देश के आर्थिक भगौड़े आरोपी मेहुल चौकसी ने एंटीगुआ की नागरिकता लेकर भारत की नागरिकता छोड़ दी है। चौकसी पर 13,700 करोड़ के घपले का आरोप है। घपलेबाजों की चतुरता इसी बात से ही जाहिर है कि विदेशों में बैठ कर अपने बेकसूरं होने के दावे करते हैं। यदि उनके पास अपने सच्चे होने का तर्क है तो वे देश ही क्यों छोड़ते हैं? पैसो के लोभी लोगों ने अपना ईमान भी बेच दिया है जो अपनी जन्म भूमि के लिए आत्म सम्मान की हत्या कर अपने आप को विदेशी करार दे देते हैं। वैसे यह सरकारी नाकामियों का ही परिणाम है कि भ्रष्ट लोग भागने में कामयाब हो जाते हैं। यह हमारा देश है जहां किसान, मजदूर, दुकानदार कर्ज के सामने बेबस होकर आत्महत्याओं जैसे रास्तों को चुन लेते हैं।
अधिकारी कर्जदारों की गिरफ़्तारी, कुर्की करवाने व ढोल बजाने जैसे सभी तरीके -हथकंडे ईस्तेमाल करते हैं परंतु हजारों -करोड़ों के घपले करने वालों का दो-दो सप्ताहों तक सरकारों को पता ही नहीं चलता कि भगौड़ा कहां बैठा है? भगौड़े विदेश में बैठ कर सरकार व आम जनता का मजाक उड़ाते हैं। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर दावे कर रहे हैं कि मेहुल सहित अन्य भगौड़ों को मिशेल की तरह वापिस लाया जाएगा व सरकार उनसे पाई -पाई वसूल करेगी। परंतु सवाल यह है कि विजय माल्या की ‘टपूसी’ के बाद सरकार को अवश्य जाग जाना चाहिए था, जिससे चोकसी जैसे को भागने का मौका न मिलता।
भ्रष्ट कंपनियों के लिए यह आसान हो गया है कि कैसे न कैसे कर्ज लो और विदेश उड़ान भर जाओ। इधर सत्ताधारी व विपक्ष पार्टियों की शब्दिक जंग एक -दूसरे पर कीचड़ फेंकती रहती हैं। सत्ताधारी भाजपा का दावा है कि भ्रष्ट यूपीए सरकार के समय पर टिके रहे और अब एनडीए सरकार में उनका टिकना कठिन हो गया परंतु यह कहने मात्र से ही खत्म हो नहीं जाता। इस सरकार की होशियारी भी इसी में थी कि वह घपले करने वालों को भागने से पहले ही दबोच लिया जाता।
इस शत्रुता में यह बात उभर कर जरूर सामने आती है कि हर सरकार ही किसी न किसी बिंदु पर भ्रष्टाचारियों की पुशतपनाही के आरोपों का सामना कर रही है। भ्रष्टाचार बहुत बड़ी समस्या है, जिससे निपटने के लिए केवल बयानबाजी की आवश्यकता नहीं बल्कि ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। एक-दूसरी पार्टी के आरोपों का जवाब देना ही समस्या का हल नहीं है। जनता वायदे मुताबिक कार्रवाई चाहती है। देश को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के सपने तब ही पूरे होंगे जब वित्तीय चोरी रूकेगी। देश में संसाधनों की कमी नहीं बल्कि इनको भ्रष्टाचार का घुन खा रहा है। विदेशों में साधन कम हैं परंतु ईमानदारी उनको अमीर बना रही है।
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