हिसार (सच कहूँ/संदीप सिंहमार)। Haryana-Punjab Weather Alert: इस बार देरी से शुरू हुई सर्दी में उत्तर भारत में अधिक कड़ाके की ठंड का पूवार्नुमान है। दरअसल अल-नीनो का प्रभाव समाप्त होने के बाद ला-नीना सक्रिय हो गया है। यही सबसे बड़ी वजह है कि इस बार सर्दी खूब सताएगी। अमूमन, “ला-नीना” प्रशांत महासागर के सतह तापमान को ठंडा कर देती है, जिससे वैश्विक जलवायु घटनाओं में परिवर्तन होता है। इस प्रभाव के कारण अनुमान है कि उत्तर भारत के तापमान में गिरावट आ सकती है। इस दौरान प्रदूषण भी बढ़ सकता है और स्वास्थ्य जोखिमों में इजाफा हो सकता है।
इस परिवर्तन का असर फसलों, रोजमर्रा की जिंदगी और ऊर्जा की मांग पर भी पड़ सकता है। ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़ों की आवश्यकता और संभावित रूप से बिजली की मांग बढ़ सकती है। आईएमडी के पूवार्नुमान के अनुसार आवश्यक है कि लोग इन पूवार्नुमानों के मद्देनजर तैयारी करें, ताकि ठंड के प्रभाव बचा जा सके। बच्चो और बुजुर्गों को विशेष देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही, सरकार और स्थानीय प्रशासन को भी ठंड से निपटने के लिए उचित इंतजाम करने होंगे, जैसे कि सार्वजनिक जगहों पर अलाव बनाना और साथ ही बेघरों के लिए रैन बसेरों की व्यवस्था करना जैसे प्रबंध शामिल है। Haryana-Punjab Weather Alert
भूगोल विभाग के असिस्टेंट एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पवन ने बताया कि ला-नीना के प्रभाव से उत्तर भरे के क्षेत्र में तापमान में गिरावट की संभावना बढ़ जाती है। इस दौरान उच्च दबाव वाली ठंडी चलने से उत्तर भारत में ठंड का प्रकोप बढ़ेगा। ला-नीना एक जलवायु चक्र है, जो मौसम में अप्रत्याशित बदलाव लाता है,जिसका सटीक अनुमान लगाना भी मुश्किल हो जाता है। जिस प्रकार इस बार दक्षिण पश्चिम मानसून के दिनों में शुरूआती तौर पर बारिश पहले कम हुई, लेकिन इसके बाद ज्यादा बारिश से देश के विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति बनी। कुछ ऐसी ही अस्थिरता सर्दी के मौसम में देखने को मिल सकती है।
फसलों पर पड़ सकता है ठंड का असर | Haryana-Punjab Weather Alert
ला-नीना के कारण बदलने वाले ठंड के मौसम सीधा असर रबी और खरीफ की फसलों पर भी दिखाई देगा। वैसे तो ज्यादा ठंड दिसंबर व जनवरी के महीने में ही रहेगी। पर फरवरी,मार्च और अप्रैल में असामान्य ठंड और बारिश से फसलों को नुकसान हो सकता है। अल-नीनो और ला-नीना भौगोलिक प्रक्रिया है। इनका प्रभाव न केवल मौसम बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी पड़ता नजर आ सकता है।
5 से 7 सालों में होती है ऐसी मौसमी घटनाएं
विश्व मौसम संगठन के मुताबिक ऐसी मौसमी घटनाएं अक्सर 5 से 7 सालों में बदलती है। अल-नीनो और ला-नीना ऐसे प्राकृतिक जलवायु चक्र हैं जो प्रशांत महासागर के तापमान परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होते हैं। अल-नीनो के दौरान, समुद्र के सतही तापमान सामान्य से अधिक गर्म होते हैं, जबकि ला-नीना के दौरान इसके विपरीत ठंडे होते हैं। इन चक्रों का दुनिया भर में व्यापक प्रभाव होता है।
अल-नीनो के तहत, सामान्य से अधिक वर्षा, बाढ़ और गर्मी भारत के मानसून को कमजोर कर सकती है। इसके विपरीत, ला-नीना के कारण भारत में मानसून मजबूत हो सकता है, जिससे इन दिनों के कड़ाके की सर्दी पड़ सकती है। ये प्रभाव वैश्विक जलवायु पैटर्न को बदल सकते हैं, कृषि, पानी की आपूर्ति, और आपदा प्रबंधन पर इनकी प्रभावशीलता को समझना महत्वपूर्ण है। इनके स्पष्ट रूप से अलग-अलग पैटर्न होते हैं, और दोनों का वैश्विक मौसम पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। Haryana-Punjab Weather Alert
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