सरसा। राम का नाम इंसान को अंदर बाहर से खुशियों से भर देता है। इसलिए राम का नाम लेते रहना चाहिए। राम का नाम लेते समय आप कभी भी समय बर्बादी के बारे में न सोचें। आपको कई बार लगता है मैंने इतना समय भगवान को दे दिया, लेकिन अब सोचिए शेष बचा हुआ टाईम किसके लिए दिया।’
उक्त अनमोल वचन पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने रविवार को शाह सतनाम जी धाम में आयोजित रूहानी सत्संग के दौरान फरमाएं। इस अवसर पर पूज्य गुरु जी ने 2860 नामाभिलाषी जीवों को नाम की अनमोल दात प्रदान की तथा हजारों लोगों ने रूहानी जाम ग्रहण किया।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अक्सर देखा जाता है कि जिस औलाद को सींचकर बड़ा करते हो, वही औलाद एक दिन छोड़ देती है और जब आपके सामने आपके विरोध में खड़े हो जाते हैं तो बड़ा दर्द होता है। लेकिन इंसान इस बारे में पहले कभी नहीं सोचता। लेकिन जब ऐसा हो जाता है तो इंसान परेशान होता है कि ये क्या हो गया।
वो समय जो आपने उनके ऊपर लगाया तो उसका ये नतीजा निकला। अगर वही समय आप राम-नाम में लगाएं, वही समय प्रभु भक्ति में लगाएं, सतगुरु, अल्लाह के प्यार में लगाएं तो वो समय बेशकीमती हो जाएगा और आपकी जिंदगी में बहारें ले आएगा। इसलिए समय का सदुपयोग करो। जितना हो सके अच्छे कर्म करो। ईश्वर के नाम का जाप करो, ईश्वर से ईश्वर को मांगते रहो। भले कर्म करते रहो यकीनन उस मालिक की रहमत जरूर बरसेगी।
भगवान आजमाता भी है
जब सब युक्तियां हार जाती है। जब इन्सान का मार्इंड टोटली जवाब दे जाता है कि ये मैं नहीं कर सकता या मुझसे ये नहीं होगा। ये संभव नहीं है। उस समय अगर ईश्वर का नाम लिया जाए तो असंभव पल में संभव हो जाता है। जो कभी सोचा नहीं होता वो खुशियां इंसान को मिल जाती हैं। वो भगवान, वो राम जिसे अपनी खुशियों से, अपनी भक्ति से नवाजता है, उसे पहले आजमाता जरूर है।
आजमाने में जो फेल हो जाते हैं, वो उस परम पद को हासिल नहीं कर पाते, उन्हें अंदर-बाहर से एक जैसे नजारे नहीं मिल पाते। वहीं जो मालिक की परीक्षा में सफल हो जाते हैं वो अंदर मालामाल रहते हैं। संत, पीर-फकीर वचन करते हैं, कि भई! इस बात को मान लो। ये आपकी जिंदगी में काम आने वाली चीजें हैं, ऐसा करने से आप खुशियां हासिल कर पाएंगे।
निंदा-चुगली से खत्म होती है एनर्जी
आप राम-नाम का जाप करते हो, समाज का भला करते हो तो पूरी दुनिया में आपका नाम याद रखा जाएगा। वर्ना कितने बेनाम यहां आते हैं और चले जाते हैं। कोई याद तक नहीं करता। जिंदगी मिली है तो क्यों न ऐसा कुछ किया जाए, जो हर कोई याद रखे। इसलिए बहुत जरूरी है राम का नाम जपो, मालिक की भक्ति इबादत करो।
ताकि उस भक्ति से आपको खुशियां मिले ही मिलें, आपकी आने वाली पीढ़ियां भी मालामाल हो सकें। कितना आसान सा कार्य है, सुमिरन करना। निंदा-चुगली करने में भी जोर लगता है, क्योंकि उसमें एनर्जी वेस्ट होती है, आप जोर लगा-लगा के बातें करते हैं ताकि सामने वाला प्रभावित हो, क्योंकि धीमें आवाज में चुगली करोगे तो आदमी को मजा नहीं आता, प्रेशर डालकर जब चुगली करते हो तो पता चलता है।
दावे से कहते हैं तो आदमी को लगता है कि ये सही कह रहा होगा। तो राम नाम तो कुछ भी नहीं है, जुबान चलाओ चाहे न चलाओ, विचारों से करते रहो। बल्कि जैसे-जैसे राम का नाम जपते जाओगे। वैसे-वैसे मालिक के खुशियों के अधिकारी बनते जाओगे।
सतगुरु पर दृढ़ यकीन रखो
संत, पीर-फकीर कभी किसी का बुरा करना तो दूर, सोचते नहीं। जो उन्हें भी बुरा कहते हैं, संत-पीर-फकीर परम पिता परमात्मा से दुआएं मांगते रहते हैं। सबका भला करते हैं, सबको खुशी देने के लिए हर अच्छा कर्म करते हैं। इंसान जो सच्चे दिल से, भावना से मान लेते हैं, उन्हें तमाम खुशियां जरूर हासिल होती हैं।
जितनी श्रद्धा होगी, जितना दृढ़ यकीन होगा उतने ही नजारे ईश्वर के ज्यादा मिलेंगे। इसलिए दृढ़ यकीन रखो, ईश्वर की भक्ति करते रहो, मालिक का नाम जपते रहो। ज्यों-ज्यों मालिक का नाम जपते जाओगे त्यों-त्यों आपकी भावना, आपके विचार शुद्ध हो जाएंगे और मालिक के दर्श-दीदार के लायक आप बनते जाएंगे।
अपनी भावना का शुद्धिकरण करने के लिए विचारों का शुद्धिकरण करना बेहद जरूरी है। आप ईश्वर का नाम जपते हुए, समाज का भला करना सीखें। ज्यों-ज्यों समाज का भला करते जाएंगे, प्रभु की सृष्टि का भला होगा। और जिसकी औलाद का भला होगा, वो परम पिता परमात्मा आपका भला 100 प्रसेंट जरूर करेंगे। तो सबका भला मांगो और सबका भला करो ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है।
संत बाग के माली की भांति समाज को सुधारते हैं
इस कलयुग में लोग खुदगर्ज हो गए हैं। अपने अलावा कोई दूसरा दिखता ही नहीं, अपने अलावा वो दूसरों की बात करना पसंद नहीं करते। मन और मनमते लोगों की बातें भाती हैं। लेकिन गुरु पीर-फकीर की बातें अच्छी नहीं लगती। कई बार व्यक्ति ऐसा सोचता है कि, यार! पीर-फकीर तो कहते ही रहते हैं। इनका तो काम ही है।
जी नहीं, ऐसा नहीं है, पीर-फकीर सच्ची बात कहते हैं, सच के राह पर चलाते हैं। उनका कोई स्वार्थी मकसद नहीं होता, उनका एक ही मकसद होता है कि ईश्वर की रियाय, प्रजा का भला हो। ईश्वर ने जो सृष्टि बना दी है, उसके भले के लिए संत, पीर-फकीर ऐसे आते हैं, जैसे बाग में माली जाता है। क्योंकि जैसे ही वो बाग में जाएगा उसको पता चल जाएगा कि इस पौधे को ये बीमारी हुई है, ये टहनियां सूख गई हैं।
अगर न काटी तो और सूख जाएंगी। उसी तरह संत पीर-फकीर मालिक की बनाई दुनिया में आते हैं। और वो निगाह मारते हैं उन्हें नजर आता है कि यहां तो लोग बहुत तरह से बीमार हैं। काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मन-माया के पूरी तरह से बीमार हैं। इनकी एकमात्र दवाई ईश्वर का नाम है। जब तक ये दवा नहीं लेंगे और रेगुलर नहीं खाएंगे तो इनके ऊपर से इन बीमारियों का साया नहीं हटेगा। अंदर का नूरी स्वरूप नजर नहीं आएगा।
बच्चों को गलत और सही की पहचान करवाओ
आप पांच मिनट एकांत में बैठो, ईश्वर के नाम का सुमिरन करो, आपको पता चलेगा कि आपमें कौन सी कमियां हैं और कौन से गुण हैं। जो कमियां हैं, उनको दूर करने की कोशिश करो। और जो गुण हैं, उन पर अहंकार न करो। कमी इंसान में खुद होती है और निकालता भगवान में, पीर-फकीर सतगुरु में हैं। अपनी कमी इंसान को नजर नहीं आती।
क्या आपने किसी को सरेआम कहते हुए देखा है कि मैं गंदा हूँ, मैं बुरा हूँ, मेरे में ये कमियां हैं। सवाल ही नहीं पैदा होता, क्यों? क्योंकि इंसान ईगो (अहंकार) से भरा हुआ है। गलती करके भी लोग नहीं मानते, बड़ों की छोड़ो, छोटे-छोटे बच्चों से सॉरी कहलवाने के लिए माँ-बाप को पसीना आ जाता है। इतनी अकड़, इतनी ईगो क्यों आती है? ये सब माँ-बाप की कमी से होता है।
गलती को गलती मानों और सही को सही
माँ-बाप अगर शुरू से सिखाएं कि गलती को गलती मानों, सही को सही, ये पहचान होनी चाहिए। कई बार आप लाड़-प्यार में आकर बच्चों को सही-गलत का अंतर करवाना भूल जाते हो और बड़े होने पर उनको लाईफ में बहुत सारी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्होंने सिर्फ हाँ ही हाँ सुनी होती है।
वो कभी ना करना जानते ही नहीं। उन्होंने प्यार ही प्यार देखा होता है, उन्हें पता ही नहीं होता कि वो गलती भी करते हैं। तो सीधी सी बात है, अगर आपका बच्चा गलत काम करता है, गलत जिद करता है, कभी पूरी न करो। क्योंकि आज छोटी गलत जिद पूरी करते हो तो बड़े होकर कोई गलत जिद करेगा, जो पूरी नहीं कर पाओगे और आपके रिश्ते तार-तार हो जाएंगे।
इसलिए बच्चों की जायज बात ही मानों और जो नाजायज बात है उसके बारे में बच्चों को मनवाओ कि ये गलत है। ताकि बच्चा सही और गलत की पहचान बचपन से ही जान जाए। उसे समझ हो कि ये गलत है और ये सही होता है। हद से ज्यादा कुछ भी सही नहीं होता। इसलिए जरूरी है कि आप अपने बच्चों का पालन-पोषण सही ढंग से करें। ईश्वर का नाम जपें और काम-धंधा करते हुए अगर सुमिरन करते हैं तो मालिक बिगड़े हुए काम बना देते हैं।
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