भारत के बेहद खास रिश्ते वाले देशों में ‘बांग्लादेश’ का नाम अग्रणी है, वह भी बांग्लादेश के जन्म के समय से ही। रिश्ते की मजबूती का यह क्रम अनवरत बढ़ा है और यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि किस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर बांग्लादेशी समकक्ष की आगवानी की है। वस्तुत: इंदिरा गांधी ने जिस प्रकार बांग्लादेश को तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्त कराया तो एक तरह से यह रिश्ता स्वाभाविक ही था। चूंकि चीन, पाकिस्तान जैसे देश भारत के साथ दूसरे पड़ोसियों के रिश्तों को नुक्सान पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं, ऐसे में बांग्लादेश के साथ भारत का कूटनीतिक संबंध और भी खास हो जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत लगातार बांग्लादेश से अपना संबंध मजबूत करने में दो कदम आगे बढ़कर पहल करता रहा है।
1947 में हुए भारत बंटवारे की कटु यादें भला किसे याद नहीं होंगी। दुनिया में उतना भीषण कत्ल-ए-आम संभवत: दूसरी जगह न हुआ होगा। पर उसका नतीजा क्या निकला, जिस धर्म के नाम पर मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान मांगा था, वह तीन दशक भी संयुक्त रूप में पूरा न कर सका और बिखर गया। आखिर, वह जुड़ा रहता भी तो किस प्रकार? चूंकि, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) कहे जाने वाले देश की संस्कृति, भाषा पश्चिमी पाकिस्तान से सर्वथा भिन्न थी। ऊपर से वहां के लोगों के साथ पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा किया जाने वाला भेदभाव ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ। बांग्लादेशियों के अधिकारों को कुचलने में पाकिस्तान की सेना ने जो जुल्म ढाये, उससे समस्त विश्व की आँखें नम हो उठी थीं। आज के समय में हम सीरिया में गृहयुद्ध की जो हालत देख रहे हैं, उससे कम दुरूह हालात न थे उस समय! अंतत: उस अत्याचार से जब भारत पर दुष्प्रभाव पडऩे लगा तब इंदिरा गाँधी के रूप में भारतीय राजनीतिक नेतृत्व ने कठोरतम निर्णय लिया और फिर उदय हुआ बांग्लादेश का। जाहिर तौर पर बांग्लादेश के जन्म के समय से ही भारत का रिश्ता बेहद करीबी रहा है, जो लगातार आगे बढ़ता जा रहा है।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि शेख हसीना से भारत का बेहद करीबी जुड़ाव रहा है। 15 अगस्त 1975 को जब बांग्लादेश में सेना के गुट ने शेख मुजीबुर रहमान के घर पर हमला किया, तो शेख हसीना के परिवार के अधिकांश सदस्य मौत के घाट उतार दिए गए थे। उनके पिता और बांग्लादेश की आजादी के नायक शेख मुजीबुर रहमान का शरीर गोलियों से छलनी कर दिया गया था। किसी तरह शेख हसीना और उनकी बहन बच गयी थीं, पर उन्हें कहीं और राजनीतिक शरण नहीं मिल सकी। फिर इंदिरा गाँधी ने कई सालों तक शेख हसीना और उनके पति डॉक्टर वाजेद को सुरक्षा और शरण प्रदान की। बाद में स्थिति में सुधार होने के बाद शेख हसीना 17 मई, 1981 को अपने वतन लौट सकी थीं, जहाँ लाखों बांग्लादेशियों ने उनका स्वागत किया और फिर वह अपने पिता का रूतबा हासिल करने में सफल भी रहीं। पिछले दिनों भारत और बांग्लादेश के बीच हुए ‘परमाणु समझौतेझ् को दक्षिण एशिया की राजनीति में बड़े बदलाव के तौर पर देखा गया था।
सच कहा जाए तो भारत और दूसरे दक्षिण एशियाई देश ड्रैगन की दोहरी चाल को बखूबी समझते हैं। वह जानते हैं सच्चे मित्र भारत जैसी स्वाभाविक दोस्ती चीन से कभी हो ही नहीं सकती, इसलिए भारत को कूटनीति की बिसात पर सधी चाल से चलना होगा और संतुलन बनाकर चीन की दोस्ती के दांव को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में मजबूती से उजागर करना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के बीच लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट के सफल होने के बाद समुद्री मामलों के सुलझने की उम्मीद बढ़ गई है। हालांकि, ये तो एक छोटी सी झलक है, क्योंकि भारत और बांग्लादेश के बीच कई सारे समझौते हो रहे हैं, जिनका प्रारूप और प्रभाव आने वाले समय में और भी बेहतर ढंग से नजऱ आएगा। वैश्विक परिदृश्य में दो देशों के संबंधों की अहमियत बार बार प्रमाणित हुई है। वहीं बात जब बांग्लादेश जैसे महत्वपूर्ण पड़ोसी की हो तो फिर यह अहमियत और भी बढ़ जाती है। निश्चित रूप से दोनों देशों की आने वाली पीढिय़ां पीएम नरेंद्र मोदी और बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना का धन्यवाद करेंगी, जिनके सकारात्मक दृष्टिकोण से दक्षिण एशियाई देशों के विकास का नया और चौड़ा मार्ग प्रशस्त हुआ है। जगजीत शर्मा