मीडिया के बारे में उच्चतम न्यायालय की हाल में की गयी टिप्पणी को पत्रकारों को सही परिप्रेक्ष्य में लेना चाहिए। मुख्य न्यायधीश मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा हमें यह कहते हुए खेद है कि कुछ पत्रकार मानते हैं कि वे किसी मंच पर बैठे हुए हैं और कुछ भी लिख सकते हैं। यह पत्रकारिता से जुड़ी स्वतंत्रता या संस्कृति नहीं है। वे सोचते हैं कि वे कुछ भी कर साफ बच निकल सकते हैं। यह पत्रकारों का भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। प्रेस की ज्यादतियों के बारे में बुहत कुछ लिखा जा चुका है।
मीडिया कोर्ट और प्रेस कानूनों के बावजूद पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता जारी है और प्रेस कानूनों के बावजूद पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता जारी है। प्रेस को व्यापक स्वतंत्रता प्राप्त है। यहां पर चिंता कानूनों के अतिक्रमण की नहीं अपितु नैतिक जिम्मेदारी की भी है। अपने पाठकों या इतिहास के प्रति पत्रकारों की क्या जिम्मेदारी है? यदि उन्होंने जनता की राय या सरकार को गलत सूचना या गलत निष्कर्षों से गुमराह किया है तो क्या हमने कभी ऐसा पाया है कि पत्रकारों ने उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया हो या उसी पत्रकार या उसी समाचार पत्र द्वारा भूल में सुधार किया गया हो। ऐसा नहीं होता है क्योंकि इससे उनकी बिक्री प्रभावित होती है।
राष्ट्र को ऐसी गलतियों का खामियाजा उठाना पड़ सकता है किंतु पत्रकार बच निकलता है। यह माना जाता है कि वह फिर से ऐसी बातें लिखना शुरू कर देता है। समाचार पत्र उसके मालिकों को एक नरम शक्ति प्रदान करता है और वह एक राजनीतिक हथियार भी बन सकता है। सामान्य धारणा यह है कि जनता को लोक महत्व के मुद्दों पर सभी प्रकार की राय देने के लिए तथा घटनाओं का वास्तविक वर्णन करने के लिए प्रेस की स्वतंत्रता अपरिहार्य है।
पत्रकारों में उपदेशक बनने की प्रवृति पाई जाती है। कुछ संपादक मानते है कि वे देश को चलाते हैं या कम से कम देश का एजेंडा तय करते हैं। वाल्टर लिकमैन ने एक बार लिखा था आत्म महत्व से शराब से अधिक पत्रकार बर्बाद हुए हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री स्टेनले वार्डविंग ने 1921 में कहा था कि पत्रकार बिना जिम्मेदारी के शक्तियों का प्रयोग करते हैं। यह युगों से वेश्याओं का विशेषाधिकार रहा है। इनमें से कुछ टिप्पणियां अप्रिय हैं क्योंकि कई बार पत्रकारों ने अपनी लेखनी से जनता को जागृत किया है।
मैं ऐसे कई युवा पत्रकारों को जानता हूं जिन्हें अपने और अपने कार्य के बारे में विश्वास है और इसका कारण उनका आत्मविश्वास नहीं अपितु यह भावना है कि वे ऐसे व्यवसाय में हैं जिससे वे चकाचैंध की दुनिया से जुड़ जाते हैं। अपने संगठन के लिए मीडिया मैनेजर के रूप में लंबे समय तक कार्य करने के दौरान मैंने पाया कि पत्रकारिताओं में नकारात्मक खबरों के प्रति अधिक लगाव होता है क्योंकि उससे वे सुर्खियों में आते हैं। जबकि सकारात्मक विकास से जुड़ी खबरें सुर्खियों में नहीं रहती।
एक समय ऐसा भी था जब अन्वेषक रिपोर्टिंग को अच्छा नहीं माना जाता था। इस मामले में ईमानदार रिपोर्टिंग को भी पीत पत्रकारिता माना जाता था। किंतु धीरे-धीरे ऐसी रिपोर्टिंग पत्रकार की अपने व्यवसाय और समाज के प्रति सर्वोच्च जिम्मेदारी बन गयी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी रिपोर्टिंग के आधार पर अनेक उल्लेखनीय निर्णय दिए हैं।
शक्तिशाली स्तंभकारों से लेकर छोटे-छोटे ब्लॉगरों तक सबको इस बात पर ध्यान देना होगा कि वे जो कुछ भी खबर देते हैं वह सही हो। आज हमारी खबरें शक्तिशाली बन गयी हैं। हमारे मीडिया के लोग भी हमारे लोगों की मानसिकता से नकारात्मकता दूर करने में सहयोग नहीं करते हैं। क्या हम प्रत्येक नकारात्मक समाचार को बड़े उत्साह से पेश नहीं करते हैं? इसका कारण यह है कि तुरंत और विश्वसनीय सूचना दी जानी चाहिए और इसके लिए अटकल, अफवाह आदि का सहारा भी लिया जाता है और उसके कारण उत्पन्न भूलों को दूर नहीं किया जाता है और ऐसे समाचार पाठकों के मन पर छा जाते हैं। कई बार पाठक भ्रमित हो जाते हैं। समाचार व्यवसाय से जुडे़ लोग आज ऐसे समाचारों को प्रमुखता देते हैं जो भावनाओं को भड़काते हैं हालांकि पत्रकारों की एक और पीढी भी है।
यह पत्रकारों की पुरानी पीढ़ी है जिन्होंने न्यूज रूम के मूल्यों को परिभाषित किया था। सच्चाई और निष्पक्षता के लिए कोई भी कीमत बड़ी नहीं है। हमें अतिरिक्त प्रयास करने होंगे और तब तक यह प्रयास जारी रखने होंगे जब तक हमें विश्वास न हो कि हमारा समाचार सही और निष्पक्ष है।
मोइन काजी