मध्य प्रदेश ने इस वैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि किसी भी विषय की शिक्षा के लिए मातृ भाषा सबसे समर्थ माध्यम होती है। प्रदेश सरकार ने मेडिकल की शिक्षा एमबीबीएस हिंदी भाषा में करवाने का निर्णय लिया है व बकायदा हिंदी में मेडिकल की पुस्तकों को प्रकाशित कर दिया है। नि:संदेह मध्य प्रदेश इस तर्कसंगत व भाषा वैज्ञानिक कार्य के लिए बधाई का पात्र है। केंद्र व अन्य राज्य सरकारों को भी इस संबंधी कदम उठाने के लिए पहल करनी चाहिए। वास्तव में भाषा वैज्ञानिक, सहित मनोवैज्ञानिक अर्थशास्त्री व शिक्षा शास्त्री विगत 50 वर्षों से ही इस बात पर जोर देते रहे हैं कि मातृ भाषा ही शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए। मातृ भाषा के महत्व को समझते हुए अधिकतर राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्य की भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया है।
फिर भी इन राज्यों ने विशेष तौर पर 11वीं व 12वीं में मेडिकल के साथ-साथ नॉन-मेडिकल की शिक्षा के लिए इंग्लिश मीडियम चुना हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि यदि एमबीबीएस की शिक्षा हिंदी में संभव है तब 11वीं व 12वीं में साइंस की पढ़ाई के लिए हिंदी-पंजाबी या अन्य क्षेत्रीय भाषाएं क्यों माध्यम नहीं बन सकती? यह भी तथ्य है कि हमारे देश के विद्यार्थी यूक्रेन में रूसी भाषा में एमबीबीएस पास करते रहे हैं व इधर देश में आकर वह सफल डॉक्टर बन गए हैं। यदि भारत रूसी माध्यम में सफल हो जाता है तब फिर हिंदी-पंजाबी या अन्य क्षेत्रीय भाषा में यह शिक्षा और भी आसान होगी। यूक्रेन के अलावा भी विश्व के कई देश अंगे्रजी की बजाए अपनी भाषाओं में मेडिकल शिक्षा दे रहे हैं। भारतीय भाषाएं भी ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा के समर्थ हैं। होना तो यह चाहिए कि माध्यम केवल राज्य की भाषा तक सीमित न हो, अन्य भाषा समूहों को भी शामिल किया जाए।
मिसाल के तौर पर हरियाणा में हिंदी भाषा को सरकारी भाषा के साथ-साथ शिक्षा में माध्यम के तौर पर अपनाया गया है। हरियाणा में पंजाबी भाषा बोलने वाले विद्यार्थियों की संख्या 25 फीसदी के करीब है तब भाषा वैज्ञानिकों के नजरिए से हरियाणा में पंजाबी बोलने वाले विद्यार्थियों को उनकी मातृ-भाषा पंजाबी माध्यम के रूप में चुनने का प्रबंध होना चाहिए। दरअसल, भाषा को वैज्ञानिक नजरिये के साथ देखने की आवश्यकता है, न कि इसे सांप्रदायिकता से जोड़ा जाए। देश में भाषा संबंधी गैर-वैज्ञानिक व सांप्रदायिक नीतियों के कारण क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा का प्रबंध नहीं हो सका। उम्मीद है कि मध्य प्रदेश सरकार का फैसला भारतीय भाषाओं के विकास के लिए आशा की नई किरण लेकर आएगा।
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