समाज उत्थान का सशक्त साधन है मीडिया

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खबरों और विचारों को जन मानस तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है। किसी जमाने में मुनादी के जरिये हुकमरान अपनी बात अवाम तक पहुंचाते थे। लोकगीतों के जरिये भी हुकूमत के फैसलों की खबरें अवाम तक पहुंचाई जाती थीं।

वक्त के साथ-साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान के तरीकों में भी बदलाव आया। पहले जो काम मुनादी के जरिये हुआ करते थे, अब उन्हें अखबार, पत्रिकाएं, रेडियो, दूरदर्शन और वेब साइट्स अंजाम दे रही हैं। पत्रकारिता का मकसद जनमानस को न सिर्फ नित नई सूचनाओं से अवगत कराना है, बल्कि देश-दुनिया में घट रही घटनाओं से उन पर क्या असर होगा, यह बताना भी है।

आज का अखबार कल का साहित्य है, इतिहास है। अखबार दुनिया और समाज का आईना हैं। देश-दुनिया में में जो घट रहा है, वह सब सूचना माध्यमों के जरिये जन-जन तक पहुंच रहा है। आज के अखबार-पत्रिकाएं भविष्य में महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होंगे, क्योंकि इनके जरिये ही आने वाली पीढ़ियां आज के हालात के बारे में जान पाएंगी।

इसके जरिये ही लोगों को समाज की उस सच्चाई का पता चलता है, जिसका अनुभव उसे खुद नहीं हुआ है। साथ ही उस समाज की संस्कृति और सभ्यता का भी पता चलता है। पत्रकारिता सरकार और जनता के बीच सेतु का काम करती है। अखबारों के जरिये अवाम को सरकार की नीतियों और उसके कार्यों का पता चलता है। ठीक इसी तरह अखबार जनमानस की बुनियादी जरूरतों, समस्याओं और उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाने का काम करते हैं।

आज राष्ट्रवादी पत्रकारिता की बात हो रही है। पत्रकारिता तो होती ही राष्ट्रवादी है। ऐसे में राष्ट्रवादी पत्रकारिता की बात समझ से परे है। हालांकि पत्रकारिता की शुरूआत सूचना देने से हुई थी, लेकिन बदलते वक़्त के साथ इसका दायरा बढ़ता गया। इसमें विचार भी शामिल हो गए। पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालें, तो ये बात साफ हो जाती है।

माना जाता है कि पत्रकारिता 131 ईस्वीं में पूर्व रोम में शुरू हुई। उस वक़्त एक्टा डयूरना नामक दैनिक अखबार शुरू किया गया। इसमें उस दिन होने वाली घटनाओं का लेखा-जोखा होता था।

खास बात यह थी कि यह अखबार कागज का न होकर पत्थर या धातु की पट्टी का था। इस पर उस दिन की खास खबरें अंकित होती थीं। इन पट्टियों को शहर की खास जगहों पर रखा जाता था, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इन्हें पढ़ सकें। इनके जरिये लोगों को आला अफसरों की तैनाती, शासन के फैसलों और दूसरी खास खबरों की जानकारी मिलती थी।

फिर मध्यकाल में यूरोप के कारोबारी केंद्र सूचना-पत्र निकालने लगे, जिनमें कारोबार से जुड़ी खबरें होती थीं। इनके जरिये व्यापारियों को वस्तुओं, खरीद-बिक्री और मुद्रा की कीमत में उतार-चढ़ाव की खबरें मिल जाती थीं। ये सूचना-पत्र हाथ से लिखे जाते थे। पंद्रहवीं सदी के बीच 1439 में जर्मन के मेंज में रहने वाले योहन गूटनबर्ग ने छपाई मशीन का अविष्कार किया।

उन्होंने धातु के अक्षरों का आविष्कार किया। इसके जरिये छपाई का काम आसान हो गया। सोलहवीं सदी के आखिर तक यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में सूचना-पत्र मशीन से छपने लगे। उस वक़्त यह काम योहन कारोलूस नाम के एक कारोबारी ने शुरू किया। उसने 1605 में ‘रिलेशन’ नामक समाचार-पत्र का प्रकाशन शुरू किया, जो दुनिया का पहला मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है।

भारत में साल 1674 में छपाई मशीन आई। लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। देश का पहला अखबार शुरू होने में सौ साल से ज्यादा का वक़्त लगा, यानी साल 1776 में अखबार का प्रकाशन शुरू हो सका। ईस्ट इंडिया कंपनी के पूर्व अधिकारी विलियम वोल्ट्स ने अंग्रेजी भाषा के अखबार का प्रकाशन शुरू किया, जिसमें कंपनी और सरकार की खबरें होती थीं।

यह एक तरह का सूचना-पत्र थी, जिसमें विचार नहीं थे। इसके बाद साल 1780 में जेम्स आॅगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नाम का अखबार शुरू किया, जिसमें खबरों के साथ विचार भी थे। हकीकत में यही देश का सबसे पहला अखबार था। इस अखबार में ईस्ट इंडिया कंपनी के आला अफसरों की जिन्दगी पर आधारित लेख प्रकाशित होते थे।

मगर जब अखबार ने गवर्नर की पत्नी के बारे में टिप्पणी की, तो अखबार के संपादक जेम्स आॅगस्टस हिक्की को चार महीने की कैद और 500 रुपये के जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ी। सजा के बावजूद जेम्स आॅगस्टस हिक्की हुकूमत के आगे झुके नहीं और बदस्तूर लिखते रहे।

गवर्नर और सर्वोच्च न्यायाधीश की आलोचना करने पर उन्हें एक साल की कैद और पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा दी गई। नतीजतन, अखबार बंद हो गया। साल 1790 के बाद देश में अंग्रेजी भाषा के कई अखबार शुरू हुए, जिनमें से ज्यादातर सरकार का गुणगान ही करते थे। मगर इनकी उम्र ज्यादा नहीं थी। रफ़्ता-रफ़्ता ये बंद हो गए।

साल 1818 में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने ‘कलकत्ता जनरल’ का प्रकाशन किया। इसमें जनता की जरूरत को ध्यान में रखकर प्रकाशन सामग्री प्रकाशित की जाती थी। आधुनिक पत्रकारिता का यह रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। गौरतलब है कि पहला भारतीय अंग्रेजी अखबार साल 1816 में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य ने शुरू किया।

‘बंगाल गजट’ नाम का यह अखबार साप्ताहिक था। साल 1818 में बंगाली भाषा में ‘दिग्दर्शन‘ मासिक पत्रिका और साप्ताहिक समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण‘ का प्रकाशन शुरू हुआ। साल 1821 में राजा राममोहन राय ने बंगाली भाषा का अखबार शुरू किया, जिसका नाम था- संवाद कौमुदी‘ यानी बुद्धि का चांद। भारतीय भाषा का यह पहला समाचार-पत्र था।

उन्होंने साल 1822 में ‘समाचार चंद्रिका‘ भी शुरू की। उन्होंने साल 1822 में फारसी भाषा में ‘मिरातुल‘ अखबार और अंग्रेजी भाषा में ‘ब्राह्मनिकल मैगजीन’ का प्रकाशन शुरू किया। साल 1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक ‘मुंबईना समाचार’ प्रकाशन शुरू हुआ, जो आज भी छप रहा है। यह भारतीय भाषा का सबसे पुराना अखबार है।

हिन्दी भाषा का पहला अखबार ‘उदंत मार्तंड’ साल 1826 में शुरू हुआ, लेकिन माली हालत ठीक न होने की वजह से यह बंद हो गया। साल 1830 में राजा राममोहन राय ने बंगाली भाषा में ‘बंगदूत’ का प्रकाशन शुरू किया। साल 1831 में मुंबई में गुजराती भाषा में ‘जामे जमशेद‘ और 1851 में ‘रास्त गोफ़्तार’ और ‘अखबारे-सौदागार’ का प्रकाशन शुरू हुआ।

साल 1846 में राजा शिव प्रसाद ने हिंदी पत्र ‘बनारस अखबार’ शुरू किया। साल 1868 में भरतेंदु हरिशचंद्र ने साहित्यिक पत्रिका ‘कविवच सुधा‘ शुरू की। साल 1854 में हिंदी का पहला दैनिक ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन शुरू हुआ।

साल 1868 में मोतीलाल घोष ने आनंद बाजार पत्रिका निकाली। इनके अलावा इस दौरान बंगवासी, संजीवनी, हिन्दू, केसरी, बंगाली, भारत मित्र, हिन्दुस्तान, हिन्द-ए-स्थान, बम्बई दर्पण, कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड, ज्ञान प्रदायिनी, हिन्दी प्रदीप, इंडियन रिव्यू, मॉडर्न रिव्यू, इनडिपेंडेस, द ट्रिब्यून, आज, हिन्दुस्तान टाइम्स, प्रताप पत्र, गदर, हिन्दू पैट्रियाट, मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडिया और सोशलिस्ट आदि अखबारों का प्रकाशन शुरू हुआ।

इन अखबारों ने अवाम को खबरें देने के साथ-साथ सामाजिक उत्थान के लिए काम किया। अखबारों के जरिये समाज में फैली कुरीतियों के प्रति जनमानस को जागरूक करने की कोशिश की गई। देश को आजाद कराने में भी इन अखबारों ने अपना अहम किरदान अदा किया। शुरू से आज तक अखबार समाज और जीवन के हर क्षेत्र में अपना दायित्व बखूबी निभाते आए हैं।

विभिन्न संस्कृतियों और अलग-अलग धर्मों वाले इस देश में अखबार सबको एकता के सूत्र में पिरोये हुए हैं। गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने में अखबार भी आगे रहे हैं। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है।

यह स्तंभ बाकी तीन स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की कार्यशैली पर भी नजर रखता है। अफसोस की बात यह है कि जिस तरह पिछले चंद सालों में कुछ मीडिया घरानों ने पत्रकारिता के तमाम कायदों को ताक पर रखकर ‘कारोबारी’ राह अपना ली है, उससे मीडिया के प्रति जनमानस का भरोसा कम हुआ है। ऐसा नहीं है कि सभी अखबार या खबरिया चैनल बिकाऊ हैं।

कुछ अपवाद भी हैं। जिस देश का मीडिया बिकाऊ होगा, उस देश के लोगों की जिन्दगी आसान नहीं होगी। पिछले कई साल से देश में अराजकता का माहौल बढ़ा है। यह बात समझनी होगी कि मीडिया का काम ‘सरकार’ या ‘वर्ग’ विशेष का गुणगान करना नहीं है। जहां सरकार सही है, वहां सरकार की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन जब सत्ताधारी लोग तानाशाही रवैया अपनाते हुए जनता पर कहर बरपाने लगें, तो उसका पुरजोर विरोध होना ही चाहिए।

-फिरदौस खान

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