जन सुनवाई में संकट ग्रस्त उच्च शिक्षा पर चिंता, मोदी सरकार में अभिव्यक्ति की आजादी को खतरा पैदा हुआ
नई दिल्ली (एजेंसी)।
देश के जाने माने शिक्षाविदों और छात्रों की जन सुनवाई में मोदी सरकार के कार्यकाल में उच्च शिक्षा के गहराते संकट पर चिंता व्यक्त की गयी और कहा गया कि इन पांच वर्षों में परिसरों में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर खतरा उत्पन्न हो गया तथा असहमति के लिए लगातार स्थान सिकुड़ता चला गया है।
मुम्बई उच्च न्यायलय के पूर्व न्यायधीश न्यायमूर्ति होस्बेट सुरेश, न्यायमूर्ति बी जी कोलसे और प्रसिद्ध इतिहासकार उमा चक्रवर्ती तथा अर्थशास्त्री अमित भादुड़ी समेत दस जानी मानी हस्तियों के समक्ष हुई सुनवाई में यह चिंता व्यक्त की गयी। इस सुनवाई की रिपोर्ट आज यहाँ एक समारोह में जारी की गयी।
दलित और पिछड़े अपने अधिकारों से रहे वंचित
इतना ही नहीं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में फण्ड की कटौती की गयी और दलित तथा पिछड़े अपने अधिकारों से वंचित रहे तथा शिक्षा का भगवाकरण किया गया और संवैधानिक तथा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर हमला किया। इतना ही नहीं कैम्पस में अपराधिक हमलोें और हिंसा की घटनाएं बढ़ी है तथा असहमति के लिए कोई स्थान नहीं है। इस जनसुनवाई में प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर मैग्सैसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डेय, प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं एनसीईआर टी के पूर्व निदेशक कृष्ण कुमार ,प्रसिद्ध अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ,मिहिर देसाई, कन्हैया कुमार जैसे अनेक लोगों ने भाग लिया।
पूर्व कुलपतियों, प्रोफेसरों तथा पत्रकारों ने जारी की रिपोर्ट
पीपुल्स कमीशन ओन श्रिंकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस(पी सी एस डीएस) द्वारा आयोजित समारोह में एम एस विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर वासंती देवी, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के मानद प्रोफेसर टी के ओम्मेन तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद, प्रसिद्ध पत्रकार पामेला फिलिपोज ने यह रिपोर्ट जारी की। इस जन सुनवाई में जूरी के सामने देश के 17 राज्यों के करीब 50 विश्वविद्यालय और संस्थानों के करीब 130 शिक्षकों तथा छात्रों ने भाग लिया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमण्डलीकरण, नई आर्थिक नीति और बाजारीकरण तथा निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गहरा संकट पैदा हो गया और शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आयी है।
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