‘चैंपियंस आॅफ दि अर्थ’ के बाद जिम्मेदारी भी चैंपियन के तौर पर निभाएं मोदी

Modi's role as champion after 'Champions of the Earth'

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ रोज़ पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों के साथ इस साल का ‘चैंपियंस आॅफ दि अर्थ’ अवॉर्ड दिया गया है। इस पुरस्कार के बाद इस मोर्चे पर भारत की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। उम्मीद करें कि हमारे नीति निर्माता इस बढ़ी हुई जिम्मेदारी को महसूस करेंगे। इंटर गवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट ने जलवायु के मोर्चे से मानव जाति पर मंडरा रहे खतरे को बड़ी गंभीरता से रेखांकित किया है। लेकिन जब तक यह खतरा राजनीति के लिए मुद्दा नहीं बनेगा, तब तक इस मोर्चे पर ठोस फैसले होते नहीं दिखेंगे। पोलैंड में इसी दिसंबर महीने में होने वाली क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में इस रिपोर्ट के निहितार्थों पर विचार होना है। गौर करने की बात है कि इस सम्मेलन में सरकारें पेरिस समझौते की भी समीक्षा करेंगी, जिससे बाहर निकलने की घोषणा अमेरिका पहले ही कर चुका है।

अन्य प्रमुख देश जलवायु में बदलाव संबंधी चुनौतियों को गंभीरता से लेने की बात कहते रहे हैं, पर इस दिशा में दुनिया अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकी है जिससे खतरा टलने की संभावना जरा भी मजबूत होती दिखे। आईपीसीसी की यह रिपोर्ट बिना किसी लाग-लपेट के बताती है कि औसत वैश्विक तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का खतरा कहीं सुदूर भविष्य में नहीं 2030 तक, यानी 12 साल के अंदर ही वास्तविक रूप ले सकता है। जो लोग जलवायु परिवर्तन संबंधी खतरों को विकास के अजेंडे से बाहर की चीज मानते रहे हैं, उनकी गलतफहमी दूर करते हुए रिपोर्ट इस सचाई को सामने लाती है कि ये बदलाव विकास की उपलब्धियों को तहस-नहस कर सकते हैं। इनके चलते करोड़ों की आबादी फिर से गरीबी रेखा के नीचे जा सकती है, जिसे बड़ी मुश्किलों से इस रेखा के ऊपर लाया जा सका है।

फसलें नष्ट होने, खाद्य पदार्थों के महंगा होने और बड़े पैमाने पर लोगों के विस्थापित होने से जो चुनौतियां सरकारों के सामने आएंगी, उनसे निपटना बहुत कठिन होगा। रिपोर्ट यह भ्रम भी तोड़ देती है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के प्रारंभिक दुष्प्रभाव दूर-दराज के द्वीपीय देशों में ही देखे जाएंगे। रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता और कराची इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले इलाकों में शामिल होंगे। इस मान्यता का ठोस आधार यह है कि पिछले सौ साल से तापमान में बढ़ोतरी का यहां ज्यादा प्रभाव देखा गया है। देश के प्रमुख शहरों का पिछले सौ साल का रिकॉर्ड बताता है कि इस अवधि में जहां चेन्नै में तापमान औसतन 0.6 डिग्री सेल्सियस और मुंबई में 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, वहीं दिल्ली में यह 1 तो कोलकाता में 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। असल चिंता की बात यह है कि नीति निमार्ताओं की प्राथमिकता में जलवायु परिवर्तन आज भी शामिल नहीं हो पाया है। विकास को आर्थिक उपलब्धियों से जुड़े आंकड़ों के चश्मे से देखने की आदत हम नहीं छोड़ पा रहे, जबकि एक दिन यह छोड़नी होगी।

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