सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सत्संग का अर्थ है सच का साथ। सच उसे कहते हैं जिसे कहा जा सकता है कि जो सच था, सच है और सच ही रहेगा। ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड, खुदा, रब्ब ही इस दुनिया में एकमात्र सच है। भगवान के अनेक नाम हंै, लेकिन वो सुप्रीम पॉवर यानी सबसे बड़ी ताकत एक ही है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि मालिक, प्रभु, परमात्मा हमेशा था, है और हमेशा रहेगा, क्योंकि वो जन्म-मरण के चक्कर में नहीं आता। हालांकि वह प्रभु, परमात्मा सबके अंदर मौजूद है। हैरानी जनक है कि वो सबके अंदर है फिर भी वह जन्म-मरण में नहीं आता। इसलिए उसे सुप्रीम पावर कहा जाता है। कोई भी जगह उससे खाली नहीं होती।
हर जगह, कण-कण, जर्रे-जर्रे में उसकी मौजूदगी का अहसास होता है। जहां तक हमारी निगाह जाती है वहां तक वो मालिक, परमात्मा है और जहां तक निगाह नहीं जाती वो वहां तक भी है। दोनों जहानों यानी त्रिलोकी, जहां आत्मा जाती है और जहां शरीर नहीं जाता है, वहां भी वो है। ऐसा मालिक, ईश्वर, प्रभु, परमात्मा, सुप्रीम पावर जो सारी सृष्टि को बनाने वाला है। उसे देखा, महसूस किया जा सकता है लेकिन उसके लिए भक्ति करनी अति आवश्यक है। आप जी फरमाते हैं कि आप कोई भी काम-धन्धा करते हैं तो उसके लिए मेहनत भी जरूर करते हैं, क्योंकि मेहनत के बिना सफलता नहीं मिल सकती। प्रभु को पाने के …किसान भाई अपने खेत में अच्छी फसल पैदा करने के लिए जमीन को साफ-सुथरा करते हैं, बुआई, निराई, गुड़ाई, बिजाई, खाद, स्प्रे हर तरह से उसे संभालते हैं।
बीज डालते समय भी संभाल जरूरी है, क्योंकि ऐसी बीमारियां हैं जो धरती में ही लग जाती हैं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि यदि पेड़-पौधे की अच्छी तरह से संभाल की जाए तो वो बहुत जल्दी लहलहाने लगता है। इसी तरह इन्सान को मनुष्य शरीर रूपी धरती तो मिल चुकी है, लेकिन इसमें पाप-कर्म, ठगी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, नशों रूपी खरपतवार भी बहुत उगे हुए हैं। इस तरह यह धरती उपजाऊ होते हुए भी झाड़, फूस से भर गई है। धरती को साफ करने के लिए हल चलाना पड़ता है, उसी तरह इस शरीर रूपी धरती में भी जो घास-फूस, बुराई पैदा हो गई है उसे राम-नाम रूपी हल से साफ करना होगा। जैसे-जैसे घास-फूस साफ होता जायेगा, वैसे-वैसे राम-नाम का बीज फलता-फूलता जायेगा। जिस धरती रूपी शरीर में पहले से पाप-कर्म कम होते हैं या होते ही नहीं, उस धरती में बीज पड़ते ही पौधा जल्दी ही फलने-फूलने लग जाता है।
आप जी फरमाते हैं कि बहुत-सी सत्संगों में ऐसा हुआ कि जिन लोगों ने नाम लिया उन्होंने बाद में बताया कि उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे उनकी आत्मा उड़ारी मार रही हो। ऐसा लगता है कि वो जहां बैठे हैं वहां नहीं, बल्कि आसमान में उड़ रहे हों। उनकी तरंगें उनसे उड़ते हुए बहुत दूर तक जा रही हों। वो लोग दुनियावी छल-कपट और विषय-विकार से बहुत दूर होते हैं। ऐसे लोगों पर राम-नाम का बीज जल्दी असर करता है, लेकिन आज इन्सान बहुत छली-कपटी हो चुका है। बेशक वह दूसरों के सामने कुछ भी जाहिर नहीं होने देता लेकिन उसे खुद तो पता ही होता है कि वह क्या है? इन्सान जब एकांत में बैठकर सोचता है तो उसे पता चलता है कि उसकी धरती में कितने पाप-कर्म के कांटे हैं। तो इसके लिए राम-नाम का स्प्रे करो तो सारे पाप-कर्म दूर हो जाएंगे और शरीर रूपी धरती पाक-पवित्र हो जाएगी।