काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया, चुगली-निंदा, दूसरों की टांग खिंचाई, ठगी-बेईमानी की जबरदस्त मोहरें लगी हुई हैं। तो दूसरी तो आवाज सुनाई देती ही नहीं जो खुद के अंदर चल रही है। उसकी तरफ तो निगाह जाती ही नहीं। कैसे उस तक निगाह को लेकर जाएं, ध्यान एकाग्र करना होगा। मैथड़ आॅफ मेडिटेशन, गुरुमंत्र, कलमा, नाम-शब्द उसका अभ्यास करना होगा।
आपजी ने आगे फरमाया कि अन्दर वाले मालिक को अन्दर से ही महसूस करो, वो जरूर मिलेगा। दुनियावी वस्तुओं की जगह मालिक को अपना बना लो तो बाकी चीजें अपने आप ही आपकी बन जाएंगी। विचारों को शुद्ध करो तो मालिक घर में बैठे ही मिल जाएगा। अगर विचार शुद्ध नहीं तो सारी दुनिया घूमने पर भी नहीं मिलेगा। आपजी ने साध-संगत को हर धार्मिक स्थल के आगे सजदा करने के वचन फरमाते हुए कहा कि धार्मिक स्थानों में गुरुओं, पीरों, फकीरों की पवित्र वाणी होती है इसलिए सजदा जरूर किया करें।
यह भी पढ़ें:– कुछ आत्माए मरने के बाद भी दुसरो का भला करके जाती है, नमन है ऐसी रूहों को: शिव शंकर