प्रेमी प्रीतम दास बस्ती अलीपुर, अमृतसर रोड, मोगा से वाली दो जहान पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार दया-मेहर के बारे में इस प्रकार लिखता है:-
सन् 1977 की बात है। एक दिन मेरा दस वर्षीय लड़का अशोक कुमार घर से नाराज होकर कहीं चला गया। मैंने दिन-रात एक करके अपने पुत्र की सब जगह तलाश की। अपनी सभी रिश्तेदारियों में पता करने के बाद मैंने उसे पहाड़ों में स्थित चिंतपूर्णी जैसे कई मंदिरों तथा लुधियाना जैसे कई बड़े-बड़े शहरों में भी तलाश किया परंतु कहीं से भी मुझे अपने पुत्र का पता न चला। इस प्रकार मैं दो दिनों के बाद निराश होकर घर लौट आया।
मेरा सारा परिवार पहले देवी-देवताओं, भूत-प्रेतों, पूछताछ और चौकियां आदि भरने में विश्वास रखता था। मेरे अधिकतर रिश्तेदार व स्नेही निगुरे थे। इस बात को लेकर मुझे उन लोगों के बहुत ताने सुनने पड़े कि उसने अपने इष्ट को छोड़ दिया है इसीलिए उस पर यह भीड़ बनी है। मुझे अपने मुर्शिद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज पर पूर्ण विश्वास था परंतु उन लोगों के लगातार तानों से परेशान होकर न चाहते हुए भी मुझे अगले दिन उनके साथ जाना पड़ा।
उसी दिन शाम को मैं अपने रिश्तेदारों के साथ अमृतसर एक गुरूघर में लंगर छक रहा था तो अचानक मुझे अपने सतगुरू पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की बहुत याद आई। अगले ही पल वाली दो जहान मेहरबान दातार जी प्रत्यक्ष उज्जवल नूरी स्वरूप में आकर मेरे सामने खड़े हो गए। दूध जैसे सफेद पहरावे में सतगुरू पूजनीय परम पिता जी ने मुझे आशीर्वाद देते हुए फरमाया, ‘‘बेटा! घबराण दी कोई गल्ल नहीं। इक्क-अध्धे दिन दा ही कम्म है।’’ इस प्रकार सच्चे पातशाह जी मुझे अपना भरपूर आशीर्वाद देते हुए एकदम अलोप हो गए।
मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि मेरा लड़का जहां भी है पूरी तरह से सुरक्षित है। अगले ही दिन मैं अपने एक साथी प्रेमी मुलखराज को साथ लेकर अपने सतगुरू जी के दर्शनों के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा आ गया। उस समय सुबह की मजलिस लगी हुई थी। मेहरबान दातार जी शाही स्टेज पर बिराजमान थे। शब्द-वाणी निरंतर चल रही थी तथा पूजनीय बेपरवाह जी अपनी पावन दृष्टि व वचनों से साध-संगत को निहाल कर रहे थे। मैंने आगे बढ़कर सच्चे पातशाह जी के पवित्र चरण-कमलों में अपने लड़के के बारे में प्रार्थना की। इस पर वाली दो जहान, सर्व-सामर्थ पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘‘भाई! जे किसे प्रेमी दा कष्ट चार-पंज साल दा होवे अते उसदा निबेड़ा तिन्न-चार दिनां विच्च ही हो जावे तां उसनूं घबराउणा नहीं चाहिदा। भाई! तुसीं आपणे घर जाओ। कम्म अज ही निबड़ जावेगा।’’
स्पष्ट है कि मुझे अपने उसी लड़के की तलाश में चार-पांच साल तक कष्ट उठाना था परंतु महान् परोपकारी दातार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने मेरे उस लम्बे कष्ट व गम को अपनी दया-मेहर से केवल तीन-चार दिनों में ही खत्म कर दिया। उसी दिन शाम को (यानि चौथे दिन) ही मेरा लड़का अशोक कुमार घर पहुंच गया। लड़के ने बताया कि पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज खुद उसे घर छोड़कर गए हैं।
इस प्रकार दो जहानों के वाली सतगुरू पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने मुझे अपनी रहमत द्वारा उस चिंता से मुक्त किया। लड़के को अपनी आंखों के सामने देखकर मेरे सारे परिवार तथा रिश्तेदार-संबंधियों ने कुल मालिक पूजनीय परम पिता जी का बहुत-बहुत धन्यवाद किया।
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