सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इंसान जब उस परमपिता परमात्मा, सतगुरु, मौला के प्यार में, उसकी मोहब्बत में खो जाता है तो दुनिया उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। इतना मस्त हो जाता है, बेफिक्र हो जाता है, बे-गम हो जाता है उसे लगता नहीं कि वो मृत्युलोक में जी रहा है, यूं लगता है हर पल सचखंड में गुजर रहा हो, निजधाम में गुजर रहा हो। इंसान जब दुनिया में रहता है, दुनियादारी के काम-धंधे, दुनियादारी की उलझनें उसे ऐसा उलझा देती हैं कि उसे यूं लगता है शायद जिंदगी इसी का नाम है। गम, दु:ख, दर्द, चिंता, परेशानियां चहूं ओर से उसे घेरकर रखती हैं,परेशानी से लबरेज रहता है पर सतगुरु मौला से जब प्यार करता है, इश्क कर लेता है तो पता ही नहीं चलता कि गम, दु:ख, चिंता,परेशानियां किधर चली जाती हैं।
दृढ़ यकीन हो, दृढ यकीन के साथ जब इंसान अपने पीरों, मुर्शिद-ए-कामिल के वचनों पर चलता है अल्लाह, वाहेगुरु, राम से इश्क करता है तो यकीनन उसके गम, दु:ख, दर्द, चिंताएं मालिक खुद उठा लेते हैं। वो बेफिक्र, बेपरवाह हो जाता है उसे फिर दुनिया की जिंदगी कुछ भी नहीं लगती। बड़े सुख होते हैं लोगों के पास, ऐशो आराम के साधन होते हैं बहुत कुछ होता है, लेकिन मालिक के इश्क के सामने, उसके प्यार, मोहब्बत के सामने सब कुछ फिका-फिका और बेस्वाद लगने लग जाता है। यही है इश्क, इसी का नाम है सच्चा इश्क और इश्क कोई अलग चीज का नाम नहीं है। फिलिंग चेंज हो जाती हैं, इंसान बे-गम हो जाता है, एक अलग तरह का आनंद, एक अलग तरह की लज्जत आने लगती है और दर्श दीदार से सब कुछ हासिल होता है। दर्श दीदार नहीं होता तो बिन पानी की मछली की तरह तड़पता रहता है और उस तड़प में भी एक ऐसा मजा होता है जिसे दुनियादारी के लोग सोच भी नहीं सकते।
चंद रुपयों के लिए, औलाद के लिए, जमीन-जायदाद के लिए लोग रोते देखे हैं पर जब सतगुरु, अल्लाह, मौला, राम के लिए आंखों से आंसू आते हैं तो तमाम, गम,दु:ख, चिंताओं को धो डालते हैं। ये आसुओं का आना कोई मामूली बात नहीं होती। हमारे दिलो-दिमाग में वो चोट लगी है मालिक के इश्क की, उसके प्यार मोहब्बत की। उनके अंदर ही ये सब कुछ संभव है। जो इस इश्क के बारे में जानते नहीं जिनको इसका मालूम नहीं, उन्हें नहीं पता कि मालिक का इश्क क्या चीज होता है। इश्क अंदर जलवे दिखाता है। इश्क इंसान को बाहर से पवित्र बना देता है। इंसान अपनी आदतें जो सोचता है कभी बदलेंगी नहीं जब सतगुरु मौला का इश्क लगता है आदतें बुरी किधर चली गई कुछ पता ही नहीं चलता। जब इंसान रोगी होता है, परेशान होता है, दु:खी होता है सतगुरु से प्यार रखे, सेवा सुमिरन करता रहे, दृढ यकीन रखे यकीन मानिये पता ही नहीं चलता वों बीमारियां कहां चली गई पर उसके लिए दृढ यकीन होना जरूरी है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।