परंपरागत खाद्य पकवानों को घर-घर तक पहुंचाने की कवायद तेज (Millet loaves)
अलूणी घी देता है शरीर को ताकत
लोहारू (सांवरमल वर्मा/सच कहूँ)। इस समय जहां समूचा उत्तर भारत कड़ाके की (Millet loaves) शीतलहर की चपेट में है और मारे सर्दी के लोग बेहाल हैं। वहीं लोहारू के ग्रामीण क्षेत्र में लोग बाजरे की रोटी व अलूणी घी के सहारे सर्दी को मात दे रहे हैं। अंगारों पर पकाई गई बाजरे की रोटियां, जहां सर्दी में भी गर्मी का एहसास कराती हैं, वहीं अलूणी घी का तड़का शरीर को ताकत प्रदान करता है। ग्रामीण अंचल में सदियों से शीत ऋतु का प्रमुख खाद्यान्न रहे बाजरे के पौषक तत्वों व शरीर को ऊर्जा देने की इसकी क्षमता वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरी उतरी है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ बाजरा फाईबर का एक अच्छा स्रोत है। यही कारण है कि अब वैज्ञानिक परंपरागत रोटी, खिचड़ी के साथ-साथ बाजरे के उपयोग को लड्डू, केक, बिस्किट, मटर, मट्ठी सहित विभिन्न पकवानों के रूप में बढ़ावा दे रहे हैं।
- यही नहीं बाजरे से बनी चीजों के व्यावसायिक उत्पादन की संभावनाएं भी तेजी से तलाशी जा रही हैं।
- चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के गृह विज्ञान कॉलेज का खाद्य पोषण विभाग इस दिशा में काफी काम कर रहा है।
- अब वह दिन दूर नहीं जब आपके नाश्ते और लंच से लेकर डिनर तक की प्लेटों में बाजरे के लजीज व्यंजन सजे नजर आएंगे।
कम पानी में भी होती है अच्छी पैदावार
यहां उल्लेखनीय होगा कि राजस्थान सीमा से सटे लोहारू क्षेत्र में सदियों से बाजरा एक प्रमुख खाद्यान्न रहा है और यह खरीफ की मुख्य फसलों में से एक है। कम वर्षा में भी अच्छी पैदावार देने वाला बाजरा मनुष्य के साथ-साथ पशुओं का भी प्रमुख आहार रहा है। ग्रामीण अंचल में हर मौसम में बाजरे का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है। शीत ऋतु का तो यह प्रमुख आहार रहा है। सर्दी में बाजरे की रोटियां ताजा निकाले गए अलूणी घी के साथ खाई जाती हैं।
सूप को मात देती है गर्मागर्म राबड़ी
गाँवों में लोग सप्ताह में कम से कम दो दिन लोग बाजरे की खिचड़ी का उपयोग करते हैं और शाम को बनने वाली बाजरे की गर्मागरम राबड़ी सर्दी, जुकाम, बदहजमी व अनिद्रा की रामबाण औषधि मानी जाती है। बाजरे की गर्म राबड़ी के सामने जायके व पौष्टिकता के मामले में हर प्रकार के सूप पानी भरते नजर आते हैं।
फास्ट फूड के चलते घटा प्रचलन
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और प्रचार-प्रसार के युग में फास्ट फूड के चलन के कारण ग्रामीण अंचल में भी बच्चे और युवाओं में बाजरे के उपयोग की रूचि कम होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण यह पाया गया कि आजकल के युवा नाश्ते में रोटी की बजाय ब्रेड, बिस्किट, मट्ठी, मटर, फ्लैकस आदि पसंद करते हैं।
अब जल्दी खराब नहीं होगा बाजरे का आटा
घरों में बाजरे का उपयोग घटने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी माना जाता है कि बाजरे का आटा जल्दी ही खट्टा या कड़वा हो जाता है। इसी बात का ध्यान में रखते हुए तथा युवाओं को फास्ट फूड की लत से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे कि बाजरे का आटा खराब नहीं होता। इसके अतिरिक्त बाजरे की ब्रेड, बिस्किट, केक, लड्डू, मटर, मट्टी आदि बनाने की विधि विकसित की है। इन नवीन विधियों से बाजरे के अनेक पौष्टिक व लजीज व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं, जो न केवल घरों में इस्तेमाल किए जाएंगे, अपितु इनका व्यावसायिक उद्देश्यों से भी उत्पादन किया जा सकेगा। बहरहाल उम्मीद यही की जा रही है कि अपने विशिष्ट गुणों और नवीन विधियों से बने व्यंजनों के चलते बाजरा शीघ्र ही पूरे देश के घरों में अपनी जगह बनाने में कामयाब होगा।
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