हिन्दी को उसका गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार के प्रयासों से देश में पहली बार मध्य प्रदेश में चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी में शुरू होने जा रही है। केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई का शुभारम्भ कर एक नए युग की शुरूआत की है, इससे न केवल हिन्दी का गौरव बढ़ेगा बल्कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा एवं राज-काज की भाषा बनाने में आ रही बाधाएं दूर होंगी। अंग्रेजी भाषा पर निर्भरता की मानसिकता को जड़ से खत्म करने की दिशा में यह एक क्रांतिकारी एवं युगांतकारी कदम होने के साथ अनुकरणीय भी है, जिसके लिये अन्य प्रांतों की सरकारों को बिना राजनीतिक आग्रहों एवं पूर्वाग्रहों के पहल करनी चाहिए। आजादी का अमृत महोत्सव मना चुके देश के लिये यह चिन्तन का महत्वपूर्ण पहलु है कि भारत और अन्य देशों में 70 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं, फिर भी चिकित्सा-इंजीनियरिंग एवं अन्य उच्च पाठ्यक्रम एवं अदालती कार्रवाई आज भी हिन्दी में क्यों नहीं हो पा रही? हिन्दी में चिकित्सा की पढ़ाई के प्रयोग की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी, क्योंकि चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस और रूस समेत कई देश अपनी भाषा में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
अच्छा होता कि भारत में इसकी पहल स्वतंत्रता के बाद ही की जाती। देर से ही सही, चिकित्सा की हिंदी में पढ़ाई का शुभारंभ भारतीय भाषाओं को सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से एक मील का पत्थर है। इस प्रयोग की सफलता के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। मातृभाषा में पढ़ाई की अत्यन्त आवश्यकता इसलिये है कि इससे स्व-गौरव एवं स्व-संस्कृति का भाव जागता है। जब नया भारत बन रहा है, सशक्त भारत बन रहा है, विकास के नये अध्याय लिखे जा रहे है तो स्व-भाषा को सम्मान दिया जाना चाहिए। कई देशों ने यह सिद्ध किया है कि मातृभाषा में उच्च शिक्षा प्रदान कर उन्नति की जा सकती है। मातृभाषा में शिक्षा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि एक तो छात्रों को अंग्रेजी में दक्षता प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा नहीं खपानी पड़ती और दूसरे वे पाठ्यसामग्री को कहीं सुगमता से आत्मसात करने में सक्षम होते हैं। इसी के साथ वे स्वयं को कहीं सरलता से अभिव्यक्त कर पाते हैं। राष्ट्र-भाषा को लेकर छाए धूंध को मिटाने के लिये कुछ ऐसे ही ठोस कदम उठाने ही होंगे।
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