मैं अत्यंत दु:खी थी क्योंकि मेरे तीन बच्चे एक के बाद एक पैदा होते ही मर गए थे और मायके में मेरे माता-पिता जीवित नहीं थे। मैंने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से नाम-शब्द लिया हुआ था। दुनिया वाले अक्सर मुझे ताने देते थे कि तुम डेरा सच्चा सौदा दरबार में जाती हो तो गुरू जी तुुम्हें संतान क्यों नहीं देते? ये ताने सुनकर मैं अपनी किस्मत को कोसती रहती थी परंतु सतगुरू के प्रति मेरी श्रद्धा अटूट थी। घर-परिवार वाले मुझे पाखण्डियों के पास जाने को मजबूर करते लेकिन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की दया-मेहर से मैं उनके पास नहीं गई। एक दिन अत्यंत दुखी मन से पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को पत्र के माध्यम से अपना सारा दु:ख सुनाया।
कुछ दिन बाद पूजनीय परम पिताजी ने मुझे अपने पास बुला लिया और पावन वचन फरमाए, ‘‘बेटा, चिंता न करो, मालिक के नाम का सुमिरन करो। मालिक तुम्हें तंदुरूस्त पुत्र देगा।’’ इसके बाद पूजनीय परम पिता जी ने मुझे अपने पवित्र कर कमलों से प्रसाद दिया और मैं खुशी-खुशी अपने घर आ गई। प्यारे सतगुरू के वचनानुसार मैंने सुमिरन किया और अब मेरे तीन पुत्र हैं और बिल्कुल तंदुरूस्त हैं। मेरे घर में खुशियों के चिराग जलाकर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने हमें सबकुछ दिया। हम प्यारे सतगुरू जी का बहुत-बहुत धन्यवाद करते हुए कहते हैं कि सतगुरू सबकी सुनता है।
-श्रीमती जरनैल कौर, कोटकपूरा(पंजाब)
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