ई-कामर्स कंपनियों की मेगा सेल ने बिगाड़ा आम दुकानदारों का धंधा

Mega sale of e-commerce companies spoiled business of common shopkeepers

इस त्यौहारी सीजन में 50 हजार करोड़ की सेल करने की तैयारी में ई-कामर्स कपंनिया, पिछले साल के मुकाबले 84 फीसदी ज्यादा का लक्ष्य (Mega Sale)

  • कोरोना की मार से जूझ रहे दुकानदारों की आर्थिक हालत ई-कामर्स कंपनियों ने की और खस्ता
  • ई-कामर्स कंपनियों की मेगा सेल की जांच करे सरकार: राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन
चंडीगढ़ (अनिल कक्कड़)। बढ़िया ब्रांड और सस्ते दामों की वस्तुएं कौन नहीं खरीदना चाहता (Mega Sale) आज कल ई-कामर्स कंपनियां जैसे ऐमेजन, फ्लिपकार्ट, मिंत्रा इत्यादि मेगा सेल चला कर दुनिया भर के बड़े-बड़े ब्रांड्स के कपड़े, जूते, एैक्सेसरीज, इलैक्ट्रॉनिक उत्पाद सस्ते में बेच रही हैं और कोरोना काल के कारण आई भारी मंदी के बीच यह माल धड़ाधड़ बिक रहा है। इससे ग्राहकों को तो फायदा हो रहा है लेकिन आम दुकानदारों की हालत पतली हो गई है। ये दुकानदार पहले ही कोरोना काल के मारे हैं और अब ई-कामर्स कंपनियों की सेल ने इनका धंधा लगभग चैपट कर दिया है।
इन त्यौहारों के सीजन में इस तरह की मेगा सेल ये ई-कामर्स कंपनियां हर साल लगाती हैं और लाखों करोड़ का बिजनस एक-दो दिनों में कर लेती हैं लेकिन छोटे दुकानदारों को हर साल पड़ने वाली यह मार इस बार ज्यादा घातक नजर आ रही है। ऐसे में राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन ने त्यौहारी सीजन में ई-कॉमर्श कम्पनियों की मेगा सेल पर सवाल उठाते हुए केन्द्र सरकार से जांच करवाने की मांग की है। संगठन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने ई-कॉमर्श कम्पनियों की कार्यप्रणाली पर आशंका जताते हुए कहा कि की भारी छूट की आड़ में प्रीडेटरी प्राइसिंग, के्रडिट-डेबिट कार्ड बैंकों द्वारा कैशबैक और खरीददारों के लिए ईएमआई पर ब्याज की उच्च दर की गहनता से जांच करने की जरूरत है।

जीएसटी भी जमा करवा रही हैं कंपनियां या नहीं!

बुवानीवाला ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि क्या ई-कामर्श कम्पनियां के विके्रताओं द्वारा एकत्रित किए जा रहे जीएसटी को सरकार के मानदंडों के अनुसार उचित रूप में जमा किया जा रहा है? क्योंकि ई-कामर्श पोर्टल्स ने करीब 6.5 लाख नए विक्रेताओं को जोड़ा है।
इस त्यौहारी सीजन में 50 हजार करोड़ का सामान बेचेंगी ई-कामर्स कंपनियां, पिछली बार के मुकाबले 84 फीसदी ज्यादा बुवानीवाला ने अनुमान के मुताबिक जानकारी देते हुए कहा कि इस प्रतिशत ज्यादा है। 5 करोड़ नए ग्राहक ई-कॉमर्श से जुडकर त्यौहारों की खरीददारी कर रहे हैं। बुवानीवाला ने कहा कि यह जांच करने की जरूरत है कि क्या जीएसटी को इकऋा करने के बाद सरकार के खजाने में नियमों के अनुसार जमा किया जा रहा है? उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्श कम्पनियों द्वारा प्रीडेटरी मूल्य प्राईस यानी वह मूल्य जिस पर ग्राहक को आकर्षित किया जा सकें, भले ही यह लागत से भी कम हो, वह पुराना सिस्टम फिर से शुरू किया है।

खरीददारों से वसूला जा रहा भारी-भरकम ब्याज

बुवानीवाला की माने तो किश्तों पर खरीददारों से गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था (एनबीएफसी) 20 से 36 प्रतिशत तक ब्याज वसूल रही है। इसके लिए अतिरिक्त एकमुश्त प्रोसेसिंग शुल्क भी लिया जा रहा है। बुवानीवाला ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि क्या भारी भरकम ब्याज रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार लिया जा रहा है? उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान पड़ोस की दुकानों ने देश को सभी आवश्यक वस्तुऐं उपलब्ध करवाई लेकिन अब अनलॉक में इन भारी भरकम मेगा सेल के नाम पर ग्राहकों को लुभाया जा रहा है जिसके चलते ग्राहकों ने ई-कॉमर्श प्लेटफार्म का रूख कर लिया है जो देशभर के खुदरा व्यापार के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

 

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