Migratory Birds Kurjan Returned: खींचन/फलौदी (वार्ता)। फलौदी जिले के खींचन गांव में सात समुद्र पार से शीतकालीन प्रवास पर आई संदेश का प्रतीक प्रवासी पक्षी कुरजां (डेमोइसेल क्रेन) के वापस अपने वतन लौट जाने से अब उनका कलरव सुनाई नहीं दे रहा है वहीं इस बार इन पक्षियों में बर्ड फ़्लू की दस्तक से फैले डर एवं पर्यटन के प्रति अनदेखी के चलते विश्व प्रसिद्ध इस पर्यटन स्थल पर पर्यटन और इससे संबंधित लोगों को काफी नुकसान पहुंचा हैं। Rajasthan News
हालांकि खींचन गांव में इन पक्षियों के लिए बने चुग्गाघर में रविवार को 50 से अधिक कुरंजा अभी भी नजर आई और ये भी एक दो दिन में अपने वतन लौट जायेगी। समाजसेवी, पक्षी प्रेमी एवं इन पक्षियों की सेवा करने वाले सेवाराम माली ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध इस पर्यटन स्थल पर इस बार इन प्रवासी पक्षियों की संख्या ज्यादा नजर आई और इस बार इनकी सख्या 40 हजार के पार पहुंच गई और पूरे सीजन में पूरा क्षेत्र इनके कलरव से गुंजायमान रहा लेकिन इस बार गत दिसंबर में इनमें बर्ड फ्लू के मामले सामने आने के बाद कुरजां के ठहरने के विभिन्न स्थलों पर पर्यटकों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई और काफी दिनों तक यह स्थल पर्यटकों के लिए नहीं खोलने के कारण हजारों पयर्टक यहां आने से वंचित हो गए, जिसका असर पर्यटन और इससे जुड़े लोगों पर पड़ा।
उन्होंने बताया कि इस दौरान हजारों की संख्या में कुरजां ने यहां डेरा डाला लेकिन करीब दो महीने तक इनको देखने वाला कोई नहीं था। इसी समय इनका कलरव चरम सीमा पर होता है और इसका दीदार करने देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं, जिससे पर्यटन और इससे जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है लेकिन इस बार गत 15 दिसंबर को बर्ड फ्लू से कुरजां के मरने के बाद करीब 20 दिसंबर से कुरजां के ठहरने के स्थल चुग्गाघर, तालाब आदि को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया। तालाब एवं ऐसे स्थानों के रास्तों को कांटे डालकर बंद कर दिया गया था। Rajasthan News
इससे क्षेत्र में करीब दो महीने तक पर्यटकों की आवाजाही पर रोक के कारण बाद में भी पर्यटक नाम मात्र के ही नजर आये और यह पर्यटन स्थल सूना ही रहा। इस कारण इस बार पर्यटन एवं इससे होने वाली आमदनी को नुकसान उठाना पड़ा है। इस बार इससे होटल, रेस्टोरेंट एवं पर्यटन गतिविधियों से जुड़े लोगों को पर्यटकों की कमी के चलते नुकसान पहुंचा हैं।
श्री माली ने कहा कि बर्ड फ्लू के चलते सावधानी बरती जानी चाहिए लेकिन इस बार बर्ड फ्लू से एक बार कुरजां के मरने के बाद में बर्ड फ्लू का और कोई मामला सामने नहीं आया और नहीं अन्य जगह से कोई ऐसा मामला सामने आया, ऐसे में ऐसे विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल को लंबे समय तक पर्यटकों के लिए बंद नहीं किया जाना चाहिए लेकिन इस बार पर्यटन के प्रति अनदेखी नजर आई और यहां आने वाले पर्यटकों को भ्रम में रखा गया और कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि इस बार लंबे समय के लिए पर्यटन स्थल को पर्यटकों के लिए बंद रखने से यहां आने वाले पर्यटकों को मायूस होना पड़ा। घायल कुरजां की सेवा करने वाले श्री माली ने बताया कि इस बार विभिन्न घटनाओं में तीस से अधिक कुरजां की मौत हुई। Rajasthan News
उन्होंने बताया कि हर साल शीतकालीन प्रवास के लिए यहां आने वाले ये प्रवासी पक्षी इस बार गत 22 अगस्त को खींचन गांव में दस्तक दे दी थी और यहां आने वाले इनके पहले समूह में 22 कुरंजा देखी गई। इसके बाद इनका यहां आने का सिलसिला जारी हुआ और इनकी संख्या 42-43 हजार तक पहुंच गई। उन्होंने बताया कि इस बार इन पक्षियों का अपने वतन लौटने का सिलसिला गत 21 फरवरी को शुरु हो गया और पहले समूह में करीब तीन हजार कुरजां अपने वतन के लिए रवाना हो गई थी। इसके बाद लगातार उनके अपने वतन लौटने का सिलसिला जारी रहा और गत 15 मार्च को एक साथ करीब 15 हजार कुरंजा यहां से लौटी और 19 मार्च को लगभग 200 कुरजां ही बची और अभी भी 50 से अधिक कुरजां ने अपना डेरा डाला हुआ है और वे एक-दो दिन में कभी भी अपने वतन को लौट सकती है।
उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से यह प्रवासी कुरजां साइबेरिया से हजारों किलोमीटर का सफर तय करके फलौदी, जैसलमेर, जोधपुर सहित आस पास के क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में अपने प्रवास पर आती हैं और इन क्षेत्रों के तालाब आदि के चारों और मंडराती रहती हैं। फलौदी के खींचन गांव में इनके बड़ी मात्रा में डेरा डालने के कारण वहां चुग्गा घर बनाया हुआ है जहां इनके लिए चुग्गा भी डाला जाता है जहां बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी इन पक्षियों का कलरव सुनने एवं इन्हें देखने आते हैं। Rajasthan News
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