मास्टर लीला कृष्ण उर्फ लीलाधर पुत्र श्री पुरूषोत्तम दास नानक नगरी, मोगा (पंजाब) ने बताया कि मैंने बेपरवाह पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से नाम-दान प्राप्त किया हुआ है और मुझे अपने सतगुरू पर दृढ़ विश्वास है। सन् 1958 की बात है कि मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला खूईयां नेपालपुर जिला सरसा में बतौर अध्यापक सेवारत्त था और मैं उसी गांव में रहता था। उन दिनों पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज का गांव श्री जलालआणा साहिब में रविवार के दिन एक विशाल सत्संग था। श्री जलालआणा साहिब, खुईयां नेपालपुर से करीब 12-13 मील की दूरी पर है। उन दिनों खूईयां से श्री जलालआणा साहिब तक आने जाने के लिए कोई साधन नहीं था। रास्ता कच्चा था इसलिए मैं अपनी साईकिल पर सवार होकर श्री जलालआणा साहिब पहुंच गया। सफर के कारण मैं काफी थक गया था। रात्रि का सत्संग था। उन दिनों शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज रात को काफी देर तक सत्संग किया करते। उस दिन भी प्यारे सतगुरू जी ने रात्रि दो बजे तक सत्संग किया और समाप्ति के बाद नाम-दान की दात भी प्रदान की।
मैंने अगले दिन सोमवार को सुबह सात बजे अपने स्कूल में ड्यूटी पर पहुंचना था। कच्चे रास्ते में साईकिल चलाने की वजह से मैं बहुत थक गया था। इस कारण मैंने सोचा कि आराम से सुबह 6 बजे जाऊंगा और 8-9 बजे तक स्कूल पहुंच जाऊंगा। मौज मस्तपुरा धाम श्री जलालआणा साहिब डेरे में मिट्टी का एक काफी बड़ा चबूतरा था। सत्संग के बाद स्थानीय साध-संगत तो अपने-अपने घरों में चली गई। बाकी साध-संगत उसी चबूतरे पर लेट गई। उस चबूतरे पर करीब 100-150 आदमी अपनी चद्दरें ओढ़ कर सो रहे थे। मैं भी उन्हीं के बीच में अपने ऊपर चद्दर लेकर लेट गया। उस चबूतरे पर इतने सत्संगी अपनी चद्दरें ओढ़ कर सो रहे थे कि उस रात के अंधेरे में किसी आदमी की पहचान करना बहुत ही मुश्किल था।
मैं तो बेफिक्र होकर आराम से अपनी गहरी नींद में सो गया। मुझे क्या पता था कि अगले दिन सोमवार को मेरे स्कूल की वार्षिक जांच होने वाली है। उन दिनों वार्षिक जांच अचानक ही हुआ करती थी। पूर्ण गुरू तो अपने शिष्य की हर आने वाली मुश्किल, भयानक कर्म को अपनी दया मेहर से टाल देते हैं। हां! अगर शिष्य को अपने सतगुरू पर दृढ़ यकीन हो और उन्हीं के वचनों को शत-प्रतिशत मानता हो तो सतगुरू भी उस शिष्य की पल-पल संभाल करता है। उसे कोई दुखांत घड़ी देखने ही नहीं देते। जब सारी साध-संगत गहरी नींद में सोई पड़ी थी तो लगभग प्रात: चार बजे अंतर्यामी दातार पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज चौबारे से बाहर आ गए और फरमाया, ‘‘असीं बाहर घूमने जाना है।’’
शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज चौबारे से उतरकर अचानक ही उस चबूतरे के पास आकर खड़े हो गए जहां सारी साध-संगत सो रही थी। परम दयालु दातार जी के पावन कर-कमलों में हर समय एक लाठी हुआ करती थी। अचानक ही शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने सोए हुए भक्तों में से मेरी टांग पर अपनी लाठी की नोक लगाई और खड़े होने को कहा। मैं एकदम घबराहट में खड़ा हो गया। अपनी आंखें मलकर मैंने देखा तो सामने पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज खड़े हैं और फरमा रहे हैं, ‘‘कौन है भाई! तू सो क्यों रहा है?’’ फिर स्वयं ही कहने लगे, ‘‘तू तो मास्टर है, तूने ड्यूटी पर स्कूल में नहीं जाना? तू कैसे आया था?’’ मैंने जवाब दिया कि सांई जी! मेरे पास साईकिल है और साईकिल से ही वापिस खुईयां नेपालपुर जाना है। सतगुरू जी ने दोबारा फिर फरमाया, ‘‘अब चार बज चुके हैं तूं अभी जा।
12-13 मील की यात्रा साईकिल पर करनी है। स्कूल की सरकारी ड्यूटी से लेट नहीं होना चाहिए।’’ मैंने कहा-शहनशाह जी ! मैं अभी ही साईकिल उठाकर जा रहा हूं। उसके बाद शहनशाह जी वापिस चौबारे पर जाकर आराम फरमाने लगे। उसी वक्त मैंने चादर अपने थैले में डाली, साईकिल उठाया और अपने गांव के लिए रवाना हो गया। घर से तैयार होकर ठीक सात बजे अपनी ड्यूटी पर स्कूल में पहुंच गया। स्कूल के बच्चों की प्रार्थना करवाई तथा सभी छात्रों को अपनी अपनी कक्षाओं में बैठा दिया गया। मैंने बच्चों की हाजिरी लगाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। मुझे पढ़ाते हुए अभी पांच -सात मिनट ही हुए थे कि अचानक ही एक जीप मेरे स्कूल के गेट पर आकर रूक गई। उस जीप में जिला शिक्षा अधिकारी तथा सहायक जिला शिक्षा अधिकारी और दो क्लर्क थे।
चारों जीप से उतरकर मेरे स्कूल के अंदर आ गए और मुझे कहने लगे कि आपके स्कूल का वार्षिक मुआयना करना है। मैंने उनका स्वागत किया और चाय-पानी पिलाया। दोनों अफसर साहिबानों तथा क्लर्कों ने भिन्न-भिन्न कक्षाओं की पढ़ाई व लिखाई का निरीक्षण किया। हाजिरी रजिस्टर व सरकारी फंड के हिसाब की पूरी पड़ताल की। इस काम में उन्होंने पूरे दो घंटे लगाए। हमारे स्कूल की पड़ताल करने के बाद वे और स्कूलों के निरीक्षण के लिए चले गए। अफसर साहिबानों को विदा करने के बाद मैंने अपने मन में बेहद खुशी महसूस की और अपने प्यारे सतगुरू का लाख-लाख बार धन्यवाद करने लगा। मेरे मन में ये बार-बार ख्याल आने लगा कि अंतर्यामी दातार पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज अगर आज सुबह चार बजे मुझे जगाकर स्कूल न भेजते तो मैं शायद 9-10 बजे स्कूल पहुंचता और गैरहाजिर पकड़ा जाता। गैरहाजिरी के कारण मुझे अफसर नौकरी से भी हटा सकते थे या और कोई भी सख्त सजा दे सकते थे। पूजनीय परम दयालु सतगुरू जी ने अपने शिष्य की इस अवसर पर लाज रखी और मेरी नौकरी सुरक्षित रखी।
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