एक दिन चाणक्य के घर कोई ज्योतिषी आए। चाणक्य कहीं बाहर गए हुए थे। मां ने जिज्ञासावश ज्योतिषी को अपने पुत्र की जन्मपत्री दिखाई और उसके भविष्य के बारे में पूछा। ज्योतिषी ने जन्मपत्री देखकर कहा, ‘मां, तेरे पुत्र के ग्रह बड़े ही प्रबल हैं। वह जरूर चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। यदि मेरी बात का विश्वास नहीं हो तो देख लेना, उसके सामने के दांत पर नागराज का निशान है।’ ज्योतिषी की यह भविष्यवाणी सुनकर मां अवाक रह गई।
वह अपने बेटे को बेहद प्यार करती थी और उसे हर घड़ी अपने पास देखना चाहती थी। किंतु चक्रवर्ती सम्राट बनने पर तो वह उससे बिछुड़ जाएगा। राजकाज में इतना लीन हो जाएगा कि उसे मेरा ध्यान ही नहीं रहेगा। ज्योतिषी चला गया, पर मां सोच में पड़ गई। चाणक्य जब लौटे तो मां को उदास पाया। कारण पूछने पर मां ने ज्योतिषी से सुनी सारी बात बता दी।
फिर अवरुद्ध कंठ से बोली, ‘मैं जानती हूं तू चक्रवर्ती सम्राट बनकर मुझे भूल जाएगा।’ चाणक्य मां की चिंता से विचलित हो गए। बोले, ‘मां, ऐसा नहीं होगा। पर तुम कैसे कह सकती हो कि मैं चक्रवर्ती सम्राट बनूंगा?’ मां ने कहा, ‘देख तेरे सामने के दांत पर नाग का चिह्न है।’ चाणक्य ने आईने में देखा तो मां की बात सही निकली। इसके बाद उन्होंने एकांत में जाकर पत्थर से दांत तोड़ लिया, मां के सामने उसे रखते हुए बोले, ‘यह लो मां, तुम्हारे सामने मेरे लिए चक्रवर्ती सम्राट के पद का कोई मूल्य नहीं है।’
यह देख मां की आंखों में आंसू आ गए। वह बोली, ‘मां तो अपनी ममता में हर प्रिय वस्तु न्यौछावर करती है, पर तुमने अपनी मां के लिए एक क्षण की भी देर किए बिना इतनी बड़ी चीज कुर्बान कर दी। तुम्हें जन्म देकर मैं धन्य हो गई पुत्र।’
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