सन् 2005 की बात है। मेरे गुर्दे में पत्थरी बन गई थी। मैंने इसका इलाज शुरू किया। इलाज के साथ-साथ पत्थरी का दर्द बढ़ता जा रहा था, और पत्थरी भी। जब भी हम अल्ट्रासाऊंंड करवाते तो पत्थरी पहले से भी बड़े साईज में होती। क्या देसी, क्या अंग्रेजी हर तरह की दवाईयां खाई, जैसे-जैसे डॉक्टरों ने परहेज बताया, वैसे-वैसे ही मैं परहेज भी रखता गया, पर दर्द बिल्कुल भी कम नहीं हो रहा था। अलग-अलग विशेषज्ञ डॉक्टरों से भी चैकअप करवाया तो सभी ने यही परामर्श दिया कि जल्दी से जल्दी ऑपरेशन करवा लो। मैं ऑपरेशन करवाने के लिए सरसा के निजी अस्पताल में चला गया। डॉक्टरों ने चैकअप करके बोला कि जल्दी ऑपरेशन करवा लो, तो मैंने हामी भर दी। लेकिन डॉक्टर साहिबान ने कहा कि तुम्हारा ऑपरेशन सरसा में नहीं होगा। यह ऑपरेशन जयपुर जैसे शहर में ही संभव है। डॉक्टर से विचार-विमर्श करने के बाद हम वापिस घर आ गए। उधर उसी दिन मेरे मौसा जी मेरा हाल चाल जानने के लिए घर आए। उन्होंने बताया कि उनके स्कूल की एक टीचर ने भी जयपुर से पत्थरी का ऑपरेशन करवाया है। बाद में मौसा जी उस अध्यापिका से जयपुर के उस डॉक्टर का नाम और पता ले आए। मेरी पत्नी ने मेरी जांच की सभी रिर्पोटें लिफाफे में डाल ली।
जयपुर जाने की उधेड़बुन के बीच मैंने सोचा कि शाम की रूहानी मजलिस का समय हो गया है। पूज्य हजूर पिता के दर्शन करके आते हैं, और रात को गाड़ी से जयपुर चले जाएंगे। उस दिन शाह मस्ताना जी धाम में रूहानी मजलिस थी। मजलिस के दौरान मैंने देखा कि तेरावास के बाहर उन मरीजों की लाईनें लगी हुई थी जो पूज्य हजूर पिता जी से मिलना चाहते थे। मैं भी उनकी लाईन में जाकर बैठ गया। रूहानी मजलिस के उपरांत पूज्य हजूर पिता जी ने तेरावास के बाहर आकर उन सभी लोगों को दर्शन दिए जो मिलना चाहते थे। जब पूज्य हजूर पिता जी ने मेरे नजदीक आए तो मैंने भी अर्ज कर दी पिता जी! मेरे पत्थरी है, मैंने जयपुर पत्थरी का ऑपरेशन करवाने जाना है। मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि पूज्य हजूर पिता जी ने पास खड़े सेवादार को हुक्म फरमाया, ‘‘बेटा! जो नई दवाई आई है, इसको दे दो और कहो कि यह दवाई गाय के दूध की लस्सी के साथ लेनी है।’’
आश्रम में वैद्य आत्मा राम इन्सां ने पूज्य पिता जी के हुक्मानुसार 15 दिनों की दवाई दे दी, जो सुमिरन करके लेनी थी। मैंने कई वर्षों से नामदान लिया हुआ था। परंतु मैं कभी भी बैठकर सुमिरन नहीं करता था। दवाई लेने के लिए मैं थोड़ा सा सुमिरन करता और शाम को रूहानी मजलिस में चले जाते। ठीक तेहरवें दिन जब मैं बाथरूम गया तो पत्थरी अपने आप बिना किसी तकलीफ के बाहर निकल गई। उसके बाद मुझे कभी भी तकलीफ नहीं हुई। वाह मालिक! तेरे चोज!! कहां तो मैं जयपुर जाने को तैयार था और कहां आप जी ने मेरी बीमारी अपने पावन वचनों से ही काट दी। पिता जी, हम आप जी के परोपकारों का बदला कभी भी नहीं चुका सकते। पिता जी आप जी से हमारी यही अर्ज है कि हमें हमेशा अपने पावन चरण कमलों में लगाए रखना जी।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।