इस साल मध्यप्रदेश, पंजाब, यूपी और राजस्थान में हरियाणा से ज्यादा जली पराली

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Stubble Burning: इस साल मध्यप्रदेश, पंजाब, यूपी और राजस्थान में हरियाणा से ज्यादा जली पराली

हरियाणा में पराली जलाने की 1406 घटनाये तो एमपी में 16 हजार से ज्यादा जगह जली पराली

  • हरियाणा में दो लाख से अधिक किसानो ने फसल अवशेष प्रबन्धन के लिए करवाया पंजीकरण

कैथल (सच कहूँ/कुलदीप नैन)। Kaithal News: हरियाणा और पंजाब दोनों राज्‍य ऐसे हैं, जहां ज्‍यादातर किसान खरीफ सीजन में धान की बुवाई करते हैं, जिससे यहां पराली का प्रबंधन थोड़ा मुश्किल हो जाता है और किसान खेत में आग लगा देते हैं। अब धान का सीजन खत्म हो चूका है। हरियाणा राज्य कृषि आयोग (हार्सेक) के मुताबिक, हरियाणा में इस साल पराली जलाने के मामले में गिरावट दर्ज की गई है। वहीं मध्यप्रदेश में पराली जलाने के मामलो की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। हरियाणा प्रदेश में 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच पराली जलाने की कुल 1406 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 2303 था। इस साल सबसे ज्यादा 218 मामले जींद में सामने आए हैं। एमपी में इस साल 16 हजार से अधिक पराली जलाने की घटनाये घटी है। Kaithal News

बता दे कि लंबे समय से पंजाब हरि‍याणा और उत्‍तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली जलाने की घटनाओं को दिल्‍ली में प्रदूषण के लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता रहा है। लेकिन आंकड़ो के हिसाब से बात की जाये तो पराली जलाने की घटनाओं के मामले में हरियाणा को लेकर सकारात्‍मक खबर सामने आई है. यहां पिछले कुछ सालों के मुकाबले पराली जलाने के मामलों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। हरियाणा राज्य कृषि आयोग (HARSAC) ने पराली जलाने के जो आंकड़े जारी किए है। इन आंकड़ों के अनुसार,पिछले तीन साल से पराली जलाने के मामले कम हो रहे है। 2024 में पराली जलाने की 1406 घटनाएं सामने आई, 2023 में 2303 तो 2022 में 3661 केस सामने आये थे।

दो लाख से अधिक किसानो ने फसल अवशेष प्रबन्धन के लिए किया पंजीकरण

इस साल हरियाणा में दो लाख 29 हजार 878 किसानों ने सरकारी पोर्टल पर पराली प्रबंधन का रजिस्‍ट्रेशन कराया है। कैथल के 30 हजार 174 किसान, कुरुक्षेत्र के 26 हजार 649 किसान और सिरसा के 29 हजार 215, फतेहाबाद के 24 हजार 35 किसानो ने पराली प्रबंधन के लिए रजिस्‍ट्रेशन करा चुके हैं । फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सरकार किसानों को प्रति एकड़ एक हजार रुपये सब्सिडी देती है, जिसका लाभ लेने के लि‍ए किसानों ने आवेदन दिए है। बता दें कि हरियाणा में 15 सितंबर 2024 से 30 नवंबर 2024 पराली जलाने की सबसे ज्‍यादा घटनाएं जींद में 218, कैथल में 194, सिरसा में 188, कुरूक्षेत्र में 132 और फतेहाबाद में 130 सामने आई हैं।

इन कारणों से कम हुए मामले | Kaithal News

सुप्रीम कोर्ट के पराली जलाने पर बैन को लेकर सख्‍ती, कानूनी कार्रवाई, रेड एंट्री जैसी सख्‍ती, केंद्र और राज्‍य सरकार की योजनाओं के साझा प्रयासों और पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को देखते हुए यहां के किसान पराली जलाने से बच रहे हैं। पराली आग की घटनाओं को एक नजर देखें तो इस बार हरियाणा के कई जिले ऐसे हैं जहां एक भी मामला सामने नहीं आया है. वहीं, कुछ जिलों में नाम मात्र घटनाएं सामने आई हैं। इस साल गुरुग्राम, महेंद्रगढ़, मेवात, चरखी-दादरी, रेवाड़ी में पराली जलाने की एक भी घटना सामने नहीं आई है. वहीं, भिवानी में 10 और झज्जर में 12 घटनाएं दर्ज की गई हैं। Kaithal News

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मामले

हार्सेक के आंकड़ो के अनुसार पंजाब में भी पिछले तीन साल से पराली जलाने के केस कम आये है हालाँकि यह हरियाणा से बहुत ज्यादा है। पंजाब में इस साल 10 हजार 909 पराली जलाने की घटनाएं सामने आई है। 2023 में 36 हजार 663 घटनाये आई थी। 2022 में 49 हजार 922 मामले सामने आए थे। वहीं इस साल भारत में सबसे ज्यादा पराली जलाने की घटनाए 16 हजार 360 मध्यप्रदेश से आई है जोकि हरियाणा और पंजाब दोनों से ज्यादा है। यूपी में इस साल 6142 मामले सामने आये है तो राजस्थान में 2772 पराली जलाने की घटनाए पाई गयी है।

15 सितम्बर से 30 नवम्बर तक पराली जलाने के मामले

वर्ष मध्यप्रदेश यूपी पंजाब हरियाणा

  • 2024 16630 6142 10909 1406
  • 2023 12500 3996 36663 2303
  • 2022 11737 3017 49922 3661

पोर्टल पर हरियाणा के किसानो की रेड एंट्री | Kaithal News

  • कुल 1247
  • जींद 258
  • फतेहाबाद 148
  • कैथल 141
  • करनाल 120
  • कुरुक्षेत्र 95

पिछले साल के मुकाबले पुरे हरियाण में पराली जलाने के कम मामले सामने आए है। वहीं कैथल जिले में भी पिछली साल अब तक 262मामले थे जोकि इस बार घटकर 194 रह गए है। किसानो को लगातार जागरूक किया जा रहा है। एक्ससीटू और इनसीटू मशीनों से फसल अवशेष प्रबंधन किया जा रहा है। लगभग 9 लाख मीट्रिक तक पराली का प्रबंधन कर लिया गया है।
                                                                               -जगदीश मलिक, सहायक कृषि अभियंता, कैथल

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