भारत ने मिशन शक्ति के अंतर्गत अंतरिक्ष में एंटी सैटेलाइट मिसाइल से एक लाइव सैटेलाइट को नष्ट करके अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर दर्ज करा लिया है और भारत ऐसी क्षमता प्राप्त करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। अब तक यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी। दुनिया के सभी विश्लेषक और रणनीतिकार इस मसले पर एक मत हैं कि भविष्य में वही विश्व पर हुकूमत करेगा, जिसके जखीरे में “स्पेस वार ” जीतने के ब्रहास्त्र होंगे। भविष्य के युद्ध परंपरागत युद्धों से अलग अंतरिक्ष सामर्थ्य पर ही निर्भर होंगे। ऐसे में भारत ने स्पेस वार में अब अपना पहला सुरक्षात्मक कदम रख दिया है। मिशन शक्ति के अंतर्गत एंटी सैटेलाइट(एसैट) का प्रक्षेपण कलाम आइलैंड से किया गया। इसके अंतर्गत अंतरिक्ष में 300 किमी दूर लो अर्थ आॅर्बिट (एलईओ) में केवल तीन मिनट में लाइव सैटेलाइट को मार गिराया गया।
स्पेस वार की ओर बढ़ती दुनिया और भारत पिछले वर्ष जून में में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन को अलग अंतरिक्ष बल या स्पेस फोर्स तैयार करने का आदेश दिया। ट्रंप ने अंतरिक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला बताया। इस तरह ट्रंप ने स्पेस फोर्स को को अमेरिकी सेना की 6 ठी शाखा के रूप में विकसित करने का आदेश दिया। अमेरिकी इंटिलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार रूस और चीन ऐसे हथियार विकसित कर रहे हैं, जिसका प्रयोग स्पेस वार में कर सकते हैं। यहाँ जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इस समय अमेरिका के अतिरिक्त 4 देशों के पास मिलिट्री स्पेस कमांड है। इसमें चीन के पास पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रेटजिक सपोर्ट फोर्स, रूस के पास रूसी स्पेस फोर्सेज, फ्रांस के पास ज्वाइंट स्पेस कमांड तथा इंग्लैंड के पास रॉयल एयर फोर्स कमांड।
इन सभी फोर्सेज का काम अंतरिक्ष में अपने उपग्रहों की सुरक्षा करना व मिसाइलों से होने वाले हमलों की निगरानी करना है। इस दृष्टि से भारतीय ‘आॅपरेशन शक्ति’ के महत्व को समझा जा सकता है। जब दुनिया की महाशक्तियाँ संभावित स्पेस वार की तैयारियाँ कर रही हैं, उसमें अब भारत कैसे पीछे रह सकता है। एंटी सैटेलाइट हथियारों अर्थात एसैट का इतिहास: बता दें कि एंटी सैटेलाइट हथियार(ए-सैट), जो सामरिक सैन्य उद्देश्यों के लिए उपग्रहों को निष्क्रिय करने के लिए तैयार किया जाता है। अमेरिका ने पहली बार 1958 में, रूस ने 1964 में तथा चीन ने 2007 में ए-सैट का परीक्षण किया था। इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महाशक्तियों को इसमें सफलता कई प्रयासों के बाद मिली, जबकि भारत को प्रथम प्रयास में। अमेरिका ने 26 मई 1958 से लेकर 13 अक्टूबर 1959 के बीच 12 परीक्षण किए थे,
परंतु अमेरिका के ये सभी प्रयास असफल रहे थे। रूस ने फरवरी 1970 में दुनिया का पहला सफल इंटरसेप्ट मिसाइल परीक्षण किया। अमेरिका ने 1985 में एफ-15 लड़ाकू विमान से एजीएम -135 मिसाइल दागकर सोलविंड पी78-1 सैटेलाइट को नष्ट किया था। चीन ने भी कई प्रयासों के बाद 2007 में इसमें सफलता प्राप्त की। इसमें चीन ने 800 किमी दूर के एक मौसम सैटेलाइट को नष्ट किया। इस परीक्षण से अंतरिक्ष में इतिहास का सबसे ज्यादा सैटेलाइट कचारा फैला, जिसकी दुनिया भर में काफी आलोचना हुई।भारतीय अंतरिक्ष संपदा के सुरक्षा के दृष्टि से भी महत्वपूर्ण: इस समय 803 अमेरिकी उपग्रह अंतरिक्ष में हैं। चीन के 204 और 142 उपग्रहों के साथ रूस तीसरे स्थान पर है। आॅपरेशन शक्ति के अंतर्गत काइनेटिक हथियार का प्रयोग सैटेलाइट नष्ट करने के भारतीय क्षमता से अंतत: अब भारत की अंतरिक्ष संपदा भी सुरक्षित हुई है। भारत के 48 अत्याधुनिक उपग्रह अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे हैं और यह इंडो पैसेफिक क्षेत्र में उपग्रहों का सबसे बड़ा जखीरा है, जिसकी सुरक्षा बेहद जरूरी है। भारतीय ए-सैट से मलबे की चिंता भी नहीं: अंतरिक्ष में मौजूद मलबा भविष्य में किसी भी अंतरिक्ष अनहोनी के लिहाज से बड़ी चिंता का विषय है। एंटी
सैटेलाइट अर्थात एसैट से उत्पन्न मलबा दूसरे सैटेलाइटों के लिए काफी कठिनाई उत्पन्न करता है। हालांकि ये आकर में काफी छोटे होते हैं, लेकिन राइफल से दागी गई गोली से भी कई गुना तेज रफ्तार के कारण ये कक्षा में घूम रहे, दूसरे उपग्रहों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इन्हीं मलबों के कारण अंंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र नियमित रुप से अपनी कक्षा में बदलाव करता रहता है। 2007 में चीनी परिक्षण से से अब तक का सबसे ज्यादा मलबा उत्पन्न हुआ। चूँकि चीनी मलबा 800 किमी की ऊँचाई में पैदा हुआ, इसलिए उसके तमाम छोटे-छोटे हिस्से अब भी कक्षा में मौजूद है। लेकिन भारतीय परीक्षण निचली कक्षा में हुआ है, इसलिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से ज्यादातर टुकड़े उसकी तरफ आकर रास्ते में ही नष्ट हो गए। इसलिए भारतीय परीक्षण को मलबा मुक्त कहा जा सकता है।
भारत का उद्देश्य अंतरिक्ष को विसैन्यीकृत करना है: भारत का अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है। भारत सदैव इस बात का पक्षधर रहा है कि अंतरिक्ष का इस्तेमाल शांति के लिए होना चाहिए। भारत अंतरिक्ष में हथियारों को जमा करने के किसी भी प्रतिस्पर्धा के खिलाफ है। भारत का मानना है कि अंतरिक्ष मानवीय दृष्टिकोण रखने वाले सभी लोगों का है। भारत इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा के रेगुलेशन 69/32 के तहत अंतरिक्ष में पहले कोई हथियार नहीं तैनात करने की नीति का समर्थन करता है। अंतरिक्ष में हथियारों के इस्तेमाल को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून और भारत: 1963 में अमेरिका ने अंतरिक्ष में जमीन से छोड़े गए एक परमाणु बम का परीक्षण किया। इस विस्फोट से अंतरिक्ष में मौजूद अमेरिका और रूस के कुछ सैटेलाइट नष्ट हो गए थे। इसके बाद 1967 में “आउटर स्पेस ट्रीटी”नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई।
निष्कर्ष: अंतरिक्ष और उससे जुड़े तकनीकी प्रयोगों के मामले में भारत स्पेस इंडस्ट्री में दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के दबदबे को चुनौती दे रहा है। एंटी सैटेलाइट क्षमता के प्रदर्शन से यह दावेदारी और भी मजबूत हुई है। 2018 में स्पेस इंडस्ट्री का आकार 360 अरब डॉलर रहा है, जो 2026 में 558 अरब डॉलर का हो जाएगा। भारत को स्पेस प्रोग्राम को चलाने वाली सरकारी एजेंसी इसरो का करीब 33 देशों और बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ स्पेस प्रोजेक्ट को लेकर करार है और वह दुनियाभर के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए लांचपैड का सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है। ऐसे में आॅपरेशन शक्ति भारतीय अंतरिक्ष संपदा के रक्षा तथा भविष्य में संभावित स्पेस वार में आपातकालीन दृष्टि से भी भारतीय रक्षा तैयारियों को और भी मजबूत करता है।
राहुल लाल
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