जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने 9 पुलिस कर्मचारियों के पारिवारिक सदस्यों को जिस तरह अगवा किया है उससे सुरक्षा व खुफिया एजेसियों के लिए नई चुनौती पैदा हो गई है। पिछले कुछ महीनों से आतंकवादियों ने राज्य के पुलिस जवानों को निशाने पर लिया हुआ है। दो दिन पहले 4 पुलिस कर्मचारी शहीद हो गए। अब कर्मचारियों के पारिवारिक सदस्यों को अगवा कर आतंकवादी पुलिस बल को कमजोर करने की कोशिशें कर रहे हैं। इस पीछे आतंकवादियों के दो मकसद नजर आते हैं, एक आतंकवादी सरकार में दहशत का माहौल पैदा कर रहे हैं व दूसरा सेना की कार्रवाई को प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि स्थानीय जानकारी के लिए पुलिस सेना की बहुत ही बड़ी सहायक होती है। इन हालातों में सुरक्षा एजेसियों को और मुश्तैदी के साथ काम करने की जरूरत है। अगवा किए जाने की सूरत में किसी भी कार्रवाई के लिए कदम फूंक-फूंक कर आगे बढ़ाना होगा। सरकार व लोगों के चुने हुए जनप्रतिनिधि कर्मचारियों व उनके पारिवारिक सदस्यों के साथ खड़े हों व उन्हें हौसला दें। आम तौर पर अगवा करने की वारदात के कारण आतंकवादी अपने गिरफ्तार साथियों को छुड़ाने की ताक में रहते हैं। दरअसल जब सुरक्षा बल आतंकवादियों के नाक में दम कर देते हैं तब आतंकवादी कायरता भरी कार्रवाईयों को अंजाम देते हैं। बीते दिनों आतंकवादियों का मुंह तोड़ जवाब देते हुए पुलिस व सेना ने कईयों को मौत के घाट उतार दिया था व कुछ आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। चोटी के दस आतंकवादियों में तीन आतंकवादी मारे गए व अब आतंकवादियों को लग रहा था कि अन्य सात आतंकवादियों की मौत भी निकट है। आतंकवादियों ने कायर चाल चल सेना के घेरे को ढ़ीला करने का नया मंसूबा तैयार किया है। पुलिस कर्मचारियों के पारिवारिक सदस्यों को अगवा करने से पैदा हुए हालात नाजुक बन गए हैं। आम जनता पर सीधा हमला करने से पूरी तरह साबित हो गया है कि आतंकी कश्मीरियों की लड़ाई नहीं लड़ रहे। अगवा करने की घटनाओं के साथ अलगाववादी नेताओं को भी जवाब देना होगा, जो आतंकवादियों को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए लड़ाकू करार देते आ रहे हैं। ंअब पुलिस व सुरक्षा बलों के साथ आम कश्मीरियों को चाहिए कि वह आतंक के विरूद्ध लड़ाई में कूद पडंÞे व कश्मीर की जन्नत को दोबारा हासिल करें।
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