दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था में दिए गए पैकेज के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखे हैं, मगर भारत में दिए गए पैकेज के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से औंधे मुंह गिरती जा रही है। आर्थिक सर्वे में कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 फीसद रहने का अनुमान है। लेकिन उद्योग और सेवा क्षेत्र की जो तस्वीर देखने को मिल रही है, वह निराशाजनक है।
वर्ष 2020-21 का आर्थिक सर्वे बता रहा है कि कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हालात ने देश की अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुक्सान पहुंचा दिया और आने वाले सालों में भी इसका प्रभाव हमें देखने को मिलेगा। आर्थिक समीक्षा के मुताबिक इस साल अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसद का संकुचन रहेगा, लेकिन साथ ही अगले वित्त वर्ष में इसमें तेजी से सुधार की उम्मीद जताते हुए विकास दर 11 फीसद रहने की बात भी कही गई है। इस वर्ष कृषि को छोड़ अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में जैसी गिरावट देखने को मिली है, उसे देखते हुए यदि भारत अगले वित्त वर्ष में दस फीसद से ज्यादा की वृद्धि दर प्राप्त करने में सफल रहता है तब यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं होगी।
सर्वे के अनुसार अर्थव्यवस्था को कोरोना काल से पूर्व की स्थिति में लाने के लिए कम से कम दो साल लगेंगे लेकिन जिस प्रकार के हालात हैं, उनमें अर्थव्यवस्था को सामान्य होने में दो साल से ज्यादा भी लग जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। आर्थिक सर्वेक्षण में यह अनुमान लगाया गया है कि हमारी विकास दर चीन से भी ज्यादा रहेगी। पिछले दिनों ऐसी ही संभावना का इजहार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी किया था। सरकार तो यही अनुमान लगा रही है कि अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में पूरा सुधार देखने को मिलेगा, लेकिन सुधार देखने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन, निवेश, निगरानी और नवाचार पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा।
विकास में बिना उपाय के तेजी नहीं आएगी। गौरतलब है कि दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था में दिए गए पैकेज के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखे हैं, मगर भारत में दिए गए पैकेज के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से औंधे मुंह गिरती जा रही है। आर्थिक सर्वे में कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 फीसद रहने का अनुमान है। लेकिन उद्योग और सेवा क्षेत्र की जो तस्वीर देखने को मिल रही है, वह निराशाजनक है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि जीडीपी में इन दोनों क्षेत्र क्षेत्रों का बड़ा योगदान रहता है। आज स्थिति यह है कि कोरोना काल में जो उद्योग-धंधे बंद हुए थे, उनमें से बड़ी संख्या में अभी तक चालू नहीं हो पाए हैं।
जिन करोड़ों लोगों का काम-धंधा बंद हुए, उनमें भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास अभी भी रोजगार नहीं है। यह भी याद रहे कि उद्योग नोटबंदी और जीएसटी के झटकों से उबरने में ही जुटा था कि लॉकडाउन ने इतनी गहरी चोट पहुंचाई कि अभी तक उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा। सरकार के अब तक के राहत पैकेजों का भी सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला है। जाहिर है, यह चुनौती आने वाले साल में भी बनी रहेगी और इससे निजात पाने में लंबा समय लग सकता है। अर्थव्यवस्था में तेज सुधार के लिए लंबा रास्ता लेने के बजाय जल्दी में हम सुधार के लिए क्या कर सकते हैं, इसे प्राथमिकता से देखना चाहिए। आगामी बजट में मूलभूत ढांचा और सामाजिक क्षेत्र में ज्यादा आवंटन की उम्मीद गलत नहीं है, लेकिन सबसे ज्यादा स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार जरूरी है ।
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