कविता – माँ मैं फिर आऊंगा

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Kavita: तेरे आँगन को, किलकारियों से फिर महकाऊँगा !
तूं घबरा मत ! माँ मैं फिर आऊंगा

बेशक दुनिया से विदा हो चला, पर तेरे आस – पास सदा मैं रहूंगा,
झेली हो छाती पर गोलियां कितनी, पर दर्द भरी कहानियाँ तुझसे न कहूंगा !
मत रोना मेरी कब्र पर, किस्सा फिर कभी सुनाऊंगा।
तूं घबरा मत ! माँ मैं फिर आऊंगा

तेरे हाथों की खुशबूदार रोटियां, मुझे अब भी लुभाती हैं
खेतों की वो पगडंडियां, मुझे घर का पता बताती हैं ।
सपने में तुझसे कभी, मीठी बातें करके चला जाऊंगा
तूं घबरा मत ! माँ मैं फिर आऊंगा

तेरे अहसानों का कर्ज, कभी मैं भूल नहीं पाउँगा
तेरे ममता के किस्से, माँ मैं स्वर्ग में भी सुनाऊंगा
तूं घबरा मत ! माँ मैं फिर आऊंगा

तेरे हाथों का चूरमा जब, सरहद पे मैंने खाया था ,
उसी ताकत से मैंने, आतंकी मार गिराया था ।
बचपन की वो लोरियां, साथी फौजीयों को सुनाऊंगा
तूं घबरा मत ! माँ मैं फिर आऊंगा

माँ मैं मरा नहीं, कुछ पलों के लिए सो गया हूँ ,
जिन्दा रहूँगा हर दिल में, मैं अमर हो गया हूँ।
क्यों होते हैं फौजी शहीद, किस्सा ये फिर कभी सुनाऊंगा
तूं घबरा मत माँ, मैं फिर आऊंगा ।।                                                                                                                                                                                                लेखक – कुलदीप स्वतंत्र

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